एशिया प्रसिद्ध रहे भारत के तीन बड़े औद्योगिक घरानों (टाटा, बिड़ला व डालमिया) में से एक के डालमियानगर में स्थापित रोहतास उद्योगसमूह पर परोक्ष-अपरोक्ष रूप से आश्रित करीब 20 हजार परिवारों अर्थात कम-से-कम एक लाख लोग वक्त के कूड़ेदान में फेेंक दिए गए, जिनके जीने-मरने और अस्तित्व रक्षा के संघर्ष की करुण कहानी है ‘तिल-तिल मरने की दास्तांÓ। धारावाहिक रूप में प्रस्तुत की जा रही इस दुर्लभ समाचारकथा (लेखक : कृष्ण किसलय) की 10 किस्तें सोनमाटीडाटकाम पर पहले प्रसारित हो चुकी हैं। अब प्रस्तुत है 11वीं किस्त।
पीढिय़ां झेल रही परमाणु बम जैसा असर, अभी तक न्यायालय से संपूर्ण न्याय नहीं
85 साल पहले स्थापित रोहतास उद्योगसमूह पर आश्रित कर्मचारियों-कारोबारियों की दो पीढिय़ां बर्बाद हो चुकी हैं। 34 साल पहले 1984 में इस विशाल कारखाने को कबाड़ में तब्दील कर दिए जाने का असर रोहतास जिले (मुख्य तौर पर डेहरी-आन-सोन) के साथ एक हद तक बिहार के सोन अंचल के औरंगाबाद, कैमूर, भोजपुर, बक्सर, पलामू, पटना जिलों की भी आबादी व अर्थव्यवस्था पर वैसा ही हुआ,जैसा जापान के शहरों हिरोशिमा व नागासाकी पर परमाणु बम गिराने के बाद हुआ था। रोहतास उद्योगसमूह को भारतीय औद्योगिक इतिहास का हड़प्पा मोहनजोदड़ो बना दिया जाना विश्व में अपनी तरह की सबसे भीषण त्रासदी है। फिर भी यह न तो भोपाल गैस कांड की तरह राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बना, न ही राजनीतिक दलों ने गंभीरता से मुद्दा बनाया और न ही इसके दीर्घकालिक प्रभाव पर गंभीर समाजशास्त्रीय अध्ययन हुआ। इस उद्योगसमूह पर आश्रित कर्मचारियों-कारोबारियों और उनके बेटे-बेटियों को अभी तक न्यायालय से संपूर्ण न्याय नहीं मिला है। जबकि वे किसी इमदाद नहीं, उद्योगसमूह की संपत्ति में स्वाभाविक हकदार हैं।
भारत का विशाल औद्योगिक साम्राज्य था रोहतास उद्योगसमूह
डेहरी-आन-सोन, बिहार (कृष्ण किसलय)। भारत के अंग्रजी राज से आजाद होने के दशकों बाद तक एशिया भर में प्रसिद्ध रहे बिहार के डालमियानगर स्थित 498 एकड़ में विस्तृत औद्योगिक परिसर (रोहतास इंडस्ट्रीज) के वाइंडिंग-अप होने (परिसमापन में जाने) से पहले यहां 12629 स्थाई कर्मचारी सीधे तौर पर नियोजित थे। इसके अलावा बहुत बड़ी संख्या अन्य सहयोगी कंपनियों पाश्र्वा प्रापर्टिज लिमिटेड, डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे, अशोका सीमेंट लिमिटेड आदि के कर्मचारियों, ठेके पर नियोजित और अस्थाई या अनुबंध वाले कर्मचारियों की भी थी, जिन्हें मिलाकर कर्मचारियों की संख्या 20 हजार के करीब होती थी। डालमियानगर परिसर में 2700 से अधिक विशाल तीनमंजिला प्रशासनिक भवन, दो मंजिला भव्य अस्पताल, क्लब घर, विभिन्न प्रकार के बंगले, फ्लैट और क्वार्टर थे। डालमियानगर औद्योगिक परिसर के अलावा रोहतास इंडस्ट्रीज के पास विशाल खेल मैदान, जनसभा (झंडा) मैदान, बांक फार्म, सूअरा हवाई अड्डा सहित करीब 3700 एकड़ जमीन थी। 16 हजार 620 एकड़ में लाइमस्टोन वाला पहाड़ और 10 हजार एकड़ लकड़ी-बांस का जंगल लीज पर मौजूद था।
140 करोड़ में भारतीय रेल ने ख्ररीदी मशीनों के कबाड़ सहित 219 एकड़ जमीन
अब रोहतास इंडस्ट्रीज के पास भवनों, बंगलों, फ्लैटों, क्वार्टरों, मैदानों वाला डालमियानगर का करीब 220 एकड़ का आवासीय परिसर, करीब 11 एकड़ का बंद शुगर मिल परिसर, और डालमियानगर परिसर से बाहर करीब 400 एकड़ जमीन बची हुई है। रोहतास उद्योगसमूह की जमीन पर बड़े पैमाने पर वन विभाग, अन्य सरकारी विभाग और अन्य लोगों ने निजी तौर पर कब्जा जमा लिया है। अकेले वन विभाग ने 1300 एकड़ से अधिक जमीन पर अपना विस्तार कर लिया है। करीब 500 एकड़ के बांक फार्म को झूला वनस्पति लिमिटेड को मात्र 18 करोड़ 25 लाख रुपये में, 80 एकड़ के सूअरा हवाई अड्डा को बियाडा (बिहार सरकार के उपक्रम) को 17 करोड़ रुपये में और 219 एकड़ के डालमियानगर के कारखानों को मशीनों (बतौर कबाड़) के साथ 140 करोड़ रुपये में भारतीय रेल को बेचा जा चुका है, जो पूर्व-मध्य रेल जोन के नियंत्रण में है। कई बंगले-फ्लैट भी बेचे जा चुके हैं।
फिलहाल मृत रोहतास इंडस्ट्रीज के डालमियागनर प्रशासनिक कार्यालय में प्रभारी अधिकारी सहित 26 स्टाफ पटना स्थित शासकीय समापक (आफिशियल लिक्विडेटर) के कार्यालय के नियंत्रण में कार्यरत हैं। शासकीय समापक का दफ्तर हाई कोर्ट के कंपनी जज के अधीन है। अभी सरकारी प्रतिनिधि के रूप में शासकीय समापक के पद पर हिमांशु शेखर (आईएएस, एलायड सर्विस) पटना कार्यालय में और डालमियानगर परिसर के प्रभारी (अधिकारी) के रूप में एआर वर्मा (रोहतास इंडस्ट्रीज के लेखाधिकारी) कार्यरत हैं।
72 करोड़ का भुगतान, 06 करोड़ भुगतान की डेडलाइन 31 दिसंबर
भारत सरकार को उपक्रम बाइफर (ब्यूरो फार इंडस्ट्रीयल एंड फिनांशियल रिकंस्ट्रक्शन) की 03 मार्च 1995 की रिपोर्ट के अनुसार रोहतास इंडस्ट्रीज पर करीब 171 करोड़ रुपये के बकाए के विभिन्न दावे थे। तब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से गठित दावा समिति ने कर्मचारियों की देनदारियां 45 करोड़ रुपये तय की थी। अब 11 हजार से अधिक कर्मचारियों को उनकी सेवानिवृत्ति की उम्र तक के वेतन के हिसाब से लाभांश की रकम (करीब 75 करोड़ रुपये) का भुगतान किया जा चुका है। डालमियानगर परिसर के प्रभारी अधिकारी एआर वर्मा के अनुसार, करीब 2100 कर्मचारियों (स्थाई सेवा वाले) के बकाए 06 करोड़ रुपये का भुगतान कर्मचारियों या उनके परिजनों की ओर से जरूरी कागजात के जमा नहीं किए जाने के कारण नहीं हो सका है।
दुख-दर्द झेलकर मरे हजारों कर्मचारी-दावेदार
रोहतास उद्योगसमूह में तालाबंदी के समय (1984 तक) कंपनी प्रबंधन के आधिकारिक आदेश पर विभिन्न तरह की आपूर्ति करने वाले सप्लायरों आदि के बकाए के भुगतान के लिए न्यायालय का आदेश नहीं हुआ है, जिसके लिए दावेदरों की ओर से अपनी बात न्यायालय के संज्ञान में लाने की जरूरत बनी हुई है। हालांकि इस मुद्दे पर पुनर्वास आयुक्त और फिर शासकीय समापक के कार्यालय व डालमियानगर जेनरल आफिस में दावे पेश किए जाने के बावजूद न तो शासकीय समापक ने इसे कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने की या न तो न्यायालय ने ही स्वत: संज्ञान लेने की जरूरत समझी है। जबकि बड़ी संख्या में हजारों कर्मचारी-दावेदार घोर अभाव में दुख-दर्द की जिंदगी झेलते हुए मरने को मजबूर हुए।
20 साल में दो बार मांगे गए दावे, पर 10 साल बाद भी संज्ञान नहीं
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाई गई क्लेम कमेटी ने बिहार सरकार द्वारा नियुक्त पुनर्वास आयुक्त के कार्यालय (इंदिरा भवन, बोरिंग रोड, पटना-1) के माध्यम से बकाएदारों से अपने-अपने दावे पेश करने को कहा था, जिनके रिसीविंग भी पुनर्वास आयुक्त कार्यालय से बकाए के दावे करने वालों को भेजे गए थे। इसके लिए पुनर्वास आयुक्त कार्यालय की ओर से 27 मार्च 1990 को समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कराए गए थे। प्रकाशित विज्ञापन में सिविल रिट याचिका 5222 (1985) पर सुप्रीम कोर्ट के 24 अक्टूबर 1989 के आदेश का संदर्भ देकर यह कहा गया था कि दावेदार चार प्रतियों में अपना दावा 14 दिनों में पेश करें, जिनकी जांच कर क्लेम कमेटी सुप्रीम कोर्ट को अपना प्रतिवेदन पेश करेगी। इसके 20 साल बाद पटना हाई कोर्ट कंपनी जज के आफिशियिल लिक्विडेटर जीसी यादव (मौर्या कांप्लेक्स, डाकबंगला रोड, पटना-1) की ओर से 30 जनवरी 2009 को कंपनी पेटिशिन नं. 03 (1984) का संदर्भ देकर इस आशय का विज्ञापन प्रकाशित कराया गया था कि 22 मई 1986 (रोहतास उद्योगसमूह के अस्थाई लिक्विडेशन में जाने की तिथि) और 24 नवम्बर 1995 (स्थाई लिक्विडेशन में जाने की तिथि) तक के सभी संबंधित बकाएदार 30 जून 2009 तक अपने दावे साक्ष्यों के साथ पेश करें।
कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र से जनता को रखा भ्रम में
बहरहाल, अस्थाई कर्मचारियों के श्रम-भुगतान की कोई सूरत नहींनिकली और न ही विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं बकाए के भुगतान की। समापन में चले जाने के बाद रोहतास उद्योगसमूह के डालमियानगर परिसर के औद्योगिक उपयोग की भी सूरत नहींनिकाली जा सकी। 2000 के विधानसभा चुनाव में बिहार राज्य कांग्रेस के मुद्रित घोषणापत्र में आम जनता को भ्रम में रखने के लिए या जनता को मूर्ख मानते हुए यह कहा गया था कि सत्ता में आने पर वह देश-विदेश के निवासी-अनिवासी उद्योगपतियों का सहयोग प्राप्त करेगी और रोहतास उद्योगसमूह का दो साल के अंदर आधुनिकीकरण कर पुनर्जीवित करेगी। जबकि घोषणापत्र तैयार करने वाले कांग्रेस पार्टी के नीति निर्धारकों को साफ-साफ जानकारी थी कि सुप्रीम कोर्ट से बिहार सरकार को सौंपा गया संपूर्ण डालमियानगर परिसर लिक्विडेशन में जाने के बाद नीलामी पर चढ़ाए जाने के लिए हाई कोर्ट के कंपनी जज के परिसमापक (शासकीय समापक) कार्यालय से संबद्ध (अटैच) हो चुका है। (आगे भी जारी)
– कृष्ण किसलय, समूह संपादक, सोनमाटीडाटकाम