कौन अर्जुन और कौन दुर्योधन ?

– कृष्ण किसलय, वरिष्ठ पत्रकार

(देहरादून, दिल्ली कार्यालय से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष का

हिंदी पाक्षिक  चाणक्य मंत्र  में पटना, बिहार से विशेष रिपोर्ट)

केेंद्र में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, सरकार बनाने और मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व पाने में 40 सीटों वाले बिहार का अलग महत्व रहा है। बिहार में 17वींलोकसभा के चुनाव में राष्ट्रवाद और जातिवाद की अग्निपरीक्षा का परिणाम सामने आना है, क्योंकि सभी 40 सीटों पर जाति का लेबल चिपका है और जातिवाद यहां चार दशकों से टेस्टेड फार्मूला है। एनडीए और महागठबंधन दोनों तरफ से चुनाव का दौर समाप्त होने के बाद सभी सीटों पर जीत के दावे हो रहे हैं। मगर मतदान प्रतिशत से दोनों तरफ बेचैनी है, क्योंकि औसतन 60 फीसदी हुए मतदान के पारंपरिक पैटर्न में जीत-हार का संकेत निहित नहींहै। मतदाताओं ने सोचा-समझा फैसला ईवीएम में बटन दबाकर लाक कर दिया है, जो 23 मई को सामने आएगा। 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों के मतदान के लिए दोनों पक्षों एनडीए और महागठबंधन की ओर से अपनी-अपनी जमीन बचाने की आर-पार की लड़ाई लड़ी गई। चुनाव प्रचार के दौरान डर और दुश्मनी की भावनाओं को तरह-तरह से भड़काया गया। चुनाव को प्रभावित करने, जीतने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए गए। अखबारों-चैनलों-पत्रकारों को खरीदने का वैध-अवैध तरीका अपनाया गया और चुनाव कन्सलटेन्ट के रूप में पैदा हुए नए कारोबारियों का भी सहारा लिया गया, जिन्होंने करोड़ों-अरबों रुपये लेकर प्रोपेगेंडा किया और फेकन्यूज गढ़ा। चुनाव प्रचार का अंतिम चरण तो इस तीखे सवाल में तब्दील हो गया कि सत्ता के महाभारत का कौन अर्जुन है और कौन है दुर्योधन?
परिणाम को लेकर बिहार पर भी दुनिया की निगाहें
वैसे तो सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के लोकसभा चुनाव को दुनिया भर के देश उत्सुकता से देखते रहे हैं, मगर इस बार खास बात यह कि यूरोप, एशिया के देशों की दिलचस्पी जाति की भूमिका को लेकर है। बिहार में जातियां और जाति-समूह चुनाव की सबसे बड़ी ताकत हैं। इसलिए लोकसभा के चुनाव-परिणाम को लेकर बिहार पर भी दुनिया की निगाहें हैं। अनेक देशों के भारत में नियुक्त राजनयिक कूटनीतिक सीमाओं के अंतर्गत चुनाव के कारकों को समझने का प्रयास कर रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि जाति जैसी प्राचीन सामाजिक संरचना तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था और आधुनिक जीवन मूल्यों वाले समाज में आखिर क्यों और किस तरह अपनी निर्णायक मौजूदगी बनाए हुए है? आखिर क्यों शादी-विवाह की तरह चुनाव में भी जाति की भूमिका बनी हुई है और इसका महत्व कम होने के बजाय क्यों बढ़ता गया है?
बिहार के राजनीतिक भाग्य का फैसला फोन के जरिये भी
लोकसभा चुनाव पर दुनिया की नजरें इसलिए भी हैं कि इसका आकार और सरोकार दुनिया में सबसे बड़ा है। इस बार चुनाव की एक और महत्वपूर्ण बात यह हुई है कि सूचना तकनीक की बेहतर जानकारी से लैस करोड़ों युवाओं ने बिहार के राजनीतिक भाग्य का फैसला फोन (स्मार्ट मोबाइल हैंडसेट) के जरिये बने जनमत के आधार पर भी किया। यही कारण है कि कई तरह के ऐप, विभिन्न यू-ट्यूब चैनल, फेसबुक पर चुनावी पेज आदि सक्रिय हुए। मगर चिंताजनक बात यह है कि विकासशील अर्थात कम संसाधन वाला देश भारत का सबसे खर्चीला आम चुनाव दुनिया में मानव इतिहास का सबसे महंगा चुनाव होने का वल्र्ड-रिकार्ड बनाने जा रहा है। लोकसभा की543 सीटों के लिए 70 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बिहार की 40 सीटों के लिए भी पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक रकम वैध-अवैध तरीकों से खर्च की गई। देश में 2014 के लोकसभा चुनाव पर 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए थे। जबकि दुनिया के सर्वाधिक संसाधन वाले अमेरिका में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव पर करीब 46 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे। सेंटर फार मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 के चुनाव में सभी दलों द्वारा रिकार्ड में सिर्फ तीन हजार करोड़ रुपये खर्च दिखाए गए। अत्यधिक खर्चीला और कालेधन के बल पर होने वाले चुनाव के कारण ही सांसद-विधायक प्रश्न पूछने की कीमत लेने और राजनीतिक दल टिकट बेचने लगे हैं। बेशक सियासत के कारोबार में तब्दील होने का उदाहरण बिहार भी है और इसका व्यापक त्रासद प्रतिबिम्ब 17वींलोकसभा चुनाव में बिहार में भी दिखा।
प्रदर्शन कमजोर हुआ तो क्षेत्रीय पार्टियों में तोड़-फोड़ सुनिश्चित
इस बार बिहार में एनडीए और महागठबंधन दोनों में से किसी का प्रदर्शन कमजोर हुआ तो क्षेत्रीय पार्टियों में तोड़-फोड़ सुनिश्चित है। कई दलों का अस्तित्व भी खत्म हो सकता है। मत-परिणाम के आने के बाद केेंद्र में सरकार बनाने के लिए जो नया समीकरण सामने आएगा, वह 2014 के मुकाबले एकदम अलग होगा। 2014 में भाजपा ने 30 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा कर 22 सीटें हासिल की थीं। जबकि नीतीश कुमार का जदयू सभी 40 सीटों पर लड़कर दो सीटें ही जीत सका था और रामविलास पासवान के लोसपा की 06 सीटों पर जीत हुई थीं। इस बार भाजपा ने बिहार में जदयू से आधा-आधा की साझादारी की और अपनी जीती हुईं पांच सीटों का त्याग भी किया।
लालू की अनुपस्थिति में राबड़ी ने संभाली कमान
महागठबंधन के मुख्य खिलाड़ी लालू यादव के राजद के 19, कांग्रेस के 09, रालोसपा के 05, हम के 02 और विकासशील इनसान पार्टी के 04 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद ने 04, रालोसपा ने 03 और कांग्रेस ने 02 सीटें जीती थीं। इस बार राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान की कमान उनकी पत्नी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने संभाली। लालू प्रसाद बहुचर्चित चारा घोटाला में झारखंड की जेल में सजा काट रहे हैं और खराब स्वास्थ्य के आधार पर रांची के अस्पताल के पेइंग वार्ड में भर्ती हैं। राजद ने अपने परीक्षित माई (यादव, मुसलमान) समीकरण के साथ अन्य जातियों को जोड़कर अर्थात पिछड़े बनाम अगड़े की रणनीति अपनाई और इसी लाइन पर चुनाव-प्रचार किया गया।
अंतिम दौर में संवेदनशील हमला
चुनाव के अंतिम दौर में राजद की ओर से लालू यादव के जेल में होने की स्थिति को हथियार बनाकर संवदेनशील तरीके से हमला किया गया। राबड़ी देवी ने 04 मई को बिहार की जनता के नाम जारी खुला पत्र में आरोप लगाया कि लालू प्रसाद को जेल में प्रताडि़त किया जा रहा है। जेल-मैनुअल और मानवाधिकार का उल्लंघन कर उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा। उनके बीमार पति को पूरे परहेज के साथ घर का बनाया हुआ खाना खाने नहीं दिया जा रहा। उनके स्वास्थ्य की नियमित जांच के लिए लेबोरेट्री में सैंपल नहीं भेजे जा रहे। लालू प्रसाद को तानाशाहों द्वारा इसीलिए प्रताडि़त किया जा रहा है कि उन्होंने वंचित, उपेक्षित और उत्पीडि़त वर्गों की लड़ाई लड़ी, समाज में समानता की लड़ाई लड़ी। तानाशाहों का मन जेल भेजकर भी नहीं भरा तो स्वास्थ्य के आधार पर जमानत का रास्ता बंद कर दिया। राबड़ी देवी ने यह सवाल भी खड़ा किया कि देश में बड़े-बड़े घोटाले हुए, मगर क्या किसी मुख्यमंत्री को फंसाया गया? क्या किसी घोटाले में अलग-अलग कांड बनाकर अलग-अलग सजा सुनाई गई और सारी सजाओं को एक साथ चलने के बजाय एक के बाद एक चलने का फरमान सुनाया गया?
…उन्हें तो जल्लाद कहना चाहिए
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी नंबर-एक कहे जाने के जवाब में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने अंबाला की आमसभा में प्रधानमंत्री को दुर्योधन बताया, तब बिहार में राबड़ी देवी ने तीखे स्वरों में कहा कि मोदी को प्रियंका गांधी ने दुर्योधन ही क्यों बताया, उन्हें तो जल्लाद कहना चाहिए। प्रियंका गांधी ने कहा था, वे कभी शहीदों के नाम पर वोट मांगते हैं तो कभी मेरे परिवार के शहीद सदस्यों का अपमान करते हैं, उन्होंने मेरे शहीद पिता का अपमान किया। इस पर राबड़ी देवी ने बिहार में कहा कि सब जल्लाद हैं, जो जज और पत्रकार को मरवा देते हैं, उठवा लेते हैं। बहरहाल, अब मतगणना-परिणाम की प्रतीक्षा है कि बिहार के चुनावी महाभारत में कौन विजेता अर्जुन बनता है और कौन पराजित दुर्योधन?

 

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