एसएसपी के सास-ससुर के लॉकर में चार करोड़, खुल गई राहुल गांधी की झूठ की पोल : सांसद

काली कमाई का एक जरिया थाने की नीलामी, वार्षिक विवरणी कई संपत्ति के बारे में सूचना नहीं
मुजफ्फरपुर (बिहार)-सोनमाटी संवाददाता। एसवीयू (विशेष सतर्कता इकाई) के अधिकारियों ने निलंबित एसएसपी विवेक कुमार के ससुरालवालों के उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की बैंकों के छह लॉकरों में चार करोड़ रुपये से ज्यादा के नकदी, आभूषण, विदेशी मुद्रा और जमा राशि के दस्तावेज बरामद किए हैं। आय के ज्ञात स्रोतों से तीन गुना अधिक संपत्ति रखने के आरोप में सतर्कता अधिकारियों ने एसएसपी के मुजफ्फरपुर के आवास पर छापे मारे थे। ये छापे कुमार के पैतृक जिले सहारनपुर और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में उनके ससुरालवालों के घर भी मारे गए।
विवेक कुमार के आवास पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में एसवीयू के छापे के बाद उन्हें बिहार सरकार ने 17 अप्रैल को निलंबित कर दिया। कुमार साल 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उन पर आय के ज्ञात स्रोत से तीन गुणा ज्यादा संपत्ति रखने के मामले में  15 अप्रैल को एसवीयू पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज हुई थी।
काली कमाई का एक जरिया थाने की नीलामी
मुजफ्फरपुर एसएसपी विवेक कुमार के खिलाफ विशेष सतर्कता इकाई को पिछले कुछ वक्त से काफी शिकायतें मिल रहीं थीं कि उनकी सांठगांठ स्थानीय शराब माफिया के साथ है और उनकी  काली कमाई का एक जरिया थाने की नीलामी है, जो थानाध्यक्ष सबसे ज्यादा बोली लगाता था, उसको उसके पसंद का थाना दिया जाता था।
एसवीयू के महानिरीक्षक रतन संजय के अनुसार, विवेक कुमार के ससुराल मुजफ्फरनगर में उनके सास-ससुर के घर पर मारे गए छापे के दौरान छह लॉकर की चाबियां मिलीं। ये लॉकर संयुक्त रूप से विवेक कुमार के ससुर वेद प्रकाश कर्णवाल और सास उमा रानी के नाम पर थे।
वार्षिक विवरणी कई संपत्ति के बारे में सूचना नहीं
मुजफ्फरपुर के पूर्व एसएसपी विवेक कुमार (फिलहाल निलंबित) सरकारी अधिकारियों के लिए अनिवार्य रूप से सालाना संपत्ति घोषणा में अपनी कई संपत्ति के बारे में सूचना नहीं दी है। उनके आवास पर सर्च के दौरान 1.66 करोड़ रुपये मिले, जबकि अपने पास पांच हजार, पत्नी के पास 30 हजार और बेटा के नाम पर 12 हजार रुपये नकद होने का उल्लेख किया है। उन्होंने 25 लाख रुपये निवेश का उल्लेख वार्षिक विवरणी में किया है, पर तलाशी में 1.95 करोड़ रुपये के निवेश मिले हैं। अपने पास 60 ग्राम, बेटा के पास 70 ग्राम और पत्नी के पास 700 ग्राम सोना होने का उल्लेख किया है, पर तलाशी में 64 लाख रुपये का सोना मिला है।
खुल गई झूठ की राहुल गांधी पोल : सांसद
डेहरी-आन-सोन (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस बीएच लोया की मौत को प्राकृतिक माना है। इससे जस्टिस की मौत के पीछे षड्यंत्र होने का कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का आरोप खंडित हो गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने के बाद प्रेस कांफ्रेन्स कर भाजपा के सांसद एवं देवमंगल ट्रस्ट (नारायाण मेडिकल कालेज) के अध्यक्ष गोपालनारायण सिंह ने कहा कि कांग्रेस की झूठ पर आधारित राजनीति की पोल खुल गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोया की मौत के संबंध में दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा है कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज लोया के साथ नागपुर में शादी समारोह में बॉम्बे हाईकोर्ट के चार जज भी मौजूद थे। उनके बयानों से पता चलता है कि जज लोया की मौत हार्ट अटैक से हुई थी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच इस केस में सुनवाई कर रही थी, जिसमें जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी थे। नवम्बर 2017 में जज लोया की बहन ने लोया की मौत को संदेहास्पद होने का आरोप लगाया था।
कौन थे जस्टिस लोया, क्यों दायर हुई थी जनहित याचिका
जस्टिस बीएच (वृजगोपाल हरकिशन) केन्द्रीय जांच ब्यूरो की अदालत में कार्यरत थे और लोया कुख्यात माफिया सोहराबुद्दीन की पुलिस मुृठभेड़ में मौत के आरोप के मामले की अध्यक्षता कर रहे थे। सीबीआई जज बीएच लोया की 2014 में हुई थी। मौत के तीन साल बाद मीडिया में रिपोर्टों के चलते यह मामला नए सिरे से चर्चा में आया। चूंकि मौत के पहले वह गुजरात के सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आरोपी थे। इसलिए इस पूरे मामले का एक राजनीतिक पहलू भी था।
आरोप था कि शाह को क्लीन चिट देने के लिए तैयार न होने की कीमत जज लोया को चुकानी पड़ी। बहरहाल, अब  देश का सर्वोच्च न्यायिक विवेक सभी पहलुओं और उपलब्ध साक्ष्यों पर गौर करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि जज लोया की मौत को संदिग्ध मानने का कोई कारण नहीं है।
कुख्यात माफिया लतीफ का ड्राइवर था सोहराबुद्दीन
सोहराबुददीन पर 50 मुकदमे थे। सोहराबुददीन गुजरात के सबसे बड़े माफिया लतीफ का ड्राइवर था। लतीफ गुजरात में वही काम करता था, जो काम महाराष्ट्र में दाऊद करता था। पहले लतीफ दाउद का सहयोगी था, बाद में झगड़ा हो गया। एक बार गुजरात में दाऊद गैंग और लतीफ गैंग में मुंठभेड़ हुई तो लतीफ गैंग ने दाऊद गैंग को भगा दिया था। वर्ष 1996 में आतंक विरोधी दस्ते ने लतीफ को दिल्ली से गिरफ्तार किया था। गुजरात पुलिस ने 1997 में बताया कि लतीफ को मुठभेड़ में मार दिया गया। आरोप लगा कि मुठभेड़ नकली थी। तब कांग्रेस समर्थित राजपा सरकार ने उन पुलिस अफसरों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया, जिन्होंने लतीफ को मारा था। अब जब नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में सोहराबुददीन मारा गया तो हंगामा हो गया। सोहराबुददीन वही काम करने लगा था जो काम लतीफ करता था। उससे तीन राज्यों के व्यापारी परेशान थे। सोहराबुददीन के गांव (उज्जैन, मध्य प्रदेश) से पुलिस ने एक कुंए से बड़ी संख्या में घातक हथियार बरामद किए थे। वे हथियार 1993 के मुम्बई बम कांड से पहले दाऊद ने विदेश से मंगवाए थे।
इस सदी में देश में नकली मुठभेड़ के 1782 मामले
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रपट के अनुसार, वर्ष 2000 से 2017 तक देश भर में नकली मुठभेड़ की 1782 आरोप लगाए गए थे, जिनमें हिन्दू भी थे और मुसलमान भी थे। किसी मुठभेड़ का मुद्दा बहुत गंभीर नहीं बनाया गया, जितना सोहराबुददीन की मुठभेड़ में मौत का मुद्दा बनाया गया।
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