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कैलिफोर्निया के डाक्टर ने कहा मर्ज लाइलाज, मगर होमियोपैथ की गोलियों से ही कैंसर की जंग फतह

 

यह कहानी है बड़े अस्पतालों से रिटर्न हुए मरीजों की। कई मरीजों का कहना है, डा. की मीठी गोलियों पर भरोसा करने और बताए गए दिशा-निर्देश का सौ फीसदी पालन करने की आवश्यकता है, बीमारी पर जीत मिलनी तय है। बिहार के औरंगाबाद जिला के दाउदनगर के चिकित्सक डा. मनोज कुमार की मानें तो मरीज होमियोपैथ पर भरोसा करें, धैर्य रखें और बताए गए परहेज का पूरा पालन करें तो कैंसर और अन्य कई खतरनाक बीमारियां भी होमियोपैथ से ठीक हो जाएंगी।

-उपेंद्र कश्यप की रिपोर्ट-

दाउदनगर (औरंगाबाद)-विशेष संवाददाता। आम धारणा यही है कि होमियोपैथ की सफेद मीठी गोलियों और पारदर्शी लिक्विड पर एलोपैथ चिकित्सा पद्धति के त्वरित प्रभाव के मुकाबले लोग जल्दी भरोसा नहीं करते, क्योंकि एलोपैथ का प्रभाव तो तत्क्षण दिखता है जबकि होमियोपैथ धीरे-धीरे असर करता है। एलोपैथ की दुनिया में दवा और चिकित्सा पद्धति का व्यापक विस्तार है। जबकि हैनिमैन की होमियोपैथी में आम तौर एक ही तरह की दिखने वाली सफेद मीठी गोली और लिक्विड का ही मुख्य संसार होता है, जिससे सभी तरह की बीमारी के लिए हर दवा का रंग-रूप एक जैसा दिखता है। होमियोपैथी के जनक हैनिमैन की इस पद्धति में कई बीमारियों और कई असाध्य माना जाने वाले  रोगों का भी शर्तिया इलाज है। यह कहना है बिहार के औरंगाबाद जिला के दाउदनगर के मौलाबाग के चिकित्सक डा. मनोज कुमार का।

शिक्षक अनिल कुमार ने तो छोड़ दी थी जिंदगी पर भरोसा
बुकनापुर गांव निवासी शिक्षक अनिल कुमार को 2010 में कैंसर हो गया था। हालांकि तब एम्स ने क्लियर नहीं किया था अर्थात सौ फीसदी यह नहींबताया था कि मरीज को कैैंसर है, मगर उन्हें होने के लक्षण का संकेत मिला था। अनिल कुमार भेलौर के मशहूर अस्पताल सीएमसी गए तो वहां उन्हें ऑर्थराइटिस से ग्रस्त होना बताया गया। मर्ज वहां भी ठीक नहीं हुआ। फिर वे मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल गए, जहां पता चला कि मरीज को मल्टीपल माइलोमा है, जो एक तरह का ब्लड कैंसर ही है और इस मर्ज ने मरीज को चौथे स्टेज तक जकड़ रखा है, जो फिलहाल लाइलाज है। इस मर्ज के पूरी तरह कभी ठीक नहीं हो सकने की बात कैलिर्फोिर्नया में कार्यरत डा. नरसिम्हा ने भी कही थी और यह बताया था कि यह मर्ज पूरी तरह तो कभी ठीक नहीं हो सकता, मगर संयमित रह और अपने को स्वस्थ रखकर इस मर्ज से लंबे समय तक लड़ा जा सकता है। वह डा. मनोज कुमार की क्लिनिक में इलाज कराया। अब ठीक हैं।
कैैंसर से मुक्ति पा धनकेसरी देवी 85 की उम्र में भी फीट
अनिल कुमार की माँ धनकेसरी देवी को 1998 में यूट्रस कैंसर हुआ था। तब 65 वर्ष की उम्र थी। पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान से धनकेसरी देवी का इलाज पांच सालों तक चला था। 85 साल की उम्र में वह डा. मनोज कुमार की क्लिनिक में बतौर कैैंसर की पहली मरीज आयी थीं। वह अब भी पूरी तरह स्वस्थ हैं और इस उम्र में खुद क्लिनिक पहुंचती हैं।
रीसते घाव से परेशान थे राहुल, अब बीएड कर जिंदगी संवारने की तैयारी
दाउदनगर के पुरानी शहर निवासी राहुल कुमार सीएमसी (भेलौर) से रिटर्न हुए थे। हसपुरा में हुई दुर्घटना में 03 मार्च 2015 को पैर घायल कर बैठे थे। एक साल भेलौर रहे। पैर में रड लगा हुआ था। जख्म ठीक नहीं हो रहा था। एक जख्म ठीक होता तो फिर उसकी जगह दूसरा जख्म बन जाता था। रीम (पीव) बहता रहता था। किसी का सहारा लेकर उन्हें उठना-बैठना पड़ता था। शहर के लोगों के चंदा सहयोग से 13-14 लाख रुपये खर्च हो चुका था। दो सालों से काफी परेशान थे। उनकी जानकारी होने पर डा. मनोज कुमार खुद उनके पास गए। उन्हें होमियोपैथ पर भरोसा नहीं था, मगर इनके पिता विजय चौरसिया को होमियोपैथ पर विश्वास था। डा. मनोज कुमार ने नि:शुल्क चिकित्सा किया। स्थिति बदली। अब वह स्वस्थ हो गए है, उनका मर्ज लगभग ठीक हो चला है। सिर्फ एक ही दवा का इलाज चला। ट्रीटमेंट शुरू होने के दो-तीन महीने बाद ही राहुल कुमार मानसिक तौर पर सहज हो गए। उनका मनोबल अब इतना बढ़ चुका है कि वह भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कॉलेज (दाउदनगर) से बीएड कर रहे हैं।
प्रोस्टेट कैैंसर के मरीज श्याम कुमार अब स्वस्थ
विवेकानन्द मिशन विद्यालय समूह के शिक्षक श्याम कुमार को प्रोस्टेट कैैंसर होने की बात बतायी गयी थी। उन्होंने एलोपैथ इलाज से थक-हार जाने के बाद होमियोपैथ का इलाज शुरू कराया। एक साल से इलाजरत श्याम कुमार अब अपने को पूरी तरह स्वस्थ बताते हैं।
ब्लेडप्रेसर से पीडि़त थे ज्योतिषाचार्य
ज्योतिषाचार्य तारणी कुमार इंद्रगुरु ने बताया कि ब्लेड प्रेसर से परेशान थे। मात्र एक खुराक में ठीक हो गए। हर्ष कुमार (विश्वम्भर बिगहा, दाउदनगर) को जन्म के बाद से ही परेशानी हो रही थी। इस बालक को निमोनिया हो गया था। लगातार 104-105 डिग्री फारेनहाइट बुखार रहता था। उसकी उम्र तीन साल है। पिछले दो साल से होमियोपैथ का इलाज चल रहा है। अब सब कुछ ठीक हो चुका है।

तीन साल की सुहानी जन्म से ही थी परेशानहाल 
मात्र तीन साल की है सुहानी कश्यप। औरंगाबाद, पटना और वाराणसी में भी इलाज कराया। स्वास्थय लाभ नहीं मिला। जन्म के समय से ही सामान्य शारीरिक विकास के अभाव में पैखाना-पेशाब नहीं हो पाता था। पेशाब बिना नली लगाए होता ही नहीं था। ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प बताया जा रहा था। हर्ट में छेद और डाउन सिंड्रोम की भी शिकायत थी। होमियोपैथ के इलाज के बाद अब स्वस्थ। पढ़ती भी है और बालसुलभ चंचलता भी उसमें आ चुकी है।
एथेलिट्स दयानंद शर्मा दूसरे को सहारा देने की हालत मेें
एथेलिट्स रहे सेवानिवृत्त नागरिक दयानंद शर्मा के दोनों पैरों में सूजन रहता था। तीन सालों तक इलाज कराने के बाद थक गए तो अंत में होमियोपैथ के इलाज में डॉक्टर मनोज कुमार के पास गए। एक साल में ठीक हो चुके दयानंद शर्मा कहते हैं कि अब तो किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं, दूसरे को सहारा देने के लिए तैयार हूं। शिक्षक मनीष कुमार संसा गांव के निवासी हैं। किडनी में स्टोन था, जो अब ठीक हो चुका है।

(साथ में : निशान्त राज)

ज्ञान ज्योति के सामने बदबूदार कचरे का ढेर, रहना-गुजरना मुश्किल

दाउदनगर (औरंगाबाद)-सोनमाटी संवाददाता। पुराना शहर (वार्ड 09) के ज्ञान ज्योति शिक्षण केन्द्र के निकट (पाकुड़ के पेड़ के पास) कचरे का अम्बार पसरा हुआ है। यह स्थिति सालोभर रहती है। लोगों को आने-जाने में बदबू का सामना करना पड़ता है। महिलायें नाक बंद कर ही इस रास्ते से गुजर पाती हैं। इस कचरे के अंबार के बगल में नाली है और कचरा के नाली में जाने से नाली जाम हो जाती है। बारिश में तो पानी के बहाव के कारण इससे बीमारी फैलने की आशंका रहती है।

ग्रामीणों का कहना है कि सफाई कर्मचारी सफाई नहीं करता, सिर्फ खानापूर्ति करता है। पुरानी शहर मुहल्ले का कचरा इसी जगह पर लोग भी फेेंकते हैं और सफाई कर्मचारी भी। जबकि यह रास्ता शहर का मुख्य पथ है। इसके निकट ही विद्यालय है, जिसके बच्चे इस बदबू के शिकार हो रहे हैं। सरकारी चापाकल भी कचरा के स्थान के बगल में है। हालांकि फिलहाल वह प्रशासनिक नजरअंदाजी की वजह से महीनों से खराब पड़ा है। पुरानी शहर की महिलाओं का कहना है कि चापाकल के सही होने पर भी वे उसके पानी का उपयोग कचरे के भारी दुर्गंध के कारण नहीं कर पाती हैं। कचरे की दुर्गध से पास-पड़ोस के लोगों को रहना मुश्किल जैसा हो गया है।

(तस्वीर : निशान्त राज)

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