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रैगिंग मानवीय गरिमा, व्यक्ति-स्वतंत्रता और कानून के विरुद्ध : कुलपति डा. वर्मा

डेहरी-आन-सोन (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। गोपालनारायण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति डा. एमएल वर्मा ने कहा कि रैगिंग मानवीय गरिमा, व्यक्ति-स्वतंत्रता और कानून के भी विरुद्ध है। वह नारायण मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल सभागार में मेडिकल कालेज की ओर से आयोजित रैंिगंग निषेध संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने रैगिंग के इतिहास, भारत में इसके कुप्रथा बनने और इसके निषेध के लिए सुप्रीम कोर्ट के स्वत:संज्ञान लेने व कानून बनाए जाने की सविस्तार जानकारी दी।
सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान, कालेजों में बनाए गए एंटी-रैगिंग सेल
डा. वर्मा ने जानकारी दी कि सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में रैगिंग की बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए इसके अध्ययन के लिए सीबीआई के तत्कालीन निदेशक की अध्यक्षता में कमेटी बनाई और कमेटी की रिपोर्ट के बाद 2009 में साफ तौर पर कहा कि रैगिंग में संलिप्त छात्र के विरुद्ध क्रिमिनल केस दर्ज होगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इंडियन मेडिकल काउंसिल और यूजीसी ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की शिकायत के लिए टोलफ्री फोन नम्बर और एंटी-रैगिंग सेल के गठन की की व्यवस्था की। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से शिक्षा संस्थानों के लिए रैगिंग के विरुद्ध कड़े निर्देश जारी किए गए। हालांकि 1997 में ही देश में सबसे पहले तमिलनाडु विधानसभा ने एंटी-रैगिंग कानून बनाया था। उन्होंने बताया कि रैगिंग का जन्म यूरोपीय देशों में हुआ, जहां सेना में जूनियर को सीनियर की अधीनता-दासता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाता था। उपनिवेश काल (अंग्रेजी राज) में भारत में इसका प्रवेश हुआ और आज यह भारत सहित पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका के उच्च शिक्षण संस्थानों में आतंकित करने वाला शब्द बन गया है। 2009 में हिमाचल प्रदेश के मेडिकल कॉलेज के छात्र को रैगिंग के कारण जान गंवानी पड़ी। एक मेडिकल कॉलेज की छात्रा तो रैगिंग के सदमे से कई दिनों तक उबर नहीं पाई और वह पागल हो गई।

मानवाधिकार का हनन है रैंिगंग, विवेक से करें सामना
डेहरी-आन-सोन के अनुमंडलाधिकारी गौतम कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालयों-कालेजों में वरिष्ठ छात्र परिचय के नाम पर अपमानजनक तरीके से रैगिंग करते हैं। रैगिंग मानवाधिकार का हनन है। आधुनिकता के साथ रैगिंग के तरीके भी बदलते गए हैं। आपत्तिजनक व्यवहार, छेड़-छाड़, मारपीट के वीभत्स रूप रैगिंग में सामने आए हैं। कई मामलों ने इसे मानसिक-शारीरिक उत्पीडऩ के रूप में कुख्यात बना दिया है। रैगिंग के दौरान अगर यह महसूस होता है कि सीनियर छात्र परिचय के नाम पर मर्यादा की सीमा लांघ रहे हैं तो वे तत्काल वहां से हट जाएं। ऐसा संभव नहींहो तो ऐसी स्थिति का सहजता से विवेक से सामना करें और जरूरी होने पर कालेज प्रशासन और अपने परिवार को इसकी जानकारी दें। किसी कार्य को करने के लिए कोई भी आपको मजबूर नहीं कर सकता है और कोई बात पसंद नहीं आने पर उस जगह से हट जाने से कोई नहीं रोक सकता है।
सामाजिक संदर्भ के साथ बताया कानूनी पहलू
डेहरी-आन-सोन के थानाध्यक्ष धर्मेन्द्र कुमार ने रैगिंग के प्रति कानूनी पहलू और सामाजिक संदर्भ को विस्तार से रखा। कहा कि यह उल्लेखनीय बात है कि अब तक थाना में नारायण मेडिकल कालेज से रैंगिग को लेकर एक भी मुकदमा नहींआया है। जबकि गया और पटना के मेडिकल कालेजों में रैगिंग के आपराधिक मामले इतने अधिक संख्या में होते हैं कि वहां पुलिस चौकी स्थापित करनी पड़ी है। उन्होंने कहा कि स्कूल के अनुशासित जीवन के बाद जब विद्यार्थी उमंग के साथ कॉलेज में प्रवेश करता है, तब उसे रैगिंग की हकीकत से सामना होता है। यह सच है कि हंसी-मजाक, मनोरंजन के माहौल और सीनियर छात्रों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार से प्रारंभ हुई रैगिंग अपशब्द, उत्पीडऩ, कपड़े उतरवाने जैसे घृणित स्तर तक भी पहुंच जाती है।

बेहतर भी है सहज माहौल में परिचय का ओरिएंटेशन प्रोग्राम
धर्मेन्द्र कुमार ने कालेज के नए छात्रों से कहा कि कोई किसी की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती कुछ करने के लिए मजबूर करे तो चुप मत रहिए, तत्काल कॉलेज प्रशासन से शिकायत कीजिए। कॉलेज परिसर का एंटी-रैगिंग स्क्वाड मदद करेगा। कॉलेज प्रशासन द्वारा स्थापित हेल्पलाइन नंबर से मदद के लिए संपर्क करें। यह मत सोचें कि जो हुआ, वह चलता रहता है। रैंंिगंग में दो साल तक का कारावास और 10 हजार रुपये तक दंड का प्रावधान है। हालांकि यह भी कहा कि ओरिएंटेशन प्रोग्राम की परिपाटी को लेकर खुद को मानसिक रूप से मजबूत रखना चाहिए, ताकि माहौल बेहतर बना रहे। वरिष्ठ छात्र मजाकिया या दिमागी सवाल पूछें या नाचने-गाने को कहें तो सहजता से मान लेने में बहुत हर्ज नहींहै। कई चीजें सामाजिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन इसके अनुभव से कंफर्ट जोन से बाहर कदम बढ़ाने में भी मदद मिले सकती है।
बचने की कोशिश करें, घटना की सूचना कालेज प्रशासन को दें
वीरकुंवर सिंह विश्वविद्यालय के सिंडीकेट सदस्य एवं सासाराम ला-कालेज के पूर्व प्राचार्य सत्यनारायण पांडेय ने कहा कि अगर कालेज परिसर में कोई किसी के साथ मारपीट जैसा सलूक करता है तो उलझने की बजाए इस स्थिति से बचने की कोशिश करनी चाहिए और कॉलेज के शिक्षकों या प्रशासनिक अधिकारियों को घटना के बारे में सूचित कर मदद मांगनी चाहिए। आमतौर पर सीनियर छात्रों द्वारा नए छात्रों का परिचय जानने की यह परिपाटी आज वीभत्सता में बदल गई है। सीनियर छात्र इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानने लगे है, जिससे नए विद्यार्थी को रैगिंग की चिंता सताती है।

सामाजिक मूल्य में तेजी से आए परिवर्तन और गिरावट का ही प्रतिबिम्ब-प्रतिफलका है रैगिंग
वरिष्ठ विज्ञान लेखक एवं सोनमाटी मीडिया समूह के संपादक कृष्ण किसलय ने कहा कि रैगिंग सामाजिक मूल्य में तेजी से आए परिवर्तन और गिरावट का ही प्रतिबिम्ब-प्रतिफल है। यह गलत तरीके से आनंद लेने का सामाजिक मनोविज्ञान है, जो यह बताता है कि आदमी हजारों सालों के सभ्यता विकास-क्रम में भी अपने अंदर की हिंसा, जंगलीपन से मुक्त नहीं हो सका है। कालेज परिसरों में नए-पुराने विद्यार्थी के बीच सद्भाव-मैत्री स्थापित करने का सामूहिक मानवीय उपक्रम आज मानवीय गरिमा के विरुद्ध मानवाधिकार हनन का उपकरण (रैंिगंग) बन गया है, जिसका कोई कानूनी या साम्वैधानिक आधार नहीं है।
आपत्तिजनक रैंिगंग का कोई मामला नहीं हुआ एनएमसीएच में 
आरंभ में नारायण मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल के प्राचार्य डा. विनोद कुमार ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि इस मेडिकल कालेज में आज तक कोई भी मामला पुलिस या न्यायालय तक नहींगया है, जिससे यह पता चलता है कि इस मेडिकल कालेज का वातावरण आरंभ से ही पारिवारिक बना हुआ है। कालेज प्रशासन सदैव इस बात के लिए तत्पर रहता है कि सीनियर विद्यार्थी जूनियर या नए विद्यार्थियों के साथ आपसी परिचय की मानवीय गरिमा बनाए रखें।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं गोपालनारायण सिंह विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी भूपेन्द्रनारायण सिंह ने कार्यक्रम आयोजन के औचित्य-उद्देश्य पर प्रकाश डाला और अंत में धन्यवाद-ज्ञापन किया।

(तस्वीर : उपेन्द्र कश्यप)

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