प्राथमिक शिक्षा में गुणवत्ता का समायोजन बड़ी चुनौती

कई राज्यों में प्राथमिक स्तर पर बुनियादी कौशल में बच्चे तय स्तर से नीचे पाए गए हैं। यह स्थिति एक दशक से ज़्यादा समय से सरकारों के संज्ञान में भी है। समस्या यह है यह स्थिति कैसे दुरुस्त हो? भाषायी कौशल विकास को लेकर समय-समय पर सवाल भी उठते रहे हैं। पढऩा-लिखना और गणित की बुनियादी कौशल विकास सहस्राब्दी विकास लक्ष्य में भी शामिल रहा है और सतत विकास लक्ष्य 2030 का प्रमुख भी हिस्सा है। नई पीढ़ी की बुनियाद को मजबूत करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही नहीं है। सिर्फ राज्य सरकार के भरोसे ही बैठा नहींजा सकता। इसके लिए नागर समाज को आगे आना होगा और इससे संबंधित अभियानों से जुडऩा होगा।

-दिल्ली से कौशलेन्द्र प्रपन्न-

देश के विभिन्न राज्यों में सरकार प्राथमिक शिक्षा में कई स्तर पर गुणवत्ता के मसले को लेकर चिंतित है। मुख्य तौर पर बच्चों में भाषायी कौशल मसलन सुनना और सुनने के अनुरूप बोलने-पढऩे और लिखने में दिक्कत आती है। पढऩा और लिखना जैसे कौशल में देश के कई राज्यों के बच्चे पीछे हैं। एनसीईआरटी की ओर किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि बच्चों को पढऩे-लिखने में तो परेशान होती ही है, गणित में भी उन्हें परेशानी होती है। बिहार सहित कई राज्यों में प्राथमिक स्तर पर बुनियादी कौशल में बच्चे तय स्तर से नीचे पाए गए हैं। यह स्थिति एक दशक से ज़्यादा समय से सरकारों के संज्ञान में भी है। समस्या यह है यह स्थिति कैसे दुरुस्त हो? भाषायी कौशल विकास को लेकर समय-समय पर सवाल भी उठते रहे हैं। पढऩा-लिखना और गणित की बुनियादी कौशल विकास सहस्राब्दी विकास लक्ष्य में भी शामिल रहा है और सतत विकास लक्ष्य 2030 का प्रमुख भी हिस्सा है।

बिहार सरकार ने किया है एक योजना का ऐलान
बिहार सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीर रूख अपनाते हुए राज्य के प्राथमिक स्कूलों में खासकर कक्षा तीसरी- पांचवीं में गणित और भाषायी दक्षता लाने के बाबत प्रयास शुरू किया है। इस दिशा में बिहार सरकार ने एक योजना का ऐलान किया है, जिसके तहत तमाम प्राथमिक स्कूलों में कक्षा तीसरी-पांचवीं के बच्चों में गणित के सामान्य सवाल को हल करने के कौशल को विकतिस किए जाने पर काम किया जाएगा। मगर समस्या यह है कि क्या शिक्षक और संबंधित संसाधन इस योजना को पूरा करने में सक्षम-समर्थ हैं? क्या इसको सफल बनाने के लिए पूरी कार्य योजना और रणनीति तैयार है?
पहले भी कई योजनाएं लागू, मगर परिणाम नहीं
पहले भी देश भर में बुनियादी कौशल विकास के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया गया था, जिनमें ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड, सर्वशिक्षा अभियान आदि हैं। इनके लाभ और परिणाम पर्याप्त नहीं रही हैं। इन तमाम अभियानों में कार्यान्वयन के स्तर पर कमी रही है। ये योजनाएं अपने उद्देश्यों-लक्ष्यों में तो स्पष्ट हैं, मगर इन्हें सही रणनीति बनाकर एक्जीक्यूट नहीं किया गया। बड़े संघर्ष के बाद लागू हुआ शिक्षा का अधिकार (आरटीई)अधिनियम 2009 को बनने में तकरीबन सौ साल का वक़्त लगा, जो 2010 अप्रैल से देश भर में लागू है। इसमें भी ख़ामियां हैं। आरटीई को लागू करने में क मी या एक्जीक्यूट करने में हुई चूक को समझने की जरूरत है। ताकि इस एक्ट (आरटीई) को ठीक तरीके से लागू किया जा सके और इसका लाभ समाज के आखिरी छोर तक सही-सही पहुंच सके।

नई पीढ़ी की बुनियाद को मजबूत बनाना बड़ी चुनौती
स्कूली स्तर पर जो लोग जुड़े हुए हैं, जो परिवर्तन की मुख्य कड़ी हैं, जिन्हें हम शिक्षक व प्रधानाचार्य आदि के नाम से जानते हैं? क्या यह कड़ी मजबूत है इसे पूरे करने में? क्या उन्हें इस अभियान की बारीकियों और चुनौतियों से रू-ब-रू कराया गया है? क्या उन्हें इसके लिए कोई विशेष प्रशिक्षण दी गई है कि कैसे इस अधिकार को जमीनी स्तर पर उतारा जाना है? बिना प्रशिक्षित शिक्षकों के पढऩे-लिखने और गणित की आरंभिक बुनियादी दक्षता को प्राप्त करना प्राथमिक शिक्षा को अर्थात नई पीढ़ी की बुनियाद को मजबूत बनाना सबसे बड़ी चुनौती है। सरकारी और गैर सरकारी रिपोर्ट बताती हैं कि बिहार सहित देश के विभिन्न राज्यों के प्राथमिक स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। बिहार में तो एक लाख से ज्यादा प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों के पोस्ट ख़ाली हैं। बिना शिक्षकों के क्या यह अभियान सफल हो पाएगा?
प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी दूर किए बिना सफल नहीं हो सकती योजना
बिहार में 2009 के पहले से अद्र्ध प्रशिक्षित शिक्षकों और शिक्षा मित्रों के सहारे प्राथमिक शिक्षा को संचालित किया जाता रहा है। 2010 में पटना के गांधी मैदान में हज़ारों की संख्या में बीए, एमए पास प्रतिभागियों को स्कूलों में ज्वाइन कराया गया था। आरटीई एक्ट 2009 की स्थापना है कि गैर प्रशिक्षित शिक्षकों को सरकार तीन वर्ष में सेवाकालीन प्रशिक्षण देगी। जाहिर है कि यदि प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी दूर नहीं की गई और रिक्त पदों को चरणबद्ध तरीके से नहीं भरा गया तो प्राथमिक स्तर पर बच्चों की बुनियाद मजबूत करने की योजना सफल नहीं हो सकती।

नागर समाज को भी आना होगा आगे
नई पीढ़ी की बुनियाद को मजबूत करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही नहींहै। सिर्फ राज्य सरकार के भरोसे ही बैठा नहींजा सकता। इसके लिए नागर समाज को आगे आना होगा और इससे संबंधित अभियानों से जुडऩा होगा। प्राथमिक स्कूलों के बच्चों में पढऩे-लिखने और गणित की बुनियादी दक्षता के विकास के लिए बिहार में प्रथम संस्था जैसी संस्थाएं सक्रिय हैं। यदि बिहार सरकार अपने प्रयासों से लक्ष्य को हासिल कर पाती है तो यह अन्य पिछड़े राज्यों के लिए मिसाल होगी।

 

 

(बिहार के डेहरी-आन-सोन के निवासी कौशलेन्द्र प्रपन्न दिल्ली में रहकर दो दशकों से शिक्षा, भाषा और बच्चों पर विभिन्न शिक्षा-शिक्षक संस्थानों मे बतौर भाषा पैडागोजी विशेषज्ञ प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत हैं। राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, शोधपत्रों में लेख प्रकाशित और आकाशवाणी, दिल्ली से फीचर-साक्षात्कार प्रसारित। भाषा, कहने के कौशल और बच्चों से संबंधित दो पुस्तके प्रकाशित और दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन।                                                               मोबाइल फोन 9891807914)

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