इसलिए याद किए जाएंगे अटल बिहारी वाजपेयी,

  • जब संसद में पहुंचकर वाजपेयी से मिली दाउदनगर (औरंगाबाद, बिहार) की विवेकानंद मिशन स्कूल की बाल टीम
  • संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का सफर, विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला, कवि और पत्रकार भी थे अटल बिहारी वाजपेयी
  •  अटल बिहारी वाजपेयी के 10 चर्चित वक्तव्य
  • अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर लालकृष्ण आडवाणी ने क्या कहा?

 

बहुआयामी व्यक्तित्व वाले राजनेता, प्रखर वक्ता, कवि-पत्रकार अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में 16 अगस्त को निधन हो गया। राजनीतिक कद और प्रधानमंत्री के रूप में लिए गए उनके ऐतिहासिक फैसले और सर्वस्वीकृति को देखा जाए तो देश के लोकप्रिय नेताओं में उन्हें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद स्थान दिया जा सकता है। नेहरू ने आधुनिक भारत की मजबूत नींव डाली थी और वाजपेयी ने परमाणुशक्ति संपन्न राष्ट्र का दर्जा दिलाया था। 1998 में पोकरण परमाणु परीक्षण उनकी इस सोच का परिचायक था कि भारत दुनिया में किसी भी ताकत के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं है। कोई उसे बेवजह तंग करने की जुर्रत महसूस न करे, उसके लिए हमें ऐसा कर दिखाना जरूरी है। भारत मजबूत होगा, तभी आगे जा सकता है।
अटल बिहारी वाजपेयी इसलिए याद किए जाएंगे कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कश्मीर के मसला और पाकिस्तान से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। कश्मीर के मसले पर उनका नजरिया इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का था। पाकिस्तान को लेकर उनकी सोच स्पष्ट थी कि शांति के प्रयास होने चाहिए। अलगाववादियों से बातचीत के फैसले पर जब सवाल उठा कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी तो उनका जवाब था, इंसानियत के दायरे में होगी।
अटल बिहारी वाजपेयी इसलिए याद किए जाएंगे कि भारत के टॉप स्टेट्समैन में से एक थे और खुद को किसी खास विचारधारा के पहरेदार के रूप में स्थापित नहीं होने दिया था। उन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को साथ लेकर गठबंधन सरकार बनाई।
अटल बिहारी वाजपेयी इसिलए याद किए जाएंगे कि बतौर विदेश मंत्री 1977 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिंदी में भाषण देने वाले देश के वह पहले नेता थे। तब यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी के लिए तालियां बजाईं थीं। हिंदी में उनका भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था।
अटल बिहारी वाजपेयी इसलिए भी याद किए जाएंगे कि 1994 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अटल बिहार वाजपेयी को सौंपा था। राष्ट्रहित में राजनीतिक लाभ-हानि से ऊपर उन्होंने जनेवा में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुआई की चुनौती स्वीकार की थी। किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया ने विस्मय से देखा था।
संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्री तक का सफर
वह छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। वाजपेयी की पढ़ाई-लिखाई उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुई। स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने एलएलबी में दाखिला लिया, आजादी के आंदोलन में सक्रिय हो जाने के कारण एलएलबी की पढ़ाई छूट गई। अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वह 23 दिन के लिए गिरफ्तार किए गए थे। वह भारतीय जनसंघ के संस्थापक और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी थे। 1977 में केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो वह उस सरकार में विदेश मंत्री बनाए गए। वह तीन बार 16-31 मई 1996, 1998-1999 और 1999-2004 तक प्रधानमंत्री बने। वह कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने 2005 में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से चुनाव जीतकर वह पहली बार लोकसभा पहुंचे। सांसद के रूप में उनके पहले कार्यकाल में उनके भाषण पर नेहरू ने कहा था, वह एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे।
विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला
अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा विपक्षी पार्टियों के नेताओं की वह आलोचना तो करते ही थे साथ ही अपनी आलोचना सुनने का भी साहस रखते थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अटल ने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया। अपने.पराए का भेद किए बिना सच कहने का साहस उनमें था। गुजरात दंगों के समय मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी के लिए अटल बिहारी का यह कथन देश के राजनीतिक इतिहास में मील का पत्थर के रूप में दर्ज है- मेरा एक संदेश है, वह राजधर्म का पालन करें। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर और न संप्रदाय के आधार पर।
कवि और पत्रकार भी थे अटल बिहारी वाजपेयी
कवि और पत्रकार भी थे अटल बिहारी वाजपेयी। वह लंबे समय तक राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे। जगजीत सिंह के स्वर में साथ उनके दो एलबम नई दिशा (1999) और संवेदना (2002) रिलीज हुई थी। उनका चर्चित काव्यसंग्रह है- मेरी इक्यावन कविताएं। हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं….। यह उनकी लोकप्रिय कविताओं में से एक है। उनकी एक चर्चित कविता है- हिंदू तन-मन हिंदू जीवन।

अटल बिहारी वाजपेयी के 10 चर्चित वक्तव्य

1. आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं। 2. हमारे परमाणु हथियार विशुद्ध रूप से किसी विरोधी की तरफ से परमाणु हमले के डर को खत्म करने के लिए हैं। 3. हकीकत यह है कि संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन उतने ही प्रभावी हो सकते हैं जितना उनके सदस्य उन्हें होने की अनुमति दें। 4. मैं ऐसे भारत का सपना देखता हूं जो समृद्ध और मजबूत है। ऐसा भारत जो दुनिया के महान देशों की पंक्ति में खड़ा हो। 5. गरीबी बहुआयामी होती है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक सहभागिता और संस्कृति-समाज पर भी असर डालती है। 6. पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंध बनाने की कोशिशें हमारी कमजोरी का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि शांति के लिए हमारी प्रतिबद्धता की संकेत हैं। 7. अगर भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं होता तो भारत भारत नहीं होता। 8. कोई बंदूक नहीं, केवल भाईचारा ही समस्याओं का समाधान कर सकता है। 9. सार्वजनिक दिखावे से शांत कूटनीति कहीं ज्यादा प्रभावी होती है। 10. मेरा कवि हृदय मुझे राजनीतिक समस्याएं झेलने की ताकत देता है।

अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर लालकृष्ण आडवाणी ने कहा-

वाजपेयी और आडवाणी की जोड़ी को राम-लखन की जोड़ी भी कहा जाता था। दशकों तक वाजपेयी के साथ रहे संघ के समय के साथी पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा- भारत के सबसे बड़े राजनेताओं में से एक अटल बिहारी वाजपेयी को हमने खो दिया है। संघ के प्रचारक, भारतीय जनसंघ की स्थापना, आपातकाल के दौर का संघर्ष, जनता पार्टी और फिर 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से गुजरते हुए वह 65 साल से भी ज्यादा समय तक मेरे मित्र रहे। वह पहली बार केंद्र में गठबंधन की स्थिर गैरकांग्रेसी सरकार के नेता के तौर पर याद किए जाएंगे और उस समय 6 वर्षों तक मुझे उनके डेप्युटी (उपप्रधानमंत्री) के तौर पर काम करने का मौका मिला।

 

 

जब संसद में पहुंचकर वाजपेयी से मिली दाउदनगर की बाल टीम

संसद पर हमले (13 दिसंबर 2001) के बाद देश में भय का एक वातावरण था। तब बाल-समूह संसद भवन घूमने जाने से परहेज कर रहा था। एक साल बाद 28-29 दिसंबर 2002 में संसद भवन पहुंचने वाली पहली बाल टीम दाउदनगर (औरंगाबाद, बिहार) के विवेकानंद मिशन स्कूल की थी, जिसमें विद्यालय के निदेशक डा. शम्भू शरण सिंह के नेतृत्व में 28 स्कूली बच्चों के साथ महिला कालेज डालमियानगर (डेहरी-आन-सोन) के प्रो. जयराम सिंह,  नवयुवा पत्रकार उपेन्द्र कश्यप भी थे। चूंकि संसद पर हमले के बाद पहली बाल टोली संसद भवन पहुंची थी, इसलिए दिल्ली के अखबारों ने इस पर खबर छापी थी। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को देखना-सुनना।
दाउदनगर से गई बाल टीम लोकसभा की दर्शक दीर्घा में बैठकर चल रही संसद की कार्यवाही देख रही थी। तभी यह सूचना आई कि बच्चों से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने कार्यालय-कक्ष में मिलना चाहते हैं। पूछा गया कि बच्चे प्रधानमंत्री से मिलेंगे या फिर इसके बाद राज्यसभा की कार्यवाही देखेंगे? भला यह कैसे हो सकता था कि विराट व्यक्तित्व के धनी अटल बिहारी वाजपेयी से रू-ब-रू मिलने-देखने से इंकार कर दिया जाए। बच्चों ने कहा कि प्रधानमंत्री से मिलेंगे। बच्चों को प्रधानमंत्री कार्यालय में ले जाया गया। वहां बच्चों को दो समूह में बांटकर प्रधानमंत्री से मिलाया गया था। पहले समूह के बच्चों के साथ डा. शंभूशरण सिंह,  प्रो. जयराम सिंह,  उपेन्द्र कश्यप थे। प्रधानमंत्री अपने कार्यालय में पालक के एक ग्लास जूस के साथ थे। उन्होंने खड़े होकर बच्चों सहित टीम के सभी सदस्यों से हाथ मिलाया।

वाजपेयी ने  पूछा सवाल, बैरोमीटर की तरह था  बच्चे का सरल-सहज जवाब

प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी की तरफ इशारा कर एक बच्चे से सवाल पूछा था कि तुम प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आना चाहोगे? जवाब जीवन भर के लिए मस्तिष्क में अंकित हो गया। उस बच्चे का जवाब चकित करने वाला और आजीवन मन-मस्तिष्क पर अंकित कर देने वाला था- नहीं सर। प्रधानमंत्री ने प्रतिप्रश्न किया- क्यों? बच्चा तो बच्चा ही होता है। वह बच्चा पहले थोड़ा झेंपा, मगर सरल स्वभाव और अपने परिवेश के बाल अनुभवजनित यह उत्तर उसके मुंह से निकला था- अच्छे लोग राजनीति में नहीं आते।यह पता नहीं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने बच्चे के उत्तर को किस रूप में लिया? मगर राजनीति में नैतिकता और आदर्श के घटते घोल के बैरोमीटर की तरह था उस बच्चे का वह सरल-सहज जवाब। बहरहाल, उस यात्रा में महान राजनीतिक शख्सियत से मुलाकात का अनुभव जीवन में सबसे अलग तरह का और प्रेरणादायक था। तब लगा था कि हर भारतीय को एक बार लोकसभा-राज्यसभा की कार्यवाही अवश्य देखना चाहिए। अब तो लोकसभा, राज्यसभा टीवी के जरिये संसद की कार्यवाही घर-घर सुलभ हो चुकी है। फिर भी वहां पहुंचकर देखना और रू-ब-रू होने का अलग महत्व है। और, एक नए अनुभव से गुजरने जैसा  भी है।

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प्रस्तुति सोनमाटी टीम :

(कृष्ण किसलय, उपेन्द्र कश्यप, मिथिलेश दीपक, अवधेशकुमार सिंह, निशान्त राज)

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