सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है   Click to listen highlighted text! सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है
आलेख/समीक्षाकहानी /कवितासामयिक

ये जिंदगी की मुर्दा कतारें

पुस्तक समीक्षा

 

कविता की सार्थकता युगीन यथार्थ को सामने लाने में है, युग की नब्ज को पकडऩे में है और पाठकों की संवेदना को जगाने में है। सरला माहेश्वरी की कविताएं भी युगबोध को सामने लाने वाली कविताएं हैं। कठिन समय का इतिहास रचती कविताएं हैं। संकटग्रस्त समय की चुनौतियों को पेश करती कविताएं हैं। वर्तमान सत्ता के छल-छद्म को परत-दर-परत उजागर करती और आम जन की परिवर्तनकामी शक्ति में विश्वास जगाती कविताएं हैं। इनकी कविताएं सवालों को सामने रखती हैं और पाठकों से संवाद करती हैं। एक तरफ जहां इनकी कविताएं शासक वर्ग की कुटिल चालों को उजागर और लोगों को सचेत करती हैं, वहीं शोषण के तंत्र के ख़िलाफ फूटने वाले लावे का संकेत भी हैं।
ये जिंदगी की मुर्दा कतारें (कविता संग्रह) की कविताएं पाठकों को जोडऩे वाली कविताएं हैं। इस तरह की कविताएं आज के दौर में कम लिखी जा रही हैं। सरला माहेश्वरी दशकों से आम जनता के संघर्षों से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी रही हैं। इनकी कविताएं संघर्षों की जमीन से निकली हैं। इनकी कविताओं में सबसे प्रमुख उनका कथ्य ही है। दरअसल, कथ्य ही प्रधान होता है और वही शिल्प को निर्धारित करता है। सरला माहेश्वरी की कविताएं आम जन के लिए लिखी गई हैं।
हालांकि कविता संग्रह (ये जिंदगी की मुर्दा कतारें) में हर रंग और मिजाज की कविताएं हैं, मगर कविताओं का मूल स्वर शोषण की व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष है। कविताएं पाठकों के दिलोदिमाग में एक बैचैनी पैदा कर देती हैं। सोचने को विवश कर देती हैंं। लावारिस नोटबंदी का लल्ला, मुझे मेरे भक्तों से बचाओ, ऐसा भी क्या झूठ अहँकार जी, डिजिटल टाइम में आदि कविताएं सत्ता के छद्म पर प्रहार करती हैं। कुछ कविताओं में तिलमिला देने वाला व्यंग्य है। कहकर आप हँसे, काला जादू, बागों में बहार है ऐसी ही कविताएं हैं। राजा मिडास (कविता) में मिथक का इस्तेमाल आज के कटु राजनीतिक यथार्थ को सामने लाने के लिए किया गया है। हम सबको बस नजीब चाहिए जैसी कविता संभवत: हिंदी में पहली बार लिखी गई है। सत्य का सुख, भविष्य रुका हुआ है तुम्हारे लिये, ओ लेनिन इस संग्रह की श्रेष्ठ कविताएं मानी जा सकती हैं। इतिहास के संघर्ष को जिस तरह रूपायित किया गया है, वह हिंदी कविता में दुर्लभ रहा है।
विजय कुमार का मानना है कि सरला माहेश्वरी की कविताएं मौजूदा हिंसक समय में असंगतियों के बीच नागरिक चेतना को जानने-समझने की कविताएं हैं। जबकि हिंदी-पंजाबी की साहित्यकार वीणा भाटिया मानती हैं कि साधारण पाठक भी सरला माहेश्वरी की कविताओं को पढऩा शुरू करता है तो पढ़ता ही चला जाता है और उसे लगता है कि यह तो उसकी ही बात कही जा रही है। कविताएं पढ़ते हुए समाज-व्यवस्था और राजनीति का छल-छद्म उसके सामने खुलता चला जाता है।
ये जिंदगी की मुर्दा कतारें सरला माहेश्वरी की कविताओं का पांचवां संग्रह है। इससे पहले आसमान के घर की खुली खिड़कियां, तुम्हें सोने नहीं देगी, लिखने दो और आओ आज हम गले लग जाएं प्रकाशित हुई हैं। नवीनतम (पांचवें) संग्रह में कुल पचास कविताएं हैं। संग्रहित कविताओं में एक झलक प्रस्तुत है।
किसी बैंक के शटर की आवाज से जाग जाती हैं!
एक-दूसरे को धकियाती, गरियाती और लडऩे लगती हैं,ये!
ये इस तरह की चप्पलों, जूतों, ईंटों, अख़बारों की कतारें!
ये जिंदगी की मुर्दा कतारें!
जैसे सांसों पर हुकूमत की ठोकरें!
मुर्दा नोटों की कतारें!

पुस्तक : ये जिंदगी की मुर्दा कतारें
रचनाकार : सरला माहेश्वरी
प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर (राजस्थान)
मूल्य : 250 रुपए मात्र
प्रकाशन वर्ष : 2017

 

समीक्षक : मनोज कुमार झा
समाचार संपादक, भास्करडाटकाम
फोन 7509664223, 7999596288

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Click to listen highlighted text!