सोनमाटीडाटकाम में प्रसारित वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार मनोजकुमार झा के इस लेख (क्या गुजरात में चलेगा मोदी का जादू?) पर प्रभात (हिन्दी दैनिक), मेरठ के वरिष्ठ पत्रकार ललित दुबे ने व्हाट्सएप पर अपनी यह प्रतिक्रिया भेजी- बहुत सुंदर विवेचना…।
——————————————————————————
गुजरात के चुनाव में क्या होगा? यह तो चुनाव परिणाम के सामने आने के बाद ही कहा जा सकता है, पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि तीन साल पहले वाला मोदी की जादुई चमक धुमिल पड़ रही है। भाजपा गुजरात में हर तरह से होने वाले राजनीतिक नुकसान के लिए डैमेज कंट्रोल के उपायों में लगी है, ताकि हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी उसे सफलता मिल सके। जाहिर है, गुजरात में भाजपा को कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ेगा।
अगले महीने होने जा रहा गुजरात विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा के समान है। तमाम मीडिया चैनलों ने चुनाव पूर्व के अपने सर्वे में घोषणा कर दी है कि जीत भाजपा की होगी। प्रधानमंत्री लगातार वहां दौरे कर रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल के दौरे भी जारी हैं। गुजरात में राहुल की छवि सुधरती नजर आ रही है और कहा जा रहा है कि वे राजनीतिक रूप से परिपक्वता दिखा रहे हैं। दूसरी तरफ, अमित शाह जैसे भाजपा के रणनीतिकार को कई जगहों पर विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। गुजरात में भाजपा को लेकर मतदाताओं में निराशा की भावना भी दिखाई पड़ रही है, जो मोदी सरकार की तीन साल में लागू की गई नीतियों के कारण भी है।
गुजरात दो दशकों से भाजपा शासित है। नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में विकास के गुजरात मॉडल की ही बात करते हैं। सन् 14 में केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के पहले गुजरात में दंगे-फसाद, हत्याएं और एनकाउंटर की चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी और अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को वीजा जारी करने से मना कर दिया था। उस समय कोई सोच नहीं सकता था कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे। इनके मुख्य सहयोगी अमित शाह की छवि ऐसी थी कि उन्नहें तड़ीपार तक कर दिया गया था। लेकिन कांग्रेस से नाराज वोटरों ने देश भर में भाजपा का समर्थन किया और इस भाषण पर विश्वास किया कि कालेधन के बाहर आने से आम लोगों के खाते में 15 लाख रुपए आएंगे। मतदाताओं का यही सोचना था कि अब एक बार नरेंद्र मोदी को आजमा कर देखते हैं, जो भ्रष्टाचार विरोधी बात करते हैं। हालांकि भाजपा की जीत की बड़ी वजह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण था। माना यही जाता है कि आक्रामक प्रचार के लिए अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों ने खजाना खोल दिया था।
सत्ता हाथ में आने के बाद भाजपा ने जो भी योजनाएं चलाईं, वो कांग्रेस की ही योजनाएं थीं, महज नाम बदल दिया गया और कुछ समयकारक बदलाव किए गए। भाजपा नेतृत्व वाले शासन में लव जिहाद, गो रक्षा के नाम पर गुण्डागीरी भी सामने आईं। बड़े भाजपा नेताओं को दरकिनार कर दिया गया। अमित शाह जैसे व्यक्ति सारे फैसले करने लगे। विदेशों न काला धन आया और न ही देश में बड़े पैमाने पर बाहर निकला, न महंगाई घटी। ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार भले ही अभी तक सामने नहीं आया हो, पर नीचले स्तर आम जनता आज भी भ्रष्टाचार से कांग्रेस के कार्यकाल जैसी त्रस्त है। केेंद्र सरकार के फैसलों से देश के दो उद्योग अंबानी-अडानी घराने को सबसे अधित फायदा हुआ। खुलेआम सांप्रदायिक दुराव की बात करने वाले योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।
विकास उस सांप्रदायिक चेतना का हुआ, जो लंबे समय से भाजपा का आधार रहा है। गुजरात में नरेंद्र मोदी की राजनीति के कारण विपक्षी-विरोधी उभर नहींसके। नरेंद्र मोदी जब केंद्र में आए, तब गुजरात इनकी प्राथमिकता में नहीं रहा। देश के पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों के लिए विदेशों में भी सम्मानजनक भाव प्रकट नहींकिए गए। जबकि भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी समझते थे कि क्या बोलना चाहिए और देश का सम्मान किस बात में है? उन्होंने नेहरू और इंदिरा गांधी के लिए कटु शब्दों का इस्तेमाल नहींकिया। अब धीर-धीरे मोहभंग हो रहा है। महंगाई इतनी बढ़ी कि गरीब ही नहीं, मध्यम वर्ग भी पिस रहा है।
बिना विस्तार से सोचे-समझे नोटबंदी जैसा कदम उठाया गया, जिससे पहले से ही मंद चल रही अर्थव्यवस्था चरमरा उठी। नोटबंदी के फैसले के कारण महीनों तक लोगों को बैंकों की लाइनों में दिन-रात लगा रहना पड़ा और इस कारण सैकड़ों लोगों की जान चला गई। नोटबंदी लागू होने के चार महीने के भीतर 50 लाख नौकरियां चली गईं। छोटे उद्योग और व्यवसाय ठप हो गए। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को सरकार के फैसले के कारण जाना पड़ा। देश के प्रमुख अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को संगठित वैधानिक लूट बताया है। कई विश्लेषकों का यह मानना है कि नोटबंदी से हुए बड़े नुकसान का आकलन तो तब देश के सामने आएगा, जब यह सरकार नहींरहेगी। देश का मीडिया भले ही इस मामले में मोदी सरकार की आलोचना करने से बचता रहा, पर विदेशी मीडिया ने नोटबंदी की कड़ी आलोचना की और इसे अर्थव्यवस्था के लिए घातक कदम बताया। इसके बाद लागू की गई जीएसटी ने छोटे स्तर के व्यापारियों की कमर तोड़ दी है। नोटबंदी को बड़े उद्योगपतियों के पक्ष में भी होना माना जा रहा है। जीएसटी को भी बड़े कारोबारियों के पक्ष में माना जा रहा है, भले ही तर्क दिया जा रहा है कि इससे एक छोटे व्यापारी के लिए भी अपने कारोबार को देश में कहींभी विस्तार करने का अवसर मिलेगा।
भले ही नोटबंदी के बाद भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन को उत्तर प्रदेश के चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण जीत हासिल हो गई हो, मगर गुजरात के चुनाव में नोटबंदी और जीएसटी का असर पडऩा तय माना जा रहा है। गुजरात के पाटीदार भाजपा नेतृत्व से असंतुष्ट हैं। लोगों में कांग्रेस के प्रति फिर से रुझान बढ़ता दिख रहा है। भाजपा गुजरात में हर तरह से होने वाले राजनीतिक नुकसान के लिए डैमेज कंट्रोल के उपायों में लगी है, ताकि हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी उसे सफलता मिल सके। क्या होगा? यह तो चुनाव परिणाम के सामने आने के बाद ही कहा जा सकता है, पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि तीन साल पहले वाला मोदी की जादुई चमक धुमिल पड़ रही है। जाहिर है, गुजरात में भाजपा को कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ेगा।
– मनोज कुमार झा, वरिष्ठ लेखक-पत्रकार
पूर्व संपादक, वैचारिक कलमकार, डेहरी-आन-सोन (बिहार)
मोबाइल 7509664223