पटना-कार्यालय प्रतिनिधि। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के निदेशक डॉ. अनुप दास (प्रोजेक्ट लीडर) एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राकेश कुमार (परियोजना समन्वयक) के तत्वाधान में गया जिले में चलाई जा रही उन्नत कृषि तकनीक द्वारा धान-परती भूमि प्रबंधन परियोजना का मुख्य उद्देश्य धान-परती भूमि में फसल सघनता को बढ़ाना एवं किसानों की आय में वृद्धि करना है। इस संबंध में मंगलवार को गया जिले के टेकारी प्रखंड के गुलेरियाचक ग्राम में दलहन एवं तिलहन फसलों के ऊपर प्रत्यक्षण कार्यक्रम एवं किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्थान द्वारा 25-25 एकड़ भूमि के लिए कम अवधि एवं उच्च उपज जलवायु अनुकूल चने की उन्नत प्रजाति (GMG-2207 ) का 800 किलोग्राम बीज और सरसों प्रजाति (RH-761) का 50 किलोग्राम बीज किसानों को प्रत्यक्षण के लिए दिया गया।
इस बैठक में संस्थान से आए तकनीशियन राम कुमार मीना एवं प्रक्षेत्र सहयोगी कांत चौबे ने प्रक्षेत्र भ्रमण एवं किसानों के साथ सीधा संवाद किया और धान कटाई करते समय धान फसल का एक तिहाई अवशेष छोड़ कर धान काटने के तरीके के बारे मे किसानों को विस्तार से बताया। फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन कर फसलों को बिना जुताई किये समय में बुआई कर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। फसल अवशेष का प्रबंधन करने से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। फसल अवशेष से मृदा में जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे फसल को लंबे अवधि तक मृदा जल प्राप्त होता है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को पूर्ववत् नमी में ही धान फसल कटाई के उपरांत चना, मसूर व सरसों की बुवाई को लेकर किसानों के साथ विस्तृत चर्चा करना था। इसके साथ ही किसानों को कम अवधि की उच्च पैदावार धान प्रजाति (स्वर्ण श्रेया) एवं अरहर की प्रजाति IPL-203 के मेड़ प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।
इस बैठक में किसान आशीष कुमार ने किसानों को धान-परती भूमि प्रबंधन के बारे में बताया। इस बैठक में किसान दिनेश चंद, पुनित बिद, रविन्द्र यादव सहित लगभग 50 किसानों ने भाग लिया। प्रगतिशील किसान आशीष कुमार द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर, गया का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
( इनपुट : निशांत राज )