चीन का चांद : जिसकी चांदनी से रौशन होंगी उसकी सड़केें और गलियां

दिल्ली से सोनमाटीडाटकाम के लिए प्रदीप कुमार, विज्ञान लेखक

धरती-चांद की सृष्टि होने के समय से ही सूरज की प्रचंड किरणों को सोखकर चांद उसे शीतलता में बदलकर दूधिया चांदनी पूरी धरती पर बिखेरता रहा है। रात के टिमटिमाते तारों भरे अनंत आकाश में चाद से सुंदर कुछ नहीं होता। इसलिए चांद सभ्यता के उदय काल से ही मानव की कल्पना को हमेशा से रोमांचित करता रहा है। दुनिया के लगभग सभी भाषाओं के कवियों ने चंद्रमा की पूर्णिमा की चांदनी वाले मनोहरी रूप पर अपनी-अपनी तरह से काव्य-सृष्टि की है। तब भला आम आदमी चांद और उसकी चांदनी का मुरीद क्यों न हो ! मगर नकली चांद, यह तो हैरान करने वाली बात है। भले यह बात अजीब लग रही हो, मगर सच है। अगर चीन की आर्टिफिशियल मून यानी मानव निर्मित कृत्रिम चांद बनाने की योजना सफल हो जाती है तो चीन के आसमान में 2020 तक अपना चांद चमकने लगेगा। यह नकली चांद चीन के चेंगडू शहर के सड़कों पर अपनी रोशनी फैलाएगा और तब वहां स्ट्रीटलैंप की जरूरत नहीं होगी।
अंतरिक्ष विज्ञान में बड़ी छलांग लगाने की तैयारी में है चीन

चीन अपने इस अभिनव अंतरिक्ष योजना के जरिये अंतरिक्ष विज्ञान में एक बड़ी छलांग की तैयारी में जुटा हुआ है। उसकी इस प्रोजेक्ट को 2020 तक लांच करने का कार्यक्रम निर्धारित है। इस प्रोजेक्ट पर चेंगडू एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम रिसर्च इंस्टीट्यूट कारपोरेशन नामक निजी संस्थान कुछ वर्षों से काम कर रहा है। चीन के अखबार पीपुल्स डेली के अनुसार, यह प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण में है। चाइना डेली अखबार ने चेंगड़ू एयरोस्पेस कार्पोरेशन के निदेशक वु चेन्फुंग के हवाले से लिखा है कि सड़कों और गलियों में रोशनी करने पर होने वाले वर्तमान बिजली-खर्च को चीन घटाना चाहता है। नकली चांद से ८0 वर्ग किलोमीटर के इलाके में रोशनी होगी, जिससे हर साल बिजली में आने वाला 17.3 करोड़ डॉलर का खर्च बचाया जा सकता है। आर्टिफिशियल मून आपदा या संकट से जूझ रहे इलाकों में ब्लैक आउट की स्थिति में भी बड़ा सहायक होगा।
मगर कृत्रिम चांद से पर्यावरण का खतरा, जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर संकट
चीन अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में अमेरिका और रूस की बराबरी करना चाहता है। इसके लिए उसने कई महत्वाकांक्षी परियोजनाएं बनाई हैं। हालांकि चीन नकली चांद बनाने की कोशिश में पूरी गंभीरता से जुटा हुआ है, मगर नकली चांद को स्थापित करने की राह इतनी आसान नहीं है। पृथ्वी के आकाश के एक ख़ास हिस्से में रोशनी करने के लिए मानव निर्मित चांद को बिलकुल निश्चित जगह पर बनाए रखना काफी कठिन काम है। नब्बे के दशक में रूस और अमेरिका भी कृत्रिम चांद बनाने की असफल कोशिश कर चुके हैं। चीन के इस प्रोजेक्ट पर पर्यावरणविदों ने सवाल भी उठाना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। दिन को सूरज और फिर रात में भी अधिक रोशनी फैलाने वाले कृत्रिम चांद के कारण वन्यप्राणियों का जीना दूभर हो जाएगा। उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। पेड़-पौधों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा प्रकाश-प्रदूषण भी बढ़ेगा।

सूर्य से ही ग्रहण करेगा रोशनी, रिफलेक्ट कर भेजेगा धरती की ओर
अगर चीन का पहला प्रोजेक्ट सफल हुआ तो साल 2022 तक चीन ऐसे तीन चांद अपने आकाश में स्थापित कर सकता है। सवाल है कि नकली चांद काम कैसे करेगा? चेंगडू एयरोस्पेस के अधिकारियों के मुताबिक, नकली चांद एक शीशे की तरह काम करेगा, जो सूर्य की रोशनी को परावर्तित कर पृथ्वी पर भेजेगा। यह कृत्रिम चांद हू-ब-हू पूर्णिमा के चांद जैसा ही होगा, मगर इसकी रोशनी असली प्राकृतिक चांद से आठ गुना अधिक होगी। नकली चाद की रोशनी को नियंत्रित भी किया जा सकेगा। यह पृथ्वी से महज 500 किलोमीटर की दूरी पर आकाश में स्थपित होगा। जबकि असली चांद तो पृथ्वी से तीन लाख 80 हजार किलोमीटर दूर है। भविष्य के कवियों को भी ऐसे चांद से परेशानी हो सकती है, जो प्रेयसी के मुखमंडल की तुलना हजारों सालों से शीतल चांदनी वाले चौदहवीं के चांद से करते आए हैं। तब पाठकों-दर्शकों का मन इस बात से आशंकित बना रहेगा और सवाल यह भी उठेगा कि असली चांद की जगह कहीं नकली से तो तुलना नहीं की जा रही है!

(संपादन : कृष्ण किसलय, तस्वीर संयोजन : निशांत राज)

-लेखक : प्रदीप कुमार

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