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उपद्रव से आहत-मर्माहत संपूर्ण समाज, अब संयम की अग्निपरीक्षा का समय

औरंगबाद (बिहार)-सोनमाटी समाचार। चंद उपद्रवियों के कारण संपूर्ण समाज आहत-मर्माहत है। देश-दुनिया का हर सभ्य समाज चिंतित है। औरंगाबाद जिला मुख्यालय में रामनवमी के अवसर पर जो उपद्रव हुआ, उसका परिणाम दशकों तक झेलना पड़ेगा। वक्त गुजरने के साथ भले ही लोग दर्द भूल जाएं, भरपाई कर ले, मगर इस घटना की टीस दिलों की दरार बढ़ाने वाली है। सवाल यह उठता है कि जिस देश-समाज की संस्कृति की पताका विश्व में तर्क-विवेक की कसौटी पर परखे जाने की और संवाद की श्रेष्ठ परंपरा से फहरती रही है, आखिर वहां घायल करने वाली सामुदायिक उपद्रव की खूरेंजी घटनाएं क्यों ? अब जरूरत समाज के अग्रणी, प्रभावकारी और प्रबुद्ध वर्ग को आगे कदम बढ़ाने की, सक्रिय होने की, विद्वेष के रिसते घावों को भरने की और भविष्य के लिए एहियात बरतने व युक्तिसंगत समझ पैदा करने की है, ताकि समाज बेहतरी के नक्शेकदम पर चल सकेें।अब संयम की अग्निपरीक्षा का समय है।

दुनिया गौर से देख रही है सर्वे भवन्तु सुखिन:, वसुधैव कुटुम्बकम के देश को : डा. शम्भूशरण सिंह
विवेकानंद मिशन स्कूल के निदेशक डा. शम्भूशरण सिंह का कहना है कि औरंगाबाद में जो कुछ हुआ, वह हमारी सभ्यता-संस्कृति के विपरीत है। भारत ने सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: और वसुधैव कुटुम्बकम का सन्देश पूरे विश्व को दिया है। हम पूरे विश्व को परिवर मानते हैं। विश्व के दक्षिण के देशों से पूर्व एशिया तक के देशों में हमारी सांस्कृतिक एकता जो पताका लहराया है, वह शस्त्रबद्ध होने से नहीं बल्कि सदियों से तर्कसम्मत, विवेकसम्मत शास्त्र से लैस होने से हुआ है। समाज की मुख्यधारा से भटके हुए लोगों के प्रति आक्रामकता के साथ व्यवहार करना हमारी सांस्कृतिक शिक्षा में कभी शामिल नहींरहा है। पूरा विश्व हमें गौर से देख रहा है। क्या हम इस तरह की शर्मशार करने वाली घटना के बाद कह सकते हैं कि हम विश्व की श्रेष्ठ सभ्यता के देश है और उसके प्रतिनिधि हैं। जाहिर है कि नहीं। इसलिए ऐसी घटना फिर कभी न हो, इसके लिए संभलकर, मिलजुल कर रहने की नीति पर ही चलना होगा।

आने वाली पीढ़ी के लिए क्या सामुदायिक हिंसा ही होगा संदेश? : डा. प्रकाशचंद्रा
भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कॉलेज के सचिव डा. प्रकाशचंद्रा का मानना है कि औरंगाबाद में जो कुछ हुआ उसका दुष्प्रभाव आने वाली पीढ़ी पर पड़ेगा। हम अमन पसंद समाज के लोग है। कबिलाई समाज को तो हम भारतवासी हजारों साल पीछे छोड़ चुके हैं। फिर यह कैसा व्यवहार, कैसा संघर्ष? हमें तेजी से सोचना होगा और उतनी तेजी से अमल में भी लाना होगा। चंद उपद्रवी और असामाजिक तत्व ही पूरे समाज का शान्ति-सौहार्द बिगाड़ते हैं। लेकिन समाज का बड़ा हिस्सा क्यों अपने के खांचे में बांट लेता है? समाज के बड़े समुदाय का दायित्व परिवार के बड़े भाई की तरह होना चाहिए। सभी को आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए, यह कह कर फिर चुप हो जाने से काम नहींचलने वाला है, क्योंकि खामोशी, संवादहीनता एक-दूसरे के प्रति संदेह ही पैदा कर सकती है। इसलिए हर समुदाय के अग्रणी लोगों को पहल करनी होगी, सक्रिय होना होगा।

ऐसी घटना से दशकों तक भुगतना पड़ता है फल : सुरेश कुमार
संस्कार विद्या के सीएमडी सुरेश कुमार ने युवा वर्ग से अपील की है कि वे संभल कर कार्य करें, क्योंकि उनके कंधे पर उनके संघर्षपूर्ण कैरियर और परिवार का बोझ है, देश और समाज के प्रति भी जिम्मेदारी है। इसलिए अपने, अपने परिवार और अपने समाज के हित का सदैव ख्याल रखें। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के बावजूद औरंगाबाद उपद्रव जैसी घटना पूरे समाज को शर्मसार करने वाली है। यह तो तय है कि दोनों तरफ के चंद बिगडैल युवाओं के कारण ही पूरे समाज को दंश झेलना पड़ता है और दशकों तक फल भुगतना पड़ता है। सवाल यह उठता है कि आखिर युवाओं को अभिभावक आरंभ में ही नसीहत क्यों नहीं देते, काबू में क्यों नहींरखते? इन प्रश्नों का एक जवाब यह है कि पुरानी पीढ़ी का नई पीढ़ी के साथ संवादहीनता की स्थिति है। दूसरा यह भी कि स्वार्थी सियासत गुमराह करती है, समाज को जोडऩे के बजाय धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग में बांटने का काम करती है। इसे सावधानी से देखना-समझना होगा।

भाषा-संवाद तो सौहाद्र्र की चीज, फिर अनसोशल पोस्ट क्यों? : नीरज कुमार एवं रौशन सिन्हा
औरंगाबाद उपद्रव के बाद सोशल मीडिया में तरह-तरह के पोस्ट देखे गए। सकारात्मक सूचनाओं के बीच कई पोस्ट अनसोशल भी थे और कई तो आपत्तिजनक भी। इस तरह की प्रवृत्ति का विरोध होना चाहिए। सकारात्मक प्रतिरोध शुरू करने के लिए संगठित प्रयास प्रतीक्षा नहींहोना चाहिए, बल्कि कहींव्यक्तिगत शुरूआत होती है तो उसका आगे बढ़कर समर्थन किया जाना चाहिए। ऐसी नहींहोने से समाज को कई स्तरों पर क्षति उठानी पड़ेगी। शिक्षा क्षेत्र के दो युवा संस्थान निदेशकों (नवज्योति शिक्षा निकेतन के नीरजकुमार गुप्ता और वीसीएसआरएम के रोशनकुमार सिन्हा) का कहना है कि आज के युवाओं की भाषा तो पुरानी पीढ़ी के मुकाबले अधिक सौहार्द वाली होनी चाहिए, अधिक मर्यादित होनी चाहिए, क्योंकि अपेक्षाकृत पहले से विकसित समाज के प्रतिनिधि हैं। युवा को बदलाव की क्रांन्ति और शान्ति का वाहक होना चाहिए, उपद्रव का नहीं। फिर सर्वसुलभ सोशल मीडिया में अनसोशल टीका-टिप्पणी क्यों? इसका तो सकारात्मक सदुपयोग होना चाहिए। भाषा समाज को जोडने वाली हो, तोडऩे वाली नहीं और तोडऩे वाली भाषा का इस्तेमाल करने वालों को संयत भाषा में कड़ा जवाब भी दिया जाना चाहिए।

( परिचर्चा रिपोर्ट एवं तस्वीर : उपेन्द्र कश्यप)

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