दाउदनगर (औरंगाबाद) -सोनमाटी समाचार। बिहार में सोन नदी तट पर बसे सबसे पुराने शहर दाउदनगर की सांस्कृतिक गतिविधियां सिमटती जा रही हैं। सोनघाटी के इस अंचल में भी धीरे-धीरे नाटक मरता जा रहा है। दाउदनगर में अभिनव कला परिषद, दर्पण, कला संगम, ज्ञान गंगा आदि नियमित नाटक करने वाली शहर की प्रतिनिधि संस्थाएं थीं। अब तो इक्का-दुक्का ही कहीं नाटक मंचन होता है। रंगमंच पर अभिनेता का शरीर ही उसका यंत्र होता है, जिसके द्वारा किसी लेखकीय कृतिा रचना और व्याख्या कर उसे सांस्कृतिक आकार देता है। मगर अब तो दाउदनगर अंचल में सिर्फ उत्सव बचा रह गया है। नृत्य के कार्यक्रम ज्यादा होते हंै। नृत्य के कार्यक्रम ज्यादा होते है। नाटक जैसी गंभीर और बहुकला विधा मरता गया है। जबकि यहां नाटकों का मंचन नियमित तौर पर हुआ करता था। यहां के रंगमंच के अच्छे कलाकार थे, जो बाहर जाकर अपना जलवा दिखाते थे।
व्यस्तता के कारण भी एकजुट नहींहो पा रहे कलाकार
स्थानीय कलाकार ब्रजेश कुमार एवं द्वारिका प्रसाद बताते हैं कि पहले आपसी चन्दा कर नाटक का मंचन होता था। आज नाटक खेलना महंगा है। नाटक में 40-50 हजार रुपये कम से कम खर्च होता है। पहले की अपेक्षा नाटक के प्रेमी नहीं रहे। महीनों तक मंचन के लिए अभ्यास करने वाले रंगकर्मी बेहद कम हो गए हैं। व्यस्तता के कारण लोग दूरी बना रहे हैं। नए कलाकारों को प्रोत्साहन नही मिल पा रहा है।
पुरुष ही करते थे महिला भूमिका
राजेन्द्र प्रसाद बताते हैं कि पहले पुरुष ही महिला पात्र की भूमिका निभाते थे। एक बार पटना से महिला कलाकार को बुलाया गया, पर अचानक उसकी तबियत खराब होने से समस्या खड़ी हो गई कि इतनी जल्दी किसे बुलाया जाए? तब उन्होंने महिला भूमिका निभाई। कोई पहचान नही पाया कि भूमिका कोई पुरुष कर रहा है। तब से वे नाटक में महिला भूमिका करने लगे।
जीवित जहरीले सांप के साथ अभिनय
वर्ष 1980 में अभिनव कला परिषद के बैनर तले नाटक (पराजय) लेकर दाउदनगर के रंगकर्मी देव (औरंगाबाद) की नाट्य प्रतियोगिता में गए थे। उस समय देव में फिल्म (कल हमारा है) की शूटिंग चल रही था, जिसके निर्देशक केके हंगल नाट्य प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में थे। नाटक में दाउदनगर के वरिष्ठ कलाकार डॉ दिनु प्रसाद सपेरे के भूमिका में थे और जिंदा सांप (गेहंूमन) लेकर मंच पर आए तो सभी दंग रह गए। एक बार तो नाटक के रिहर्सल में सांप ने इन्हें डंस लिया था। फिर भी इन्होंने ने असली सांप के साथ ही भूमिका करना मंजूर किया। नाटक (पराजय) ने देव की प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता था। इन्होंने एक नाटक में मुनीब की भूमिका निभाई तो चर्चित हुई थी। यही कारण है कि रंगकर्मियों-मित्रों के बीच उन्हें आज भी मुनीब जी कहते हैं।
नगर भवन जीर्ण-शीर्ण, कलाकारों के लिए दूसरी मुफीद जगह नहीं
कार्यक्रम के लिए यहां नगर भवन होने के बावजूद दूसरी जगह का चुनाव करना पड़ता है। 2003 में शहर में टाउन हॉल बना था। तब वह रंगमंच के कलाकारों के लिए तोहफा था। आज टाउन हॉल अपनी दुर्दशा पर आसूं बहा रहा है। दाउदनगर में टाउन हॉल का निर्माण तत्कालीन विधायक राजाराम सिंह ने विधायक ऐच्छिक निधि से कई चरणों में कराया था। ओबरा के तत्कालीन विधायक व बिहार सरकार के मंत्री रामविलास सिंह ने 17 जुलाई 1993 को गोह के विधायक रामशरण यादव की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में नगर भवन का शिलान्यास किया था।
अभी दाउदनगर में रंगमंच को समर्पित सक्रिय संस्था प्रबुद्ध भारती है, जिसके कलाकार कोलकाता, शिमला, देहरादून में अपना जलवा बिखेर चुके हैं। इसी साल प्रखंड कार्यालय परिसर में एसडीओ अनीस अख्तर ने इस संस्था को गौरव सम्मान दिया था। कलाकारों संजय तेजस्वी, मास्टर भोलू, गोविंदा राज, विकास, सुशील, पुष्प, लोकगायक पंकज पाल आदि का कहना है कि शहर में नगर भवन के होते हुए भी अलग जगह पर मंच बनाना पड़ता है, जिसमें नकद के साथ श्रम, समय अधिक लगता है। अगर नए सिरे से नगर भवन की मरमत करा दी जाए तो यह बेहतर होगा। विद्यार्थी क्लब के निर्देशक चन्दन कुमार का कहना है कि दाउदनगर का नगर भवन शहर का इकलौता भवन है, इसका रख-रखाव तो नियमित होना ही चाहिए।
फिल्म एवं टीवी अभिनेता राव रणविजय सिंह का कहना है कि रंगमंच के जरिये ही हम अपनी निजता के साथ सामुदायिकता को भी प्रकट कर सकते हैं। वरिष्ठ कलाकार द्वारिका सिंह का कहना है कि पहले प्रखंड परिसर में नाटक का मंचन होता था। नगर भवन बनने से कलाकारों में खुशी हुई थी। कलाकार विकास कुमार का कहना है कि नगर भवन शहर और गांव को जोडऩे वाला एक महत्वपूर्ण परिसर है, लेकिन इस पर नगर परिषद ने ध्यान नहींदिया।
( परिचर्चा रिपोर्ट एवं तस्वीर : संतोष अमन, निशांत राज)