सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है   Click to listen highlighted text! सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है

लता प्रासर : पांच क्षणिकाएं, दो कविताएं

सोनमाटीडाटकाम के पाठकों के लिए प्रस्तुत है गंगा और सोन के संगम पर बसे बिहार की राजधानी पटना से लता प्रासर की कविताएं। इन कविताओं में औद्योगिकीकरण, भूमंडलीकरण, शहरीकरण से हाशिए पर चले गए गांव और उसकी आंचलिकता का सुगंध मौजूद है। और, मौजूद है इन कविताओं में सभ्यता के तीव्र विकास-क्रम में कहीं पीछे छूट गई, थक गईं मानवीय संवेदनाओं को काव्य-तत्व से प्राण भर कर ताजगी का स्वर देने वाली ऊर्जा।   -संपादक

 

-0- पांच क्षणिकाएं -0-

1. इन्तजार !

इन्तजार सुबह का
सुबह बिखरने वाली लाली का
एक नए मुस्कान का
इन्तजार फिर से नए थकान का
कुछ शब्दों का, कुछ एहसासों का
इन्तजार बड़े वितान का
खुले आसमान का और अपने जहान का
हां, इन्तजार कुछ पल महान का।

2. चुलबुला-बुलबुला

हर कोई है चुलबुला-सा,
हर कोई है बुलबुला-सा।
छेड़ दो गर कान में तो
चेहरा मिलेगा खिलाखिला-सा।।

3. खिलते-मुरझाते

फूलों को मुरझाते देख
अपने मुरझाने का ख्याल आया।
फूलों को खिलते देख मुझे
खिलखिलाने का ख्याल आया।

4. फिर क्यों?

फूलों की खुशबू में तुम्हारी महक लगी।
बंद आंखें हुईं तो तुम्हारी झलक लगी।।
फिर क्यों शिकायत है मुझसे मालूम नहीं,
मेरी हर धड़कन में सांस तेरी है लगी।

5. मैया तेरी याद

मैया तेरी याद सताए कैसे तुझे बताऊं मैं।
बड़ा होने की सजा मिली है किसको समझाऊं मैं।।

 

-0- दो कविताएं -0-

(एक)   कितने रावण !

कितने रावण छुपे इधर भी
ढूंढो-पकड़ो मिले जिधर भी
लगी आग लंका में जब से
रावण हुआ सतर्क तब से
बंदर की सेना ठन आई
लंका पर किया चढ़ाई
युद्ध में नहींविराम
रावण का काम किया तमाम
राम ने बुरा मारा, बुराई बचा रहा
जन-जन रहा कराह चहुंओर हाहाकार
बचाए इससे कौन
राम आज घूम रहा मौन
हनुमान चल बसा किधर
ढूंढ लाए राम को कोई इधर।

(दो)  अरे… ओ, धान !

आओ, सूंघ लेते हैं धान की खुशबू
तर कर लेते हैं स्वासों को इनसे
ओ धान, तेरे रूखेपन की चिकनाहट
शनै-शनै तेरी आगोश में बांधती है
तेरा सुनहरा रूप सभी गहनों से छलछल है
उस पर हरी पत्तियों ने मुझे हरा कर दिया
और मैं बाग-बाग हो रही
तुम्हारे छुटपन की हरियाली
अब तक जिंदा है मुझमें
तुम्हे कुटे जाने की कल्पना
मुझे भी सोंधी कर जाती,
उस पर छाली भरी दही का साथ
अमृतमयी एहसास।

ओ धान, पगडंडियों पर तुमसे मिलना
स्वर्गिक आनन्द से भर देता मुझे
मैं कैसे समझाऊं खुद को और अपने मन को
लोग-बाग तो पागल ही कहेंगे
कहने दो ना, तेरा सान्निध्य ही प्रेम है मुझमें
ओ धान, तेरे लिए कैसे शब्द गढ़ूं
नि:शब्द हूं मैं
तूने संगीत के लिए झिंगुर को पनाह दिया
परागन के लिए तितलियों को,
और न जाने कितने साथी हैं तुम्हारे
मुझे ईष्र्या होती है इन सबसे
सच कहती हूं
तुम्हे काटकर पातन, फिर आटी
और पूंज बना मंदिर का रूप दिया जाएगा
तब झन, झन, झनाक पीटकर
तुम्हें पौधे से अलग करेंगे सब
कूटकर चूड़ा, चावल
पीसकर आटा बनाएंगे
कितने रूपों में सबके सामने परोसी जाएगी।

ओ धान, इन सबसे बिना घबराए
हमें तृप्त करने की माद्दा है तुझमें
छठ में लड़ुआ पूआ ईश्वर पाते हैं
जाड़े में ठिठुरन से बचाती
नयका चावल का पीठा
नवजात के पैर सुंदर सुकोमल रहे जीवनभर
पीठा के भांप से सेंककर
आश्वस्त होती दादी, नानी
ओ धान, तेरा रंग खुशबू
मेरे नस-नस में बसा है
ओ धान पछिया हवा के साथ तेरी खरखराहट
दुनिया के सारे लय, ताल से अद्भुत होता
ओ धान बरसों बरस जन्म जन्मांतर तक
यूं ही खनकते सरकते-लरजते रहना
मैं आऊंगी मिलने
इन्हीं पगडंडियों के सहारे अनछुए नाद सुनने
कीट पतंगों से तेरी यारी देखने
और अपने को हरी और सुगंधित करने।

ओ धान, मैं चाहती हूं तेरे लिए पुरान लिख दूं
तेरे लिए कुरान लिख दूं
तेरे लिए बाईबल लिख दूं
ओ धान, तू मेरे लिए शब्द बरसाते रहना
ओ धान, तुझमें मेरी जां बसती
मुझमें तू दीपक की तरह जलता
ओ धान, कैसे रूंकू
बहुत कुछ कह देना चाहती हूं तुझसे
बस कोई रोके नहीं कोई टोके नहीं
ओ धान, धन्य हुई मैं तुझसे।

 

– लता प्रासर
निर्मला कुंज, अशोक नगर,

कंकड़बाग, पटना-800020

फोन : 7277965160

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Click to listen highlighted text!