

दाउदनगर (औरंगाबाद) -कार्यालय प्रतिनिधि। अनुमंडल के वरिष्ठ व निर्भीक पत्रकार उपेंद्र कश्यप द्वारा लिखी गई पुस्तक आंचलिक पत्रकारिता की दुनिया का लोकार्पण रविवार को भगवान प्रसाद शिवनाथ प्रसाद बीएड कॉलेज दाउदनगर में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य पंडित लाल मोहन शास्त्री के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस अवसर पर कई जिलों से आए पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने भाग लिया।

लोकार्पण समारोह में राजनीतिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र के विभिन्न प्रतिनिधि शामिल हुए। इस मौके पर लोजपा (आर) नेता डॉ. प्रकाश चंद्रा, जदयू शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुनील यादव, स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन, मुखियाजी के संपादक राजेश ठाकुर, नगर परिषद अध्यक्ष अंजली कुमारी, विवेकानंद मिशन स्कूल के निदेशक डॉ. शंभू शरण सिंह,हेमंत कुमार, प्रोफेसर डॉ. फीरोज़ मंसूरी समेत कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम में पत्रकारों और विशिष्ट अतिथियों को अंगवस्त्रम पहनाकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र कश्यप ने कहा कि यह पुस्तक आंचलिक पत्रकारिता की समस्याओं, संघर्षों और बदलावों को अत्यंत संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करती है। लेखक ने कहा कि यह किताब मेरी तीन दशकों की पत्रकारिता का निचोड़ है। इसमें जो भी घटनाएं प्रस्तुत हैं, सबकी सहमति से ही शामिल की गई हैं। मैंने कोशिश की है कि आंचलिक पत्रकारिता के बदलते स्वरूप को समग्रता में समझाया जा सके।
हेमंत कुमार ने कहा कि यह पुस्तक न केवल शोधार्थियों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए उपयोगी है। जो पत्रकारिता के क्षेत्र में जमीनी सच्चाईयों को समझना चाहते हैं। उपेंद्र कश्यप ने जिस तरह से विभिन्न पत्रकारों, लेखकों और संपादकों से संवाद कर सामग्री तैयार की है, वह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बनकर उभर गया है।

डॉ. प्रकाश चंद्रा ने कहा कि आज के दौर में स्वतंत्र पत्रकारिता एक कठिन कार्य है। राष्ट्रीय मीडिया हाउस पर नियंत्रण के कारण स्थानीय स्तर की आवाजें दब रही हैं। ऐसे में लेखक नेआंचलिक पत्रकारों के संघर्ष और अनुभव को पुस्तक के माध्यम से सामने लाने का सराहनीय प्रयास किया है। उन्होंने यह भी कहा कि पैसा कमाने के लिए न तो पत्रकारिता है और न ही राजनीति है। उन्होंने आगे कहा कि यदि पैसा कमाने के लिए राजनीति में आइयेगा तो आप न तो जेपी बन सकते हैं और न ही सुभाष चंद्र बोस और न ही भगत सिंह।
डॉ. सुनील यादव ने पत्रकारिता को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बताते हुए कहा कि क्षेत्रीय पत्रकारिता जमीनी हकीकत को सामने लाती है।
वहीं, संपादक संजीव चंदन ने शोधपरक कार्य को समय की जरूरत बत्ताया और पत्रकारित्ता में बढ़ते जातिगत भेदभाव की ओर भी संकेत किया।

अन्य वक्ताओं ने पत्रकारों के व्यक्तिगत जीवन और पेशेवर संघर्ष पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि गांव की पत्रकारिता में पत्रकारों को काफी समस्या होती है। आजादी के पहले से लेकर आजादी के बाद तक पत्रकारिता में आए बदलाव पर भी रोशनी डाला। वक्ताओं ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय पत्रकारिता अधिकतर कॉरपोरेट और सत्ता के प्रभाव में सिमटती जा रही है और इसका असर गांव के पत्रकारों को भुगतना पड़ता है। साथ ही उन्हें संसाधनों और स्वतंत्रता की कमी भी झेलनी पड़ती है। लोगों ने कहा कि यह पुस्तक युवा पत्रकारों के लिए मार्गदर्शिका का कार्य करेगी।

कार्यक्रम में पटना, डेहरी -आन-सोन, सासाराम, हसपुरा और औरंगाबाद जैसे क्षेत्रों से भी लोगों ने भाग लिया। भाग लेने वालों में प्रमुख रूप से बीडीओ मोहम्मद जफर इनाम, कार्यपालक पदाधिकारी ऋषिकेश अवस्थी, जदयू शिक्षा प्रकोष्ठ के नेता सुनील सिंह, अमरेश कुमार, संजय सिंह बाला, मनोज अज्ञानी, अखिलेश कुमार, विक्की कश्यप, गौतम कुमार, पूर्व प्रमुख संजय सिंह सोम, पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष पंकज पासवान, जिला परिषद प्रतिनिधि श्याम सुंदर, भाजपा के जिला प्रवक्ता अश्विनी तिवारी, राजद के प्रखंड अध्यक्ष देवेंद्र सिंह, कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष राजेश्वर सिंह, भाजपा मंडल अध्यक्ष संजय शर्मा, शिक्षिका मृदुला सिन्हा, सुरभि कुमारी, अम्बुज कुमार, गोपेन्द्र कुमार सिन्हा, श्रीकान्त मंडल सहित दाउदनगर और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में समाजसेवी, पत्रकार, शिक्षाविद, राजनीतिक, कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
- निशांत राज