सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है   Click to listen highlighted text! सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है
आलेख/समीक्षादेशसमाचारसोनमाटी एक्सक्लूसिव

अयोध्या विवाद : सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के एक माइलस्टोन आचार्य किशोर कुणाल

देहरादून, दिल्ली कार्यालय से प्रकाशित बहुरंगी पाक्षिक ‘चाणक्य मंत्रÓ में
पटना से कृष्ण किसलय की विशेष रिपोर्ट

विवाद हद से ज्यादा लंबा खिंचता है तो उसकी जटिलता बढ़ जाती है और यह चुनौती हो जाती है कि समाज के गले में लंबे समय से फंसे कांटे को कैसे निकाला जाए, ताकि नया जख्म नहीं हो। भारत के सवा अरब लोगों की भावनाओं से जुड़ा बहुचर्चित अति संवेदनशील अयोध्या विवाद ऐसा ही मामला रहा है। सर्वानुमति से सुप्रीम कोर्ट का आया फैसला यही बता रहा है कि भारतीय समाज लोकतांत्रिक तौर पर अब पहले से ज्यादा परिपक्व हो चुका है। बेशक, 1934 में दीवार खड़ी करने, 1949 में मूर्तियां रखने और 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वस्त करने जैसी घटनाएं अयोध्या के इस पूजास्थल के साथ संवेदनशील छेड़छाड़ और गैरकानूनी भी थीं, जिनसे चार सौ सालों से जारी दो पक्षों का तनाव बेहद गहरा हो गया था। इस मामले में बिहार से हिन्दू पक्ष के एक प्रबल पैरोकार आचार्य किशोर कुणाल है, जो सुप्रीम कोर्ट में पूरी सुनवाई के दौरान लगातार उपस्थित रहे। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायिक पीठ के सामने ही मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जो नक्शा फाड़ दिया था, उसे हिंदू महासभा के वकील द्वारा बतौर राममंदिर से जुड़ा साक्ष्य इन्हीं की पुस्तक से पेश किया था। आचार्य कुणाल को वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अयोध्या मसला के समाधान के लिए बतौर विशेष दूत जोड़ा था। महंत रामचंद्रदास परमहंस और बजरंगबली की शीर्ष पीठ हनुमानगढ़ी के शीर्ष महंत ज्ञानदास के करीबी आचार्य कुणाल तीन प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में अयोध्या मामले को हल करने की भूमिका निभाने वालों में एक रहे हैं।

अयोध्या रिविजेटेड : दो दशकों का शोध
आचार्य किशोर कुणाल 2016 में प्रकाशित हुई जिस पुस्तक (अयोध्या रिविजेटेड) के लेखक हैं, वह ब्रिटिश काल की पुरानी फाइलों, संस्कृत में लिखे प्राचीन तथ्यों और पुरातत्व से मिले प्रमाणों को आधार बनाकर दो दशकों के शोध के बाद तैयार हुई। इसकी भूमिका सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जीबी पटनायक ने लिखी है। पुस्तक में देश के विभिन्न पुस्तकालयों एवं सरकारी कार्यालयों से साक्ष्य एकत्रित किए गए हैं। आचार्य कुणाल ने इस पुस्तक में बताया है कि मस्जिद का निर्माण बाबर के सेनापति मीर बाकी ने कराया था। उनका दावा है कि बाबर अयोध्या आया ही नहीं और अयोध्या के राममंदिर तोडऩे का काम बाबर के आदेश पर 1528 में मीर बाकी ने नहीं, औरंगजेब के रिश्तेदार गवर्नर फिदाई खान ने 1660 में किया था। बाबरनामा में मंदिर तोडऩे और मस्जिद बनाने का जिक्र नहीं है। भारत में ज्यादातर हिन्दू मंदिर औरंगजेब के शासन में तोड़े गए। कई विदेशी यात्रियों ने अपने अध्ययन में भगवान श्रीराम के अयोध्या में जन्म की बात लिखी है। इटली के यात्री मनूची ने अपने यात्रा-वृत्तांत में भी लिखा है कि औरंगजेब ने भारत के कई मंदिरों को तोड़वाया था। आचार्य कुणाल की पुस्तक (अयोध्या रिविजेटेड) में एक नक्शा है, जिससे पता चलता है कि विवादित स्थल मंदिर था। अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत हुए इस पुस्तक में बताया गया है कि अयोध्या में विवादित स्थल के मध्य गुंबद के नीचे भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, जिसके लिए सीता-रसोई का प्रमाण दिया गया है। पुस्तक में जन्मस्थल से संबंधित नक्शा भी दिया गया है, जिस स्थल पर 1856 तक हिन्दू समुदाय पूजा करता था। पुस्तक में कई ग्रंथों में उल्लेख के आधार पर यह बताया गया है कि एक चबूतरा (18 फीट लंबा, 15 फीट चौड़ा, पांच इंच ऊंचा) था, जिसकी परिक्रमा श्रद्धालु करते थे।
अयोध्या में होगा राम रसोई का संचालन
सुप्रीम कोर्ट के फैसला के बाद आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि कोर्ट ने तमाम प्रमाणों के आधार पर रामलला के विराजमान होने का ऐतिहासिक फैसला दिया। उन्होंने पटना के महावीर मंदिर सेवा ट्रस्ट की ओर से प्रस्तावित अयोध्या राममंदिर शासकीय न्यास को दस करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। महावीर मंदिर सेवा ट्रस्ट (पटना) द्वारा रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या में आने वाले बाहरी श्रद्धालुओं के लिए राम-रसोई संचालित करने की उनकी तैयारी है, जो अयोध्या के रामजन्मभूमि के पड़ोस में स्थित अमांवा राममंदिर में होगी। राम-रसोई के लिए पांच हजार वर्ग फीट का परिसर बनाया गया है, जो पूरी तरह से एयरकंडीशन होगा। अमांवा मंदिर में 08 नवम्बर को ही स्थापित की गई भगवान राम के बाल रूप (रामलला) की चार फीट ऊंची प्रतिमा 200 मीटर दूर से ही दिखाई देती है।
विश्वनाथ मंदिर की आय महावीर मंदिर से कम
आचार्य किशोर कुणाल पटना महावीर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और उनकी पारदर्शी नेतृत्व में इस ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित पटना रेलवे स्टेशन प्रवेशद्वार से सटा महावीरमंदिर का प्रबंधन जो कुछ कर रहा है, वह लोगों की धार्मिक भावना का बेहतर सदुपयोग है। उत्तर भारत में जम्मू के वैष्णवदेवी मंदिर के बाद सबसे अधिक आय (10 करोड़ रुपये) पटना के महावीर मंदिर की है। उत्तर प्रदेश के प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर और झारखंड के प्राचीन देवघर मंदिर की आय बहुतहोने के बावजूद पटना महावीर मंदिर की घोषित आय से कम है। पटना महावीर मंदिर की आय से कई अस्पतालों का संचालन होता है। महावीर कैैंसर अस्पताल में मरीजों को निशुल्क भोजन मिलता है। अस्पताल में भर्ती होने पर मरीज को 10 हजार रुपये और गरीबी से रेखा से नीचे वाले मरीज को 15 हजार रुपये तत्काल दिए जाते हैं। महावीर मंदिर परिसर में बिकने वाले प्रसाद (नैवैद्यम) की शुद्धता को लेकर हर कोई आश्वस्त है। महावीर मंदिर ट्रस्ट बनने के बाद आचार्य कुणाल को कई बार धमकियां मिलीं। कई महंत जान के दुश्मन बन गए। 1986 में तो उनकी हत्या की सुपारी भी उत्तर बिहार के कुख्यात मिनी नरेश को दी गई थी।

1972 बैच के आईपीएस रहे हैं कुणाल
दरअसल, आचार्य किशोर कुणाल 1972 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। इनकी चर्चा ईमानदार अफसरों में थी। 1983 के बहुचर्चित बाबी सेक्स स्कैंडल ने कांग्रेस की राजनीति की चूलें हिला दी थी, जिसमें पटना के एसएसपी रहे किशोर कुणाल ने सख्त जांच की थी। बाबी नाम से मशहूर खूबसूरत श्वेतनिशा त्रिवेदी बिहार विधानसभा सचिवालय में टाइपिस्ट और विधान परिषद की तत्कालीन सभापति कांग्रेसी नेता राजेश्वरी सरोज दास की गोद ली हुई बेटी थीं। बाबीकी कहानी राजनीति में महिलाओं के इस्तेमाल की है। 7 मई 1983 को बाबी को आनन-फानन में दफना दिया गया था। किशोर कुणाल ने कब्र से लाश निकलवाई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पर दो मंत्रियों के साथ तीन दर्जन से अधिक विधायकों ने दबाव बनाया था कि केस सीबीआई को नहीं दिया गया तो सरकार गिरा दी जाएगी। शायद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संज्ञान में भी यह मामला था। वह नहीं चाहती थीं कि सेक्स स्कैंडल में दर्जनों कांग्रेसी नेताओं की पोल खुलने से बिहार में कांग्रेस की सरकार गिर जाए। सीबीआई ने पटना पुलिस से संपर्क करने की जहमत नहीं उठाई। सीबीआई के भ्रष्ट अफसरों ने बेसिर-पैर की आत्महत्या की कहानी गढ़ फाइनल रिपोर्ट दे दी। सरकारी वकील ने सीबीआई रिपोर्ट का विरोध नहीं किया। कोर्ट ने भी क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया।
मंदिरों में दलित पुजारी का लिया फैसला
आचार्य कुणाल बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक भी रह चुके हैं। 17 मार्च २००९ को उन्हें एसएमएस भेजकर सावधान किया गया था कि उनके पीछे गुंडों को लगाया गया है। उस समय उन्होंने स्पेशल ब्रांच (सीआईडी) के महारिनीक्षक पीके ठाकुर को लिखित सूचना दी थी। उस अपराधी का पता नहीं चल सका, जिसने एसएमएस भेजा था। दस साल पहले उन्होंने यह फैसला लिया था कि राज्य के हर जिले में कम-से-कम दो सार्वजनिक मंदिरों में दलित पुजारी बहाल होंगे। तब राज्य के 50 हजार से अधिक मंदिरों में 4 हजार मंदिर पंजीकृत थे और महावीर मंदिर (पटना), विशालनाथ मंदिर (हाजीपुर), महादेव मंदिर (बिहटा), रामजानकी ठाकुरवाड़ी (पालीगंज), जगन्नाथ मंदिर (बोधगया), राधाकृष्ण मंदिर (मनियारी, मुजफ्फरपुर) में दलित पुजारी थे।
1981 में पहली बार रोहतास में चर्चा में आए
किशोर कुणाल तब पहली बार चर्चा में आए, जब दिसम्बर 1981 में डालमियानगर में पत्रकार विजय बहादुर सिह हत्याकांड में एशिया प्रसिद्ध कारखानों वाले रोहतास इंडस्ट्रीज के एक वरिष्ठ निदेशक को गिरफ्तार कर जेल भेजवा दिया था। इन पंक्तियों के लेखक (कृष्ण किसलय) से तब टाइम्स आफ इंडिया के प्रबंध निदेशकों में शामिल रहे उस कारपोरेट अधिकारी ने सवाल किया था कि क्या उन्होंने मर्डर कराया है? वह कारपोरेट अधिकारी बाद में कांड के अभियोग से बरी हो गए। पत्रकार विजयबहादुर सिंह सोनमाटी के विशेष संवाददाता थे। बहरहाल, 20वींसदी के दबंग आईपीएस अफसर और 21वींसदी के तत्वदर्शी धार्मिक आचार्य किशोर कुणाल ने अपनी आत्मकथा की पुस्तक (कहानी कुणाल की) लिखने का फैसला किया है, जिसमें उनके जीवन की पूरी कहानी होगी।

ब्रिटिश इतिहासकार की पुस्तक भी बना साक्ष्य
आचार्य कुणाल की पुस्तक के अलाव ब्रिटिश इतिहासकार हेस टी बेकर की किताब (अयोध्या) को भी कोर्ट में साक्ष्य के रूप में पेश किया गया था, जिसमें बेकर ने सातवीं सदी ईसा पूर्व से 18वीं सदी के मध्य तक के भारत की जानकारी प्रस्तुत की है। इस किताब में दो प्राचीन ग्रंथों (अयोध्या माहात्म्य और अगस्त्य संहिता) के संदर्भ हैं। इसमें नेपाल में संरक्षित स्कंद पुराण से सामग्री ली गई है, जो भारत में उपलब्ध स्कंद पुराण से काफी अलग है। सांस्कृतिक इतिहासकार बेकर ने भारत पर विशेष अध्ययन किया है। चौथी, पांचवीं और छठी सदी में भारत की राजनीति-धार्मिक संस्कृति उनके शोधकार्य का विषय है। यूनिवर्सिटी आफ ग्रोनिन्जेन (नीदरलैंड) में इंस्टीट्यूट आफ इंडियन स्टडीज के निदेशक रहे इतिहासकार हेस टी बेकर यूरोपियन रिसर्च काउंसिल के कोष प्रबंध से ब्रिटिशम्यूजियम की विशेष शोध प्रोजेक्ट (बियोन्ड बाउंड्रीज : रिलीजन, रीजन, लैंग्वेज एंड द स्टेट) पर 2014 से काम कर रहे हैं।

संपर्क : कृष्ण किसलय
सोनमाटी-प्रेस गली,
जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया,
डालमियानगर-821305,
जिला रोहतास (बिहार)
फोन 9708778136, 9523154607

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Click to listen highlighted text!