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अंतत: पहाड़ पर चौपाल करने पहुंचे नीतीश

डेहरी-आन-सोन, रोहतास (बिहार)-कृष्ण किसलय। बिहार के दक्षिणी सीमान्त जिले रोहतास और उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के पर्वतीय सीमा से जुड़े बिंध्य पर्वतश्रृंखला के पहाड़ कैमूर के गांव रेहल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अंतत: वनवासियों से रू-ब-रू होने और चौपाल करने पहुंच गए। नीतीश कुमार के रेहल आने का कार्यक्रम जनवरी में तीन बार रद्द हो चुका था, इसलिए इस बार भी यह संशय बना हुआ था कि कहीं पहले की तरह इस बार भी सीएम का कार्यक्रम रद्द न हो जाए! करीब एक दशक डाकुओं और फिर दो दशक नक्सलियों के आतंक के बाद शांत हुए कैमूर पठार पर सरकार का कोई मुखिया पहुंचा।

आजादी के 70 सालों बाद रोहतास जिले के कैमूर पहाड़ी पर स्थित रेहल क्षेत्र के हजारों आदिवासियों को अब बुनियादी सुविधाएं मयस्सर होंगी। मगर अभी भी पठार पर रहने वाली बहुत बड़ी वनवासी-पर्वतवासी और आदिवासी आबादी किसी समुद्री टापू की तरह कटे हुए जीवन के लिए न्यूनतम संसाधन से भी वंचित है। अगर पहाड़ पर पहुंचने के लिए रोप-वे की व्यवस्था हो जाती है तो रोहतासगढ़ बिहार का सबसे बेहतर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकेगा, क्योंकि इस किले का अतीत इस प्रदेश, देश और दुनिया के साथ अपने अति महत्वपूर्ण इबारत के साथ जुड़ा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह कहा है कि रोहतास किला तक नीचे से ऊपर तक आसानी से पहुंचने के लिए रोप-वे के निर्माण की बाधाएं लगभग दूर कर ली गई हैं, उम्मीद है रोप-वे का निर्माण कार्य जल्द शुरू हो सकेगा।

सत्ता केेंद्र रहे पहाड़ के गांव सैकड़ों सालों से उपेक्षित
वक्त के थपेड़ों में कैमूर पहाड़ पर अवस्थित बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के साथ बांग्लादेश की भी राजधानी (सत्ता केेंद्र रोहतास सरकार) रहा ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किला और इस पहाड़ के गांव सैकड़ों सालों से उपेक्षित पड़े रहे। कैमूर पहाड़ के बुधुआ, धंसा, हुरमेटा, डुमरखोह आदि दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां आज भी पेयजल के लिए गांव की औरतों को पानी अपने माथे पर कोसों दूर से ढोकर लाना पड़ता है। कैमूर पहाड़ के कई गांवों की पहाड़ी महिलाएं दूरवर्ती चुओं (पत्थरों के बीच से टपकने वाला जलस्रोत) से सैकड़ों सालों से आजीवन पानी ढोकर लाने के इस अपरिहार्य अभिशप्त कार्य के कारण गंजा (सिर पर बालविहीन) भी होती रही हैं।

कैमूर की एक पुरानी जनजाति अस्तित्व संकट में
कैमूर पहाड़ पर रहने वाली एक आदिम जनजाति कोरवां तो अंडमान की आदिम जनजाति की तरह अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है, जिसकी जनसंख्या में वृद्धि लगभग अवरुद्ध बनी हुई है। जैविक दृष्टि कोरवां जनजाति अंडमान-निकोबार की आदिम जनजातियों की करीबी मानी जाती है। जैविक विश्लेषणों, डीएनए परीक्षणों से यह तय किया जा चुका है कि अंडमान के आदिवासी पूरे एशिया के मानव समुदाय के पूर्वज हैं। अंडमान की चार सबसे पुरानी मानव प्रजातियां करीब 50-60 हजार साल पहले अफ्रीका के जंगलों से निकलकर भारत भूमि के अंडमान निकोबार द्वीप (हिन्द महासागर क्षेत्र) पर पहुंची थी और ये आदिम जनजातियां आज भी प्राकृतिक अवस्था (नंग-धड़ंग जंगली जीवन) में रहती हैं।

सभ्यता की नींव रखने अंडमान द्वीप से निकले थे बिंध्य-कैमूर के पुरखे
भारत की 72 अति आदिम जनजातियों में शामिल कैमूर पर्वत की कोरवां जनजाति और अफ्रीका की अति आदिम जनजाति की तरह दिखने वाली अंडमान की जारवां जनजाति सहित अंडमान की चारों आदिम जनजातियां अस्तित्व-संकट में हैं, जिनकी आबादी घट रही है। अंडमान की आदिम जनजातियों के बीच से एक आखिरी छोटा जनसमूह 12-15 हजार साल पहले समुद्री द्वीप से बाहर निकल आया था और हजारों सालों तक दक्षिण भारत में रहने के बाद कैमूर (बिंध्य पर्वतश्रृंखला की एक कड़ी) पठार पार कर अपनी सभ्यता के अगले हजारों सालों के पड़ाव पर उत्तर भारत की ओर निकल पड़ा था।  12-15 हजार साल पीछे अंडमान-निकोबार में ही छूटा या अलग-थलग रह गया जनसमुदाय ही आज की भारतीय उपमहाद्वीप अति आदिम चारों जनजातियों के रूप में मौजूद हैं। हैदराबाद के कोशकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र और अमेरिका के हावर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिक दल ने अध्ययन में यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत में 61 फीसदी आबादी एएसआई (पैतृक दक्षिण भारतीय) रक्त वाली है।

मुख्यमंत्री की यात्रा से पहाड़ी गांवों में जगी उम्मीद
रोहतास के कैमूर पठार पर 83 गांव आबाद हैं, जिनके बाशिंदों में मुख्यमंत्री की यात्रा के बाद विकास की उम्मीद जग गई है। देश के आजाद होने के सात दशक बाद रेहल ने कई संसाधनों से लैस होने से अन्य पर्वतीय गांवों की अपेक्षा अधिक विकास के कारण पहाड़ी गांवों में अपनीपहचान बना ली है। रेहल में नल जल जलापूर्ति व्यवस्था, 132 घरों के लिए सौर उर्जा, सौर ऊर्जा बिजली उत्पादन-वितरण के कार्य प्रगति पर हैं। बिजली का 20 केवीए का संयंत्र निर्मित हो चुका है, जबकि 15 केवीए और 20 केवीए के दो संयंत्र निर्माणाधीन हंै।
रेहल में था नक्सलियों का गढ़, मारे गए थे डीएफओ
रोहतास जिले के नौहटा प्रखंड का आदिवासी समुदाय बहुल 30-32 हजार की आबादी वाला पहाड़ी गांव रेहल पुराने जमाने में वन विभाग का क्षेत्रीय कार्यालय था। चारों तरफ जंगल से घिरे रेहल में दो दशकों तक नक्सलियों का साम्राज्य रहा, जिस दौरान वन प्रमंडल अधिकारी संजय सिंह की 15 फरवरी 2002 को नक्सिलयों ने नृशंस हत्या कर दी थी। उस हत्याकांड को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया था और तत्कालीन राज-व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया था।

पहले तीन बार टल चुकी थी सीएम की रेहल यात्रा
मुख्यमंत्री के विकास कार्यों की समीक्षा यात्रा के अंतर्गत रेहल आने कार्यक्रम सबसे पहले 13 जनवरी 2018 को तय हुआ था, मगर 10 जनवरी को उनके कार्यक्रम-स्थल में परिवर्तन हो गया। मुख्यमंत्री रोहतास जिले के संझौली प्रखंड के सुसाडी गांव में आए और यह कहा कि मैं वनवासियों को भूला नहीं हूं, 22 जनवरी को रेहल जाऊंगा। तब जिला प्रशासन के अधिकारी सीएम के रेहल दौरे की तैयारी में लग गए। लेकिन, सीएम के रेहल आने का 22 जनवरी का कार्यक्रम टला गया। फिर यह जिला मुख्यालय को यह संदेश मिला कि मुख्यमंत्री 22 से 25 जनवरी तिथि के बीच आ सकते है। इस अवधि में भी मुख्यमंत्री का कार्यक्रम नहींतय हो सका। इसके बाद 27 जनवरी को सीएम के रेहल दौरे की तिथि तय हुई। मगर इस दिन मुख्यमंत्री सासाराम पहुंचे और पायलट बाबा आश्रम और डीआरडीए सभागार में चार जिलों (रोहतास, भोजपुर, कैमूर व बक्सर) के अधिकारियों के साथ विकास कार्यों की समीक्षा बैठक कर वापस पटना लौट गए।

पहाड़ पर पहुंचने के लिए 5 अप्रैल की शाम में ही आ गए नीतीश
बहरहाल, रेहल के लिए तारीख-दर-तारीख लगने के बाद अंतत: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास कार्यों की प्रगति का समीक्षा करने रेहल पहुंच गए। कैमूर के पहाड़ी गांव रेहल जाने के लिए मुख्यमंत्री 5 अप्रैल को ही देर शाम सड़क मार्ग से सासाराम पहुंचे, जहां के न्यू स्टेडियम में मुख्यमंत्री को 6 अप्रैल हवाई मार्ग से रेहल पहुंचाने के लिए हेलीकाप्टर पहले ही पहुंच चुका था। 06 अप्रैल की सुबह हेलीकाप्टर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रेहल के लिए रवाना हुए और रेहल हेलीपैड पर उतरने के बाद रोहतास जिले के अधिकारियों के साथ सात निश्चय योजनाओं के साथ अन्य योजनाओं की समीक्षा बैठक करने के बाद वापस पटना के लिए लौट गए।
 पुलिस की चौकस व्यवस्था
मुख्यमंत्री की सुरक्षा-व्यवस्था में सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल रेहल में मौजूद था। इसके अलावा जिले के अनेक हिस्सों में पुलिस गश्त की चौकस व्यवस्था की गई थी। मुख्यमंत्री की यात्रा के मद्देनजर प्रखंड स्तर से जिलास्तर तक के अधिकारियों ने रेहल डेरा डाल रखा था।

ग्रामीणों से मिलकर समस्याएं जानीं

सीएम दौरे से पहले राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के विधायक ललन पासवान ने कैमूर पठार के अन्य गांवों के ग्रामीणों से मिलकर उनकी समस्याएं जानीं और यह कहा कि रेहल की तरह सभी गांवों में पेयजल, बिजली (सौर ऊर्जा चालित), चिकित्सा, शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं मयस्सर कराई जाएंगी।

समस्याओं को दूर करने के लिए सक्रिय बने रहे

मुख्यमंत्री के रेहल कार्यक्रम में चेनारी (कैमूर जिला) के निवर्तमान विधायक श्यामबिहारी राम (डेहरी-आन-सोन) भी पहुंचे थे। वह बतौर विधायक लगातार पांच वर्षों तक क्षेत्र की समस्याओं से रू-ब-रू होते रहे और रोप-वे, अन्तरराज्यीय व अन्य पुल, अकबरपुर से अधौरा तक सड़क, नौहट्टा में डिग्री कालेज और अन्य बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए सक्रिय बने रहे थे।

तस्वीर : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार (लाइवसिटी से साभार), वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र मिश्र  और निशांत राज

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