सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है   Click to listen highlighted text! सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है
इतिहासदेशसमाचारसोन अंचलसोनमाटी एक्सक्लूसिव

माइलस्टोन : भारत की ग्रैंडकार्ड रेललाइन पर तिहरा सोन लिंक पुल

सोनमाटीडाटकाम पर प्रसारित इस रिपोर्ट पर प्रबुद्ध वर्ग ने सोशल मीडिया (व्हाट्सएप, फेसबुक, जीमेल, स्थानीय वेबसाइट) पर पर्याप्त नोटिस ली है। दिल्ली में बाल शिक्षण पद्धति के अग्रणी विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत लेखक कौशलेन्द्र प्रपन्न ने व्हाट्स पर संदेश भेजा है कि रिपोर्ट बहुत सारगर्भित है। प्रशंसा करने वालों में पंजाबी-हिन्दी की अग्रणी लेखिका वीणा भाटिया, वरिष्ठ पत्रकार-कवि मनोज कुमार झा शामिल हैं और शेयर करने वालों में सोन नद अंचल (डेहरी-आन-सोन) के अग्रणी कवि, पत्रकार, फिल्म अभिनेता कुमार बिन्दु और असम में हिन्दी शिक्षक, कहानीकार, उपन्यासकार चितरंजनलाल भारती भी शामिल हैं। नागपुर से वरिष्ठ संपादक कल्याण कुमार सिन्हा ने अपने न्यूजपोर्टल (विदर्भ आपला) पर प्रसारित करने के लिए अनुमति मांगी। कल्याण जी को धन्यवाद।

डेहरी-आन-सोन (निशान्त राज/अवधेश कुमार सिंह)। बिहार के सोन अंचल के गौरवशाली इतिहास में सोन नद रेल पुल की तीसरी लाइन पर रेल-यातायात आरंभ होने के साथ एक और अध्याय जुड़ गया। बिहार में रोहतास और औरंगाबाद जिलों की सीमा पर स्थित देश की अति महत्वपूर्ण लाइफलाइन ग्रैंडकार्ड रेलमार्ग को जोडऩे वाले सोन नद रेल पुल की तीसरी लाइन पर यातायात आरंभ कर भारतीय रेल ने नया माइलस्टोन स्थापित किया है। अपनी उम्र पूरी कर चुके सोन नद के पुराने रेल पुल (अपर सोन ब्रिज) पर रेल-यातायात पांच साल पहले बंद कर दिया गया था और नए पुल पर 16 अक्टूबर 2014 से रेलगाडिय़ों का आवागमन आरंभ हुआ था। मगर तिहरी रेललाइन वाले नए रेल पुल की तीसरी लाइन पर रेल परिचालन शुरू नही हुआ था। रेल परिचालन की नई तकनीक वाली इंटरलाकिंग का कार्य डेहरी-आन-सोन (रोहतास जिला) के बाद सोननगर (औरंगाबाद जिला) में भी पूरा हो जाने पर अब तिसरी रेललाइन पर रेलगाडिय़ों का आवागमन शुरू कर दिया गया है। कोयला, अबरख, लौहअयस्क के खदानों वाले पूर्वी भारत को जोडऩे वाले भारतीय रेल के ग्रैंडकार्ड लाइन पर हर सात मिनट से भी कम समय में एक ट्रेन गुजरती है। हालांकि 19वींसदी में भारत की राष्ट्रीय राजधानी रहे कोलकाता से दिल्ली, मुम्बई, जम्मू, देहरादून आदि को जोडऩे वाली इस ग्रैंडकार्ड रेललाइन पर महत्वपूर्ण यात्री रेलगाडिय़ों का आवागमन होता है, मगर देश की आर्थिक धमनी के रूप में स्थापित यह रेललाइन मुख्यत: मालवाही रेलमार्ग है।
पांच साल पहले खारिज हुआ था एक सदी पुराना तीन किलोमीटर लंबा सोन रेल पुल

सोन नद पर पुराना लौह रेल पुल (अपर सोनब्रिज) 1900 में चालू हुआ था, जिसका अस्तित्व अगले कुछ महीनों में सोन नदी से पूरी तरह लुप्त हो जाएगा। क्योकि, इसे रेलवे ने चिनार स्टील सिग्मेन्ट प्राइवेट लिमिटेड को 26 करोड़ रुपये में बतौर कबाड़ बेच दिया है, जिसके काटे जाने का कार्य मार्च 2018 से जारी है। 10 हजार फीट से भी ज्यादा (3.059 किलोमीटर) लंबा पूरी तरह लोहे से बना पुराना सोन रेल पुल (अपर सोनब्रिज) पत्थरों को तराश कर बनाए गए 93 पायों पर एक सदी से अधिक समय तक खड़ा रहा। इस पुल के एक से दूसरे पाये के बीच की दूरी 30.48 मीटर है अर्थात इतनी लंबी लोहे की प्लेटें हर पाये पर रखी गई। सवा सदी पहले इस पर 38 लाख रुपये का खर्च आया था। पुराने सोन रेल पुल की एक लाइन पूरबी छोर (सोननगर) की तरफ से काटी जा चुकी है। दूसरी लाइन काटी जानी बाकी है।
डेहरी-आन-सोन है सोन नद तट का सबसे बड़ा शहर, लंदन की तर्ज पर रखा गया था यह नाम

सोनघाटी पुरातत्व परिषद (बिहार) के सचिव, विज्ञान लेखक और सोनघाटी से संबद्ध जिलों के इतिहास के अध्ययन-अन्वेषण कर्ता कृष्ण किसलय के अनुसार,   डेहरी-आन-सोन भारतीय रेल (हाजीपुर मुख्यालय वाला पूर्व-मध्य रेल) का सोन नद तट का रेलस्टेशन है और मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलकर बिहार के पटना में मिलने वाले सोन नद के किनारे पर बसा इस नद तट का सबसे बड़ा शहर है। सोन नद का पुराना रेल पुल (अपर सोनब्रिज) जब चालू हुआ था, तब यह एशिया में सबसे लंबा रेल पुल था, जिसका स्थान तब के दुनिया के सबसे लंबे रेल पुल टे-ब्रिज के बाद था। लोहे के इस पुराने पुल के पायों का निर्माण कैमूर-बिन्ध्य पर्वत श्रृंखला के करवन्दिया और धौंडांड पर्वतश्रृंगों से लाए गए पत्थरों से किया गया था। बड़े-बड़े पत्थर-खंडों को साइज में तराशने, नट-बोल्ट लगाने आदि का कार्य ईस्ट इंडिया इरीगेशन कैनाल कंपनी के एनिकट (डेहरी-आन-सोन) स्थित 19वीं सदी के विश्व के एक सबसे विशाल कारखाना (सिंचाई यांत्रिक कार्यशाला) में किया गया था। उसी समय ब्रिटिश इंडिया सरकार ने सोन तट पर बसे देहरी घाट और बुधवारी डिहरी बाजार वाले कस्बे (स्टेशन) का नाम डेहरी-आन-सोन रखा।
सोन भारत के तीन नदों में से एक, हजारों साल से है नद की ऐतिहासिक संज्ञा

कृष्ण किसलय के अनुसार, देश की आजादी के बाद भी डेहरी-आन-सोन रेलस्टेशन पर बिकने वाले रेलटिकट पर देहरी घाट छपा होता था। इस रेल स्टेशन का नाम लंदन के तर्ज पर रखा गया, जिसे टेम्स (थेम्स) नदी के किनारे बसे होने के कारण बोलचाल में सिटी आफ टेम्स कहा जाता था। टेम्स नदी 18वीं सदी में दुनिया का एक सबसे व्यस्त जलमार्ग था। तब सोन नद पर बनी विश्वविश्रुत नहर प्रणाली भी माल और यात्री वाहन का बड़ा उपक्रम था, जिसमें करीब पांच हजार वाष्पचालित स्टीमरें चलती थीं। डेहरी-आन-सोन में जिस जगह (एनिकट-तारबंगला) के पहले लख (लाक) से सोन नहर में स्टीमर खुलती थी, वहां पत्थर के स्तंभपट पर देहरी घाट लिखा हुआ था, जिसे कुछ साल पहले नहर की मिट्टी डालकर जमींंदोज कर दिया गया।

भारतीय वांग्मय में भारतीय उपमहद्वीप की तीन सबसे बड़ी नदियों सोन, सिंधु और ब्रह्म्ïापुत्र को नद की संज्ञा दी गई है। सोन की ऊपरी घाटी गंगा की घाटी से भी बहुत पहले हजारों सालों से मानवीय गतिविधियों से गुलजार रही है। 71 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का पानी समेटने वाले भारत के 14वें लंबे जलप्रवाह सोन को प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों (7वीं सदी के संस्कृत के प्रथम उपन्यासकार वाणभट्ट, 9वीं सदी के संस्कृत के महाकवि राजशेखर, ब्रह्म्ïाांड पुराण आदि ) में महानद कहा गया है। कोई दो हजार साल पहले यूरोपीय भूगोलवेत्ता टालेमी ने अपनी पुस्तक में सोन को सोआ और इससे कोई चार सदी पहले यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने इसे एरनबाओस कहा है, जिसके संगम (सोन-गंगा) पर बसा पोलिम्बोथा (आज का पटना) दुनिया का सबसे बड़ा शहर हुआ करता था। जबकि पांच सदी पहले भी तुलसीदास ने महानद सोन कहा है।
(विशेष रिपोर्ट : निशान्त राज/अवधेशकुमार सिंह, साथ में वारिस अली, तस्वीर : वीरेन्द्र पासवान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Click to listen highlighted text!