…और नहीं निकला मुहर्रम का जुलूस

ऐसा हुआ पहली बार, उठे कई सवाल, प्रशासन पर पक्षपात का आरोप ,

दुर्गा पूजा व मुहर्रम साथ-साथ
पटना/डेहरी-आन-सोन (निशांत राज/वारिस अली/कुमार अरुण गुप्ता)। बिहार में दो-तीन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बावजूद मुहर्रम और दुर्गा पूजा प्राय: शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ। इस बार दोनों धार्मिक आयोजनों के एक साथ होने के कारण प्रशासन की ओर से पर्याप्त एहतियात बरता गया और आशंका वाले जिलों में भारी पुलिस बल की व्यवस्था की गई। दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन 2 अक्टूबर की देर शाम हुआ। रोहतास जिले के डेहरी-आन-सोन में मुस्लिम समाज ने मुहर्रम का जुलूस नहींनिकालने का फैसला किया, ताकि तनाव नहींबढ़े, पारंपरिक भाईचारगी व सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे और असामाजिक तत्वों को शांति भंग करने का मौका नहीं मिले। सद्भाव के शहर के रूप में पहचाने जाने वाले डेहरी-आन-सोन के मुस्लिम समाज का यह फैसला इस लिहाज से ऐतिहासिक है कि शहर में ऐसा पहली बार हुआ।
मनाने पहुंचा जिला प्रशासन
डेहरी-आन-सोन में अनुमंडल दंडाधिकारी पंकज पटेल और अनुमंडल पुलिस अधिकारी अनवर जावेद अंसारी के साथ सेंट्रल मुहर्रम कमिटि और नगर पूजा समिति के पदाघिकारियों की हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि जिन मार्गों से होकर मुहर्रम का जुलूस निकलता है, उन रास्तों पर स्थित दुर्गा प्रतिमाएं 30 सितंबर को ही विसर्जित कर दी जाएंगी। मगर 30 सितंबर को संबंधित मूर्तियों के विसर्जित नहींहोने की वजह से मुहर्रम कमिटि को यह फैसला लेने पर बाध्य होना पड़ा कि मुहर्रम का जुलूस नहीं निकलेगा। हालांकि मुहर्रम कमिटि के इस फैसले की सूचना मिलने के बाद जिलाधिकारी अनिमेष कुमार पराशर और पुलिस अधीक्षक एमएस ढिल्लो ने डेहरी में मुहर्रम कमिटि के पदाधिकारियों को देर शाम तक मनाने का प्रयास भी किया।
यह कैसा इंसाफ?
मुहर्रम कमिटि ने इस बाबत अनुमंडल दंडाधिकारी को यह लिखित तौर पर सूचना दी कि मुहर्रम का जुलूस जिस रास्ते से आता है, उस रास्ते पर दुर्गा प्रतिमा व पंडाल मौजूद हैं और उस रास्ते को नगर पूजा समिति व प्रशासन ने खाली नहीं कराया है। कमिटि ने इस लिखित सूचना में प्रशासन का पर्याप्त सहयोग नहींमिलने का साफ-साफ उल्लेख किया है। मुस्लिम पक्ष में नाराजगी है और यह पक्ष मान रहा है कि प्रशासन ने सौतेला व्यवहार किया। मुहर्रम कमिटि के लोगों का कहना है कि पिछले साल (2016) और 1982 व 1983 में भी ऐसा ही संयोग था कि दशहारे के अगले दिन मुहर्रम था, लेकिन ताजिया का जुलूस बाधित नहींहुआ था। मुस्लिम समाज ने यह सवाल उठाया है कि यह कहां का सामाजिक न्याय और प्रशासनिक इंसाफ है कि एक पक्ष तो 12 दिनों तक त्योहार मनाए और दूसरे पक्ष को एक दिन के लिए भी अपनी भावना के इजहार करने से वंचित कर दिया जाए? यह भी माना जा रहा है कि मुस्लिम लीडरशीप का अभाव होने से ऐसा हुआ।
नोखा, पीरो में तनाव, धारा-144
रोहतास जिले के ही नोखा में दो पक्षों में झड़प होने और रोड़ेबाजी में इंस्पेक्टर सहित कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। स्थिति पर काबू पाने के लिए डीएम, एसपी के साथ शाहाबाद परिक्षेत्र के डीआईजी ए. रहमान को भी घटनास्थल पर पहुंचना पड़ा। अफवाह फैलने से रोकने के लिए प्रशासन को इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंधित करना पड़ा और निषेधाज्ञा (धारा-144) लागू कर सशस्त्र बलों का फ्लैग मार्च निकालना पड़ा।
रोहतास के पड़ोसी जिले भोजपुर के पीरो में देवी मंदिर रोड में ताजिया जुलूस के दौरान रोड़ा फेंकने के विवाद में दो गुटों के बीच हिंसक झड़प के बाद आक्रोशित लोगों ने दुकानों में तोडफ़ोड़ की। पुलिस को स्थिति कंट्रोल करने के लिए फायरिंग करनी पड़ी। भीड़ ने पुलिस-प्रशासन मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। हालांकि भोजपुर के पुलिस अधीक्षक अवकाश कुमार ने पुलिस की ओर से फायरिंग किए जाने से इंकार किया। उपद्रव के बाद डीएम संजीव कुमार, एसपी अवकाश कुमार घटनास्थल का दौरा किया। तनावपूर्ण हालत को देखते हुए धारा-144 लगा दी गई है। प्रशासन को अफवाहों के फैलने की आशंका के मद्देनजर इंटरनेट सेवा प्रतिबंधित करना पड़ा।
उधर, बिहा के सीतामढ़ी जिले में धार्मिक जुलूस में भीड़ के रूप में शामिल असामाजिक तत्वों ने भारी बवाल काटा। सीतामढ़ी के डीएम राजीव रोशन, एसपी हर प्रसाद को मौके पर पहुंचकर स्थिति संभालनी पड़ी और पुलिस को स्थिति नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज व हवाई फायरिंग भी करनी पड़ी।

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    One thought on “…और नहीं निकला मुहर्रम का जुलूस

    1. रोहतास जिले के डेहरी-आन-सोन में मुस्लिम समाज ने मुहर्रम का जुलूस नहीं निकालने का फैसला किया, ताकि तनाव नहीं बढ़े, पारंपरिक भाईचारगी व सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे और असामाजिक तत्वों को शांति भंग करने का मौका नहीं मिले। सद्भाव के शहर के रूप में पहचाने जाने वाले डेहरी-आन-सोन के मुस्लिम समाज का यह फैसला इस लिहाज से ऐतिहासिक है कि शहर में ऐसा पहली बार हुआ।

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