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डा. राजेन्द्र प्रसाद : विधिज्ञ संघ जयंती मनाएगा, सौ साल पुराना इतिहास बताएगा

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-विशेष प्रतिनिधि। डिहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ भारत के अग्रणी अधिवक्ता, सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद की 134वीं जयंती मनाएगा। यह फैसला विधिज्ञ संघ की कार्यकारिणी की संघ के अध्यक्ष उमाशंकर पांडेय की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया। बैठक में अन्य मुद्दों पर विमर्श किया गया, जिनमें सब-जज, एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के लिए मुख्य न्यायाधीश से संघ के शिष्टमंडल के मिलने, अनुमंडल व्यवहार न्यायालय के लिए बंदोबस्त हुई जमीन पर विधिज्ञ संघ के भवन निर्माण, मौजूर संघ परिसर में वाहनों का अतिक्रमण रोकने और संघ के वार्षिक आय-व्यय शामिल थे। बैठक में अनुमंडल विधिज्ञ संघ के सचिव मिथिलेश कुमार, कमल कुमार, काशीनाथ गुप्ता, डा. संजय कुमार, महेन्द्र गुप्ता, संजयकुमार सिंह, खुर्शीद आलम, चंद्रिका राम, देवनाथ सिंह आदि उपस्थित थे।

80 साल पहले आए थे डा. राजेन्द्र प्रसाद, कागज कारखाना का किया था उद्घाटन
डा. राजेंद्र प्रसाद 80 साल पहले सोनतट पर बसाए गए बिहार के रोहतास जिला अंतर्गत रोहतासनगर (डालमियानगर) में आए थे। डेहरी-आन-सोन के उपनगर डालमियानगर का नाम रोहतासनगर ही रखा गया था और वहां पहला कारखाना (चीनी मिल) रोहतास शुगर लिमिटेड नाम से स्थापित किया गया था, लेकिन वह उपनगर डालमिया बंधुओं द्वारा स्थापित होने के कारण इसी नाम से प्रचलित हो गया। डा. राजेंद्र प्रसाद ने डालमियानगर के रोहतास उद्योगसमूह के कागज कारखाना का उद्धाटन किया था। तब वह राष्ट्रपति नहींथे, मगर उनकी ख्याति देश भर में अग्रणी अधिवक्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में थी। तब रोहतास इंडस्ट्रीज के कागज कारखाना की मशीन देश में अपनी तरह की एकमात्र मशीन थी। वैसी दूसरी मशीन पूरी दुनिया में जर्मनी में ही थी। डालमियानगर की मशीन 35 साल पहले कारखानों के बंद हो जाने के कारण कबाड़ हो गई, जबकि जर्मनी की दूसरी मशीन दूसरे विश्वयुद्ध में ही नष्ट हो गई थी।

इससे पहले बहुआरा गांव में बैलगाड़ी से आए थे, भारत-कोकिला भी थीं साथ में
डा. राजेन्द्र प्रसाद इससे भी डेढ़ दशक पहले रोहतास जिले में आ चुके थे। उन्होंने 1922 में करगहर प्रखंड के बहुआरा गांव में खर-दूषण पाठशाला और पुस्तकालय के लिए प्रवासी भवन की आधारशीला रखी थी, जिन्हें अफ्रीका में महात्मा गांधी पहले सत्याग्रह शुरू करने वाले स्वाधीनता सेनानी एवं पत्रकार भवानीदयाल संन्यासी ने अपने गांव बहुआरा में आमंत्रित किया था। डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ भारत-कोकिला के रूप में ख्यात कवयित्री सरोजनी नायडू भी बैलगाड़ी से आई थीं। डा. राजेंद्र प्रसाद और सरोजनी नायडू रेलगाड़ी से कुदरा पहुंचे थे और फिर वहां से कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी की यात्रा की थी। तब गया से डेहरी-आन-सोन होकर पं.दीनदयालनगर (मुगलसराय) रेललाइन का निर्माण नहींहुआ था और कोलकाता या पटना से आने वालींं रेलगाडिय़ां पटना से आरा होकर डेहरी-आन-सोन तक आती थीं।
महात्मा गांधी जबरन नील की खेती कराने वाले निलहों (अंग्रेज जमींंदारों) के विरुद्ध प्रमाण एकत्र करने आंदोलनकारी किसान राजकुमार शुक्ल के आग्रह पर अप्रैल 1917 में चंपारण पहुंचे थे। तब उन्होंने उस समय बिहार के दो प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं डा. राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद और अन्य के साथ निलहे अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध हजारों किसानों का बयान महीनों तक मेहनत कर दर्ज किया था। इसके बाद 1918 में नील की खेती की तीन कठिया प्रथा समाप्त हुई और निलहे अंग्रेज अपनी कोठियां, जमीन बेचकर पलायन करने लगे। डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से कानून में डाक्टरेट की उपाधि हासिल कर एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में अपना करियर शुरु किया था। मगर महात्मा गांधी से प्रभावित हो वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। वह ऐसी प्रतिभा थे, जिनकी परीक्षा कापी पर परीक्षक ने लिखा था- द एक्जामिनी इज बेटर दैन द एक्जामिनर। वह 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद छोडऩे पर उन्होंने एक बार फिर 1939 में कांग्रेस की कमान बतौर अध्यक्ष संभाली थी। उन्होंने अपनी आत्मकथा और कई पुस्तकें भी लिखी हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले भारत का संविधान बनाने वाली संविधान सभा के अध्यक्ष थे। वह 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक राष्ट्रपति रहे। 1962 में अवकाश प्राप्त करने पर उन्हें सबसे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न दिया गया। हालांकि अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें देशरत्न के नाम से पुकारा जाता था।

(रिपोर्ट : कृष्ण किसलय, तस्वीर संयोजन : निशान्त राज)

 

 

लोककथाओं और लोकपंरपराओं में निहित हैं इतिहास के तत्व

बक्सर (बिहार)-सोनमाटी समाचार। रंगश्री, क्रिएटिव हिस्ट्री ट्रस्ट और प्रतिश्रुती की ओर से संयुक्त रूप से छठवां बक्सर ग्रामीण लेखक इतिहासकार सम्मेलन और रामायण चौबे स्मृति लोकव्याख्यान-2018 आयोजन किया गया, जिसमें युवा इतिहासकार लक्ष्मीकांत मुकुल ने अपने विषयवस्तु (मेरा गांव, मेरा इतिहास) पर व्याख्यान दिया, प्रतिष्ठित कथाकार सुरेश कांटक ने विषय प्रवर्तन किया और वरिष्ठ लेखक हरिनंदन कुमार (डुमरांव) ने अध्यक्षता की। कुमार नयन, बिमल कुमार, शशांक शेखर, अरूणमोहन भारवी, कल्याण सिंह, कृष्णानन्द चौबे, वैदेहीशरण श्रीवास्त्व, श्रीराम मुरारी, श्याम जी, मीरा सिंह ने भी अपने विचार रखे। वक्ताओं ने यह कहा और माना कि लोककथाओं और लोकपरम्पराओं में आंचलिक (ग्रामीण) इतिहास के तत्व निहित होते हैं, जो मुख्य इतिहास के समानांतर भी चलती रहती हैं। ग्रामीण इतिहास इन परम्पराओं में बतौर दस्तावेज दर्ज होता है, जिन्हें वैज्ञानिक कसौटी पर चिह्निïत करने और सटीक तरीके संकलित करने की जरूरत है। इस सम्मेलन में कविता पाठ और मुशायरा के कार्यक्रम में शायर मोहम्मद सैफी ने अपनी गजल व नज्म पेश की।

(कविता में गांव से : लक्ष्मीकांत मुकुल की रिपोर्ट)

 

 

जरूरतमंद बच्चों को बांटे गए वस्त्र

दाउदनगर (औरंगाबाद)-सोनमाटी संवाददाता। पहचानोडाटकाम की ओर से दाउदनगर के वार्ड संख्या-12 में करीब सौ बच्चों में वस्त्रवितरण किया गया।

राजेश कुमार, बसंत कुमार, रामेश्वर प्रसाद, रौशन सिन्हा, आलोक टंडन, दिनेश कुमार, बबलू भैया, संतोष अमन आदि ने कार्यक्रम का संयोजन किया।

पहचानोडाटकाम की ओर से 25 दिसम्बर को भी शहर के दूसरे वार्ड में वस्त्र वितरण का कार्य किया जाएगा।

 

पत्रकार के पिता और चाची का निधन, सोनतट पर दाहसंस्कार

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। डालमियानगर के रोहतास शुगर लिमिटेड में तकनीकी कर्मचारी रहे सीताराम सिंह का निधन हो गया, जिनका श्राद्ध-कार्य का समापन उनके मकराईं स्थित आवास पर ब्रह्म्ïाभोज के साथ 9 दिसम्बर को होगा। वह डेहरी-आन-सोन के वरिष्ठ पत्रकार और सत्यकथा लेखक रहे रामजी रंजन के पिता थे और श्री रंजन उनके ज्येष्ठ पुत्र हैं। सीताराम सिंह की उम्र करीब सौ साल की थी। वह डालमियानगर रोहतास उद्योगसमूह परिसर में 1933 में स्थापित हुए सबसे पहला कारखाना रोहतास शुगर लिमिटेड में कार्यरत थे, जो बीती सदी के छठवें दशक में बंद हो गया।
उधर, दैनिक भास्कर के अनुमंडल संवाददाता उपेन्द्र कश्यप की बड़ी चाची का रोहतास जिला के रोहतास प्रखंड के दारानगर गांव में निधन हो गया, जिनका दाह-संस्कार सोन तट पर किया गया। उपेन्द्र कश्यप दारानगर के ही निवासी हैं, जो अपने पिता के साथ औरंगाबाद जिले के दाउदनगर में बस गए हैं।

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