जन्म दिन 4 जुलाई पर स्मृति विशेष
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गुलजारीलाल नंदा की पुण्यतिथि पर उनकेसंतमय जीवन और आदर्शपूर्ण राजनीति के बारे में जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर (पटना, बिहार) ने इस संस्मरणात्मक टिप्पणी में यह बताया है कि नंदाजी का चरित्र अधिकतर स्वतंत्रता सेनानियों से अलग था, जो आजादी के बाद सत्ता में पहुंचे थे।
भ्रष्ट कांग्रेसी नेता को जेल भेजने पर छीन लिया गया गृह मंत्रालय
स्वतंत्रता सेनानी गुलजारीलाल नंदा 19 अगस्त 1963 से 14 नवंबर 1966 तक देश के गृह मंत्री रहे। नंदाजी दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री भी रह चुके थे। जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद बारी-बारी से ये मौके आये थे। जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें गृह मंत्री बनाया और बेटी इंदिरा गांधी ने वह विभाग उनसे छीन लिया। कोलकात्ता की चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘रविवार’ के लिए बातचीत कर रहे वासुदेव साह को इस संबंध में नंदाजी ने 1978 में बताया था कि ‘पहले की अपेक्षा भ्रष्टाचार अब काफी बढ़ गया है। इमरजेंसी में यह सबसे अधिक था। नेहरू जी के कैबिनेट में पहले मैं योजना देखता था। मेरी योजना को भ्रष्ट अफसर आगे नहीं बढ़ने देते थे। मैंने नेहरू जी से इसकी शिकायत की। उन्होंने प्रशासन में सुधार के लिए मुझे गृह मंत्रालय दिया। मैंने उस विभाग के माध्यम से कुछ काम किया। देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक वातावरण बनने लगा। इसी बीच मैंने एक कांग्रेसी को भ्रष्टाचार में पकड़ कर जेल भेज दिया। इससे लोग काफी नाराज हो गये और षड्यंत्र कर मुझे गृह मंत्रालय से हटवा दिया’। अपने कार्यकाल के अनुभवों के आधार पर नंदा जी ने बातचीत में यह भी कहा था कि ‘भ्रष्टाचार दूर करने के लिए राजनेताओं को पहले अपना आचरण सुधारना होगा’। (रविवार-13 अगस्त 1978)
एक सवाल के जवाब में गुलजारीलाल नंदा ने यह भी कहा था कि ‘यहां दाल में नमक के बराबर भ्रष्टाचार हो तब न ! यहां तो पूरी दाल भ्रष्टाचार से भरी हुई है। उनसे कहा गया था कि थोड़ा बहुत भ्रष्टाचार तो सारे संसार में है। क्या मूल समस्या यह नहीं है कि भ्रष्टाचार को न्यूनत्तम स्तर पर कैसे रखा जाए ?’ उन्होंने कहा था यदि किसी ईमानदार मंत्री से भ्रष्ट अफसर का झगड़ा हो जाए तो अफसर के भ्रष्टाचार को सामने लाकर उसे सजा देनी चाहिए’।
उनसे जब बातचीत रिकार्ड की गई थी, तब केंद्र में मोरारजी देसाई की सरकार थी। नंदाजी ने जनता पार्टी के नेताओं से यह अपील की कि पहले आप नैतिक होइए, तब लोगों को नैतिक बनायें। नंदाजी ने कहा कि जनता पार्टी के लोग अपनी संपत्ति की घोषणा करने की बात कह चुके हैं, पर अभी तक उन्होंने यह काम किया नहीं’।
आज हमारे यहां के अधिकतर नेता भ्रष्ट हैं। वे नैतिकता को आवश्यक नहीं मानते। कभी -कभी वे कहते भी हैं कि राजनीतिक व्यक्ति कोई साधु -संन्यासी नहीं होते। वे यह तथ्य भूल जाते हैं कि जीवन के अन्य क्षेत्रों के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी है। राजनेताओं के भ्रष्ट आचरण का फायदा उठाने में अफसर बड़े तेज होते हैं। नेताओं की इन्हीं कमजोरियों का फायदा उठा कर वे भ्रष्टाचार करते हैं।
गुलजारी लाल नंदा का 4 जुलाई 1898 को सियालकोट में जन्म हुआ था। उनका निधन 15 जनवरी, 1998 को अहमदाबाद में हुआ।जब वे मरे, तब उनके पास न तो कोई अपना मकान था और न ही आय का कोई जरिया। स्वतंत्रता सेनानी शील भद्र याजी ने उनसे जबरन स्वतंत्रता सेनानी पेंशन योजना के आवेदन पत्र पर दस्तखत करा लिया था। पता नहीं चला कि वे उस राशि को स्वीकार भी करते थे या नहीं। अहमदाबाद में बसी उनकी पुत्री पुष्पा बेन नाइक ही जीवन के आखिरी दिनों में उनकी सेवा में लगी रही।
सांसद और मंत्री नहीं रह जाने के बाद नंदा के पास अपनी आय का कोई जरिया नहीं था।वे अपनी संतान और अपने शुभचिंतकों से भी कोई धनराशि स्वीकार नहीं करते थे। उनके दो पुत्र थे। नंदाजी ने हरियाणा के कैथल में आश्रम सहित एक गोशाला अपने कुछ विश्वासपात्रों के माध्यम से विकसित की थी। उससे भी नंदा जी को निकाल दिया गया था। करीब बीस साल तक केंद्रीय मंत्री रह चुकने के बावजूद वे दिल्ली की डिफेंस कालानी के किराए के मकान में रहने लगे थे। किराया देने में जब वे असमर्थ हो गये तो वे अहमदाबाद अपनी बेटी के पास चले गये। इस बीच कई प्रधानमंत्रियों और दिल्ली प्रशासन ने उन्हें मकान देने का अॅाफर दिया, पर वे राजी नहीं हुए। गांधीवादी नंदा यह मानते थे कि बिना श्रम किये जनता से टैक्स में मिले पैसे लेना पाप है। काश ! आज के अधिकतर हुक्मरान नंदाजी की इस बात पर थोड़ा भी ध्यान देते तो इस देश की ऐसी हालत नहीं होती, जैसी हो गयी है।
(फेसबुक वाल से)