देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष को प्रतिबिंबित करने वाली पाक्षिक पत्रिका ‘चाणक्य मंत्र’ के इस पखवारा (01-15 जनवरी अंक) की पटना से कृष्ण किसलय की रिपोर्ट।
बिहार में भी किसान आंदोलन के लिए जमीन तैयार की जा रही है। भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी गुट) के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष और बड़े किसानों में शुमार गुरनाम सिंह चारुनी ने यूनियन के करनाल जिला अध्यक्ष जगदीप सिंह औलख के साथ पटना दौरा कर 23 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून बनाने और नए खेती कानूनों को वापस लेने की मांग उठाई। उन्होंने बिहार किसानों से आह्वान किया कि उन्हें भी दिल्ली बार्डर पर चल रहे आंदोलन में सक्रियता के साथ हिस्सा लेना चाहिए। हवाई जहाज से बिहार की राजधानी पटना पहुंचने वाले गुरनाम सिंह चारुनी देश की राजधानी दिल्ली बार्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में जारी किसान आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। हालांकि चारूनी के दौरे को बहुत महत्व नहींदिया गया और असरकारी भी नहींमाना जा रहा है, मगर वह किसान आंदोलन को लेकर बिहार में एक सुगबुगाहट छोड़ गए। बिहार में प्रतिपक्षी राजनीतिक दल किसान आंदोलन के समर्थन में हैं और वे एक दिन के बंद में राज्यस्तर पर सक्रियता के साथ शामिल हो चुके हैं।
भूमि उपजाऊ, पानी अच्छा फिर भी पलायन :
गुरनाम सिंह चारुनी ने कहा है कि केंद्र की ओर से लाए गए कृषि कानून से देश का पूरा कृषि व्यापार पूंजीपतियों के हाथों में चला जाएगा। किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा, जबकि उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। बड़े पूंजीपति देश को लूट रहे हैं और गरीबी-अमीरी के बीच खाई बढ़ती जा रही है। एक विश्वास करने योग्य ग्लोबल हंगर इंडेक्स का हवाला देते हुए चारुनी ने बताया है कि भारत 107 देशों में 94वें स्थान पर है। कहा कि बिहार में नीतीश सरकार के आने के बाद 2006 में कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) अधिनियम को समाप्त कर दिया गया था, क्योंकि एमएसपी के तहत फसलों की खरीद नहीं की जा रही थी। बिहार के किसानों को काम करने के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करना पड़ता है। जबकि बिहार की भूमि उपजाऊ है, पानी अच्छा है।
14 साल पहले एपीएमसी खत्म, अब डीजल अनुदान भी :
दिल्ली बार्डर पर कृषि बिल के खिलाफ किसानों के जारी आंदोलन के बीच बिहार सरकार ने एक दशक से जारी किसानों को दी जाने वाली डीजल अनुदान योजना बंद कर दी है। किसानों को साल में तीन सिंचाई के लिए प्रति लीटर 60 रुपये अनुदान मिल रहा था। अनुदान बंद होने से किसानों की परेशानी बढ़ गई है। इस अनुदान योजना के तहत बीते वर्ष साढ़े छह लाख किसान लाभान्वित हुए थे। हालांकि आवेदक किसानों में से करीब आधे को लाभ मिला था। किसान डीजल का उपयोग हार्वेस्टर से कटनी, दौनी, बाजार तक कृषि उपज को ट्रैक्टर से पहुंचाने आदि में करते हैं। राज्य सरकार का कहना है कि बिजली की उपलब्धता हर गांव में हो चुकी है और बिजली की खपत डीजल से सस्ती भी है। जबकि कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा है कि डीजल अनुदान योजना फिलहाल इस साल के लिए बंद की गई है। बिहार सहित देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां फसल पर लागत समर्थन मूल्य से ज्यादा होती है। बिहार में 14 साल पहले 2006 में सरकार ने एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) खत्म कर दी थी। ऐसा करने वाला बिहार देश का पहला राज्य था। राज्य सरकार को अधिकार नहीं है कि वह अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे। हालांकि बिहार सरकार पैक्स (प्राथमिक कृषि साख एवं सहयोग समिति) और व्यापार मंडल के जरिये अनाज खरीदती है।
धान खरीद को 9.5 हजार करोड़ की गारंटी :
राज्य में करीब 85 सौ पैक्स और सवा पांच सौ व्यापार मंडल हैं, जिनके जरिये इस साल 45 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य है। राज्य सरकार ने धान की खरीद के लिए खाद्य निगम को बैंक ऋण के रूप मेंं 06 हजार करोड़ रुपये की और और सहकारिता विभाग को 3500 करोड़ रुपये की गारंटी दी है। बिहार में कृषि गणना 2015-16 के मुताबिक औसत जोत का आकार 0.39 हेक्टेयर है और 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में लगभग 91.2 फीसदी किसान परिवार सीमान्त हैं। सीमान्त किसानों के पास अतिरिक्त उत्पादन नहींहोने से एपीएमसी एक्ट खत्म होने का असर उन पर नहीं के बराबर है। पैक्स की धान खरीदने की सीमा है और वह किसानों को भुगतान भी समय पर नहींकर पाती। सीमान्त किसानों की वास्तविक समस्या तकनीक, सिंचाई सुविधा, भू-अधिकार आदि हैं और इनके निदान की सरकार से दरकार है। इस दिशा में नई राज्य सरकार ने पांच साल के लिए बतौर प्रयोग सभी 38 जिलों में आर्थिक सहायता वाली मौसम के अनुरूप कृषि कार्यक्रम आरंभ किया है। यह कार्यक्रम परिणाम के आधार पर राज्य में स्थाई आकार ग्रहण करेगा।
भारतीय स्टेट बैंक की किसानों से संबंधित रिपोर्ट :
इसी बीच भारतीय स्टेट बैंक आफ इंडिया की एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में कृषि समस्याओं को चिह्निïत किया गया है और सुझाव दिए गए हैं। स्टेट बैंक की ओर से सुझाया गया है कि नीतियों में कई परिवर्तन कर किसानों की आय 35 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है। भारतीय स्टेट बैंक देशभर में वर्ष 1998 में शुरू हुई किसान क्रेडिट कार्ड योजना (केसीसीवाई) का समन्वय करता है। किसान क्रेडिट योजना में किसानों को चार फीसदी ब्याज दर पर छोटी अवधि के लिए कर्ज मिलता है और कर्ज की अधिकतम सीमा 03 लाख रुपये है। कार्ड होल्डर को बीमा की सुविधा मिलती है। भारतीय स्टेट बैंक के मुताबिकग, मार्च 2020 तक 6.7 करोड़ सक्रिय किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को करीब 07 लाख 9 हजार 500 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया था। फसल नुकसान, बेतहाशा बढ़ती कीमत और कर्ज माफी जैसी समस्या है। कर्ज माफी से बैंक भी संकट में फंसते हैं। सुझाया गया है कि सरकार कीमत की गारंटी के लिए एमएसपी की जगह न्यूनतम पांच साल के लिए मात्रा की गारंटी को जोड़ सकती है।
कृषि मंडियों से बाहर टैक्स फ्री ट्रेड का है डर :
पंजाब धान की खेती में देश में तीसरे नंबर पर है, लेकिन खरीद में सबसे आगे है। किसानों को डर है कि मंडियों के बाहर टैक्स फ्री ट्रेड को बढ़ावा देने से कृषि बाजार बेकार हो जाएगा। देश में करीब 1000 कृषि मंडियां हैं, 1.45 लाख ट्रेडर्स हैं और 1.67 करोड़ किसान पंजीकृत हैं। समस्या यह है कि कृषि मंडियों का औसत दाम सभी वस्तुओं के एमएसपी से कम होता है। फसल की कटाई के बाद कृषि उत्पाद को कई दौर की हैंडलिंग और स्टोरेज से गुजरने के कारण करीब 27 हजार करोड़ रुपये का अनाज का नुकसान भी किसानों को झेलना होता है। तेल और दलहन की फसल में सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जो क्रमश: 10 हजार करोड़ रुपये और 5 हजार करोड़ रुपये के हैं। अनुबंध खेती (कान्ट्रेक्ट फार्मिंग) में किसान-खरीदार के बीच उत्पादन की शर्त, मात्रा, गुणवत्ता आदि पहले से तय होते हैं। किसान क्रेडिट कार्ड के तहत ऋण देने की वजह से बैंक भी किसानों की समस्याओं से एक हद तक वाकिफ है। इसीलिए भारतीय स्टेट बैंक का यह सुझाव है कि देश में इसके लिए एक संस्था बनाने से खासतौर पर छोटे, कमजोर किसानों को फायदा होगा और वे बड़े खरीदारों से डील करने में समर्थ हो सकेेंगे।
सरकार है अभिभावक, उम्मीद कर रहे किसान :
बहरहाल, दिल्ली सिंधु बार्डर पर हजारों किसान खुले आसमान के नीचे आंदोलनरत हैं। समझा जा सकता है कि प्रतिकूल मौसम में किसानों का दिन-रात सड़क पर रहना उनके लिए कितना जोखिम भरा है? दो दर्जन से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है, जिसके लिए प्रतिकूल मौसम ज्यादा बड़ा कारक है। बेहतर बात यह है कि इस आंदोलन में अब तक कोई हिंसा नहीं हुई है। यह सही है कि आंदोलनकारी किसान जरा भी झुकने को तैयार नहीं हैं। सरकार ने कुछ लचीलापन जरूर दिखाया है। दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क हैं। सिंघु बार्डर पर किसान नेता कुलवंत सिंह संधू ने घोषणा की है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाना ही प्रमुख मांग है, जिससे समझौता नहीं होगा। इससे जाहिर है कि न किसान मानने को तैयार हैं और न सरकार। फिर भी किसान सरकार से उम्मीद लगाकर ही अपने घर से दूर कष्ट झेल रहे हैं। बातचीत का क्या हल होगा, कौन कितना मानेगा और क्या परिणाम निकलेगा? यह भविष्य के गर्भ में है। मौसम ने अपना कठोर चेहरा दिखाने लगा है। आंदोलनकारी किसानों को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है। फिलहाल अभिभावक होने के नाते केंद्र सरकार को जानलेवा ठंड में आंदोलनकारी किसानों की सुरक्षा का उपाय करना और जरूरी सुविधाएं मुहैया कराना चाहिए, क्योंकि आंदोलनकारी किसान भी देश के नागरिक हैं और सम्मान देने के अधिकारी हैं।
– कृष्ण किसलय, पटना
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