2. बीसवींसदी में सोनघाटी की रंगयात्रा (किस्त-2)

प्रथम अखिल भारतीय लघु हिंदी नाटक प्रतियोगिता-1989 की सफलता

डेहरी-आन-सोन, रोहतास (बिहार) -सोनमाटी समाचार। तीन दशक पहले ‘कला संगमÓ द्वारा आयोजित प्रथम अखिल भारतीय लघु हिंदी नाटक प्रतियोगिता-1989 की सफलता के बाद इसके सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत कराने की जरूरत महसूस की गई और इसके लिए पहल शुरू हुई। पता चला कि कला संगम नाम से पहले से पंजीकृत संस्था पटना में सांस्कृतिक क्षेत्र में ही कार्यरत है। तब कला संगम की कार्यकारिणी की बैठक में नए नाम पर विस्तृत मंथन किया गया और इसमें अभिनव शब्द जोड़कर इसे नाम दिया गया अभिनव कला संगम। इसके संक्षिप्त नाम अकस का मोनोग्राम (प्रतीक चिह्नï) तैयार करने पर भी चर्चा हुई। संस्था के वरिष्ठ सदस्य चित्रकार शशिभूषण वर्मा ने मोनोग्राम का आरंभिक रूप तैयार किया, जिसे थोड़े से मोडीफिकेशन (शीर्ष पर मोमबत्ती या दीये की लौ के चिह्नï को जोड़कर) सर्वानुमति से स्वीकार किया गया। तब तय किया गया कि सोसायटी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी होनेे के बाद ही नाटक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा, ताकि रेलवे द्वारा कालाकारों की यात्रा में और सरकार द्वारा अन्य सुविधाएं प्राप्त की जा सकेे।

सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत हुई संस्था, मिली पंजीयन संख्या (515)
संस्था (अभिनव कला संगम के नाम से) बिहार सरकार द्वारा निर्धारित सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत हुई, जिसे पंजीयन संख्या (515/91) मिली। बिहार सरकार के सचिवालय परिसर में रजिस्ट्रार (सोसायटी) कार्यालय को संस्था के संचालन का संविधान भी पंजीबद्ध किया गया था, जिसमें संस्था के उद्देश्य और संचालन की नियमावली का उल्लेख था, जिसके तहत ही संस्था (अभिनव कला संगम) का पंजीकरण स्वीकार किया गया था। संस्था के नियमित बैठकों व चुनाव आदि से संंबंधित रजिस्टर व अन्य दस्तावेज भी रजिस्ट्रार कार्यालय को सौंपे गए थे। अभिनव कला संगम के पंजीकृत कार्यालय का पता था- प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यूएरिया, पो. डालमियानगर (रोहतास), लैंडलाइन फोन नं. 266, जो इसका तीसरा संपर्क सूत्र (कार्यालय) भी थी। संस्था के अन्य दो संपर्क सूत्र (स्थल) थे- 1. फिल्म इंडिया, दुर्गामंदिर पथ, न्यूएरिया, डेहरी-आन-सोन और 2. रोहतास टेन्ट हाउस, मेहरा भवन, पाली रोड, डेहरी-आन-सोन।

इतिहास में एक और महत्वपूर्ण कार्यक्रम, रंग-कार्यशाला का प्रथम आयोजन
हालांकि अभिनव कला संगम नाम रखे जाने और इसके रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले कला संगम ने डेहरी-आन-सोन और सोनघाटी के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण कार्यक्रम संपादित किया। एक पखवारे की रंग कार्यशाला का। पूरे सोनघाटी क्षेत्र में यह अपने तरह का प्रथम आयोजन था। रंग कार्यशाला के प्रमाणपत्र कला संगम के नाम से ही वितरित किए गए थे। डेहरी-आन-सोन (डालमियानगर) में पांच-छह दशकों में अंग्रेज कलाकारों (रंगमंच) के योगदान से शुरू हुई नाटक मंचन की नियमित पंरपरा व डालमियानगर रोहतास उद्योगसमूह के कारण संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद नाटक, नाट्यकला और रंगमंच के बारे में सूक्ष्मता से बताने और इसकी तात्विकता, शास्त्रीयता की व्याख्या के लिए जरूरत नहींसमझी गई थी। जबकि यहां नाटकों के अपने समय के हिसाब से बेहतर अभिनेता, निर्देशक भी थे।

अंतरराष्ट्रीय विद्वान, रंग-समीक्षक एवं सिद्धहस्त रंगकर्मी डा. ब्रजवल्लभ मिश्र का एक सप्ताह का  व्याख्यान
रंग-कार्यशाला के अंतर्गत नाटक के सैद्धांतिक पक्ष पर एक सप्ताह का नियमित व्याख्यान अपने अभिनय द्वारा पुष्टि करते हुए डा. ब्रजवल्लभ मिश्र (मथुरा, उत्तर प्रदेश) ने दिया। डा. मिश्र गणना भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के आधिकारिक विद्वान प्रवक्ता के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होती है। प्रसिद्ध रंग-समीक्षक एवं सिद्धहस्त रंगकर्मी डा. ब्रजवल्लभ मिश्र द्वारा तीन दशकों के साधनपूर्ण अध्ययन-गवेषणा के बाद लिखी गई पुस्तक (भरत और उनका नाट्यशास्त्र) का प्रकाशन भारत सरकार के सांस्कृतिक उपक्रम उत्तर-मध्य क्षेत्र संस्कृति केेंद्र (इलाहाबाद) ने किया है। इन्होंने बताया कि भरत का नाट्यशास्त्र संस्कृत भाषा में काव्य व कला का दुर्लभ विश्वकोष है और सिद्धांत व व्यवहार दोनों पक्षों की विराट चेतना का अप्रतिम संकलन है।
डा. ब्रजवल्लभ मिश्र ने नाटक के लिए प्रयोग शब्द का उपयोग किया, क्योंकि एक ही नाटक का रूप अपने कथ्य, रंगकर्मी, रंगमंच व अन्य रंगमंचीय उपकरणों के एक ही होने के बावजूद हर बार की प्रस्तुति (मंचन) में भिन्न हो जाता है। इसीलिए नाटक का मंचन फिल्म से अभिनय पक्ष की दृष्टि से भिन्न है। फिल्म का निर्माण हो जाने के बाद उसमें परिवर्तन नहींहो सकता। नाटक (रंगमंच) में एक ही कथ्य होने पर भी अभिनेता-निर्देशक हर बार अपनी अलग-अलग तरह की प्रस्तुति से नवीनता पैदा करता है। डालमियानगर माडल स्कूल के एक क्लास रूप में डा. ब्रजवल्लभ मिश्र ने प्रयोग (नाटक) के विभिन्न तत्वों रस, अभिनय, वृत्ति, स्वर, गान, नृत्य, आतोद्य, रंगमंच आदि के बारे भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के आधार पर अपनी व्याख्या रखी। उन्होंने मानवीय चेतना के आठ स्थाई रसों- श्रृंगार, रौद्र, वीर, वीभत्स, हास्य, करुण, अद्भुत, भयानक की प्रभावशाली आंगिक मुद्रा बनाकर अभिनय की दृष्टि से भी स्पष्ट अंतर स्थानीय रंगकर्मियों-संस्कृतिकर्मियों व सुरुचि रखने वाले दर्शकों-श्रोताओं को दिखाया।

सोनधारा का विशेष अंक रंगमंच और सांस्कृतिक संचेतना का उल्लेखनीय दस्तावेज
1992 में अभिनव कला संगम के वार्षिक मुखपत्र (स्मारिका) सोनधारा का प्रकाशन किया गया। संचित सामग्री के हिसाब से सोनधारा (सौजन्य संपादक कृष्ण किसलय) का यह विशेष अंक रंगमंच और सांस्कृतिक संचेतना का गणनीय-उल्लेखनीय दस्तावेज बन गया, जो सोन अंचल के रंगमनीषी भारत सरकार से पद्मश्री राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त स्वर्गीय रामेश्वर सिंह कश्यप की स्मृति को मुद्रित तौर पर समर्पित था। स्मारिका समिति के संयोजक (प्रबंध संपादक) चौरसिया सुरेन्द्र और इस समिति के संयोजन सदस्य शशिभूषण वर्मा, सुजीत दीक्षित, सुरेन्द्र प्रसाद चौरसिया, जगनारायण पांडेय, वारिस अली और स्वयंप्रकाश मिश्र थे। स्मारिका (सोनधारा) के इस अंक में अखिल भारतीय लघु नाटक प्रतियोगिता 1989 और 1991 के सभी मदों में आय-व्यय का ब्यौरा भी प्रकाशित किया गया था। हालांकि आय-व्यय के ब्यौरे को संरक्षकों के साथ बैठकों में रखा जा चुका था और इसका प्रकाशन भी यथासमय साप्ताहिक समाचारपत्र सोनमाटी में किया जा चुका था। इससे संस्था की विश्वसनीयता व साख में वृद्धि हुई।

अभिनव कला संगम परिवार का संक्षिप्त परिचय
सोनधारा-1992 में अभिनव कला संगम परिवार का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया था। उस परिचय के अनुसार, सत्यदेव प्रसाद (पीपीसी लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक) व सूर्यप्रकाश दत्त (थल सेना के पूर्व प्रथम श्रेणी अधिकार, पीपीसी लिमिटेड के महाप्रबंधक) प्रधान संरक्षक और रोहतास इंडस्ट्रीज डालमियानगर के रामलखन प्रसाद सिन्हा (प्रशासनिक महाप्रबंधक), लालजीप्रसाद वर्मा (महाप्रबंधक, अभियंत्रण), दीनानाथ सिंह (महाप्रबंधक, एस्बेस्टस), रामदुलार सिंह (महाप्रबंधक, स्टील फाउंड्री), प्रकाशकुमार सिन्हा (कार्य प्रबंधक, सीमेंट), एसी नंदकोलियार (प्रंबधक, वनस्पति), व अवधनारायण दीक्षित (प्रबंधक, औद्योगिक संबंध) विशेष संरक्षक थे।
डा. मुनीश्वर पाठक (जगजीवन सेनाटोरियम के संस्थापक निदेशक), विपिनविहारी सिन्हा (भोजपुरी अकादमी के संस्थापक सदस्य, डा. सच्चिदानंद सिन्हा पत्रकारिता संस्थान के सचिव व बिहार सरकार के पूर्व श्रम मंत्री), डा. दरबारी सिंह (जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय के पूर्व सचिव, रोहतास उद्योगसमूह के स्वास्थ्य सलाहकार), डा. अवधविहारी सिंह, डा. गीता सिंह (दोनों गीतांजलि नर्सिंग होम), विश्वनाथ प्रसाद सरावगी (जयहिंद टाकिज), उदयशंकर (उच्च न्यायालय के पूर्व आयकर अधिवक्ता, मोहिनी इंटरप्राइजेज), डा. रामाशीष सिंह, डा. राघवेन्द्रदेव सिंह, डा. अशोककुमार वर्मा, डा. रागिनी सिन्हा (दोनों स्टेशन रोड नर्सिंग होम), अरुणकुमार गुप्ता (रोहतास जिला लघु उद्योग संघ के तकनीकी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष), डा. ओमप्रकाश लाल, डा. प्रभा अग्रवाल (दोनों रोहतास नर्सिंग होम), बलराम सिंह, रवीन्द्रनाथ सिंह (दोनों अध्यक्ष, सचिव कोल परिवहन सेवा संघ), हरीशचंद्र गुप्त (अध्यक्ष नगर वैश्य सभा), रत्नदीप कुमार (त्रिमूर्ति चित्र मंदिर), मनोज कुमार (अप्सरा टाकिज), निर्मल कुमार (फिल्म निर्माता), पशुपतिनाथ गुप्त (अशर्फीलाल हाता) अभिनव कला संगम के संस्था संरक्षक थे।

संचालक कार्यकारिणी
सोनधारा में प्रकाशित अभिनव कला संगम की कार्यकारिणी की सूची के अनुसार, कृष्ण किसलय (नाटककार, रंगकर्मी, कथाकार, पत्रकार) अध्यक्ष, रमेशचंद्र गुप्ता (रंगमंच पर 1962 से सक्रिय) व सुजीतकुमार दीक्षित उपाध्यक्ष, शशिभूषण प्रसाद श्रीवास्तव (रोटरेक्ट क्लब के पूर्व अध्यक्ष) सचिव, रामकृष्ण शर्मा (सांस्कृतिक कार्यक्रमों के संयोजक) व जीवनप्रकाश गुप्त (ध्वनि-प्रकाश विशेषज्ञ) उप सचिव, कुंजविहारी सिन्हा (इप्टा के पूर्व नगर अध्यक्ष, फिल्म इंडिया) कोषाध्यक्ष और शशिभूषण वर्मा (चित्रकार-रंगकर्मी) अंकेक्षक थे। चौरसिया सुरेन्द्र (रंगकर्मी), जगनारायण पांडेय (पत्रकार, उप प्राचार्य जनता बालिका विद्यालय), सुरेन्द्र प्रसाद (संयुक्त दुकानदार संघ के अध्यक्ष, चौरसिया मार्केट), स्वयंप्रकाश मिश्र सुमंत (पुरस्कृत अभिनेता) और वारिस अली (नवजवान मिल्लत कमेटी के संयोजक) कार्यसमिति के सदस्य थे। इनके अलावे प्रकाशित सूची के अनुसार रंगकर्मी आशुतोष कुमार, प्रकाशनारायण चतुर्वेदी, शालीग्राम उन्मुक्त, अरुणकुमार दीक्षित, अमर सिंह, रमेशचंद्र गुप्त (द्वितीय), बबन प्रसाद गुप्त अभिनव कला संगम के सक्रिय सदस्य थे।

(विश्वविश्रुत सेन नद तट के सबसे बड़े नगर डेहरी-आन-सोन को केेंद्र में रखकर लिखी जा रही   बीसवीं सदी में सोनघाटी की रंगयात्रा       क्रमश: जारी)

 

सौजन्य : विश्वविश्रुत सोन नद के तट के सबसे बड़े नगर डेहरी-आन-सोन (बिहार) को केेंद्र में रखकर लिखी जा रही सोनघाटी की रंग-यात्रा की सामग्री वरिष्ठ नाटककार-निर्देशक किशोर वर्मा, वरिष्ठ लेखक-पत्रकार अमरेेन्द्र कुमार, वरिष्ठ रंगकर्र्मी रमेशचंद्र गुप्ता, शशिभूषण प्रसाद श्रीवास्तव, चौरसिया सुरेन्द्र के प्रकाशित लेख, अभिनव कला संगम के संस्थापक अध्यक्ष कृष्ण किसलय (नाटककार-रंगकर्मी-कथाकार-पत्रकार) की आकाशवाणी पटना से प्रसारित रेडियो वार्ता व नवभारत टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है। इसमें सुप्रसिद्ध रंग समीक्षक डा. ब्रजवल्लभ मिश्र का भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर व्याख्यान, रेडियो नाटक लोहासिंह के यशस्वी लेखक-अभिनेता रामेश्वर सिंह कश्यप, वरिष्ठ नाटककार श्रीशचंद्र सोम, यूनिवर्सिटी प्रोफेसर रहे वरिष्ठ साहित्य समालोचक डा. नंदकिशोर तिवारी के विचार हैं और पत्रकार संसद (डेहरी-आन-सोन) के सांस्कृतिक कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार-रंगकर्मी नवेन्दु के हिरना-हिरनी आख्यान, सोनमाटी (समाचार-विचार पत्र), सोनधारा-1992 (अकस स्मारिका), उत्कर्ष (संपादक उपेन्द्र कश्यप, युवा लेखक पत्रकार) व अन्य से भी सामग्री का संदर्भवश उपयोग हुआ हैं।

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