

विनय भूषण पाणिग्राही की कविता: काल
काल कभी उदार तो कभी क्रूर होता है
बहुत कुछ देकर फिर सब छीन लेता है
काल की यह रीत पता तो हर किसी को है
पर कुछ सीख लेते तो कुछ भूल जाते हैं।
लोग सारे कहते हैं चाहे जितना जोर लगा लो
रेत पे खींचीं लकीरें पल भर में मिट जाती हैं
पत्थर पे खींची लकीरें क्या हमेशा रहती है ?
बिना कुछ कहे काल उसे भी मिटा देता है।
काल किसी के वश में नहीं ,सब उसके वश में हैं
किसी का अपना न होते हुए भी वो सबका है
कहते हैं कुछ लोग काल सिर्फ अंतराल है
पर काल तो ब्रह्मा है, विष्णु है, महाकाल है।
संपर्क : कवि : विनय भूषण पाणिग्राही पीरहाट, भद्रक, ओडिशा। फोन : 9438670120
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