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लव-कुश समीकरण साधने के लिए उपेंद्र कुशवाहा को मिला मान
– कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटी)
बिहार में शहीद जगदेव प्रसाद के बाद कुशवाहा समाज का अग्रणी नेतृत्व चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, शकुनी चौधरी, नागमणि, सम्राट चौधरी, उपेन्द्र कुशवाहा आदि नेताओं ने किया। इनमें उपेन्द्र कुशवाहा ऐसे नेता हुए, जिन्होंने दल (रालोसपा) बनाने और टिकट बांटने की युक्ति निकाल कर कुशवाहा समाज की सफल राजनीति की। इसके बावजूद वह अपनी बिरादरी का बहुमत ट्रांसफर कराने में विफल रहे। राज्य में कोइरी-कुर्मी दोनों मतदाताओं के एक साथ होने का एक राजनीतिक महत्व है। इसीलिए नवम्बर 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद कमजोर पड़ गए नीतीश कुमार के लिए उपेन्द्र कुशवाहा जरूरत बन गए। जदयू ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 15 कुशवाहा नेताओं को टिकट दिया था। नीतीश कुमार और उपेन्द्र कुशवाहा के दलों के बीच नेता चयन के अंतरसंघर्ष में कुर्मी-कोइरी समाज के मतों के बंटने से 15 में 05 ही कुशवाहा प्रत्याशी चुनाव जीत सके। नीतीश कुमार ने 15 सालों (1990 से 2005) से बिहार की सत्ता की धुरी बने रहे लालू प्रसाद यादव के विरुद्ध अपनी राजनीति की नींव लव-कुश(कुर्मी-कोइरी) समीकरण के जरिये ही रखी थी। नीतीश कुमार और उपेन्द्र कुशवाहा के एक साथ होने से अब जदयू का सम्मिलित वोट बैंक लालू प्रसाद यादव की पार्टी (राजद) को मजबूती से टक्कर देने बन सकता है। उपेन्द्र कुशवाहा दो दशकों के सियासी तजुर्बे से समझ चुके थे कि धारा के विपरीत राजनीति घाटे का सौदा है।
उपेन्द्र कुशवाहा 2014 में भाजपा से समझौता कर केंद्र सरकार में मंत्री बने थे। जब नीतीश कुमार ने भाजपा से समझौता किया, तब उपेन्द्र कुशवाहा 2019 के लोकसभा चुनाव-पूर्व एनडीए से अलग हो गए। 2019 में लोकसभा चुनाव लालूप्रसाद यादव की पार्टी राजद और कांग्रेस के साथ लड़ा। कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने 2020 के विधान सभा चुनाव में अपने को मुख्यमंत्री चेहरा के रूप में प्रस्तुत किया। कोई कामयाबी नहीं मिली। तब पीछे लौटना पसंद किया और नीतीशकुमार केसाथ होने का अवसर ढूंढने लगे।
जब बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र में लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने बतौर नेता प्रतिपक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर एक तीखी टिप्पणी की, तब उपेन्द्र कुशवाहा ने ट्वीट कर तेजस्वी यादव की टिप्पणी को मर्यादा का उल्लंघन बताया। उपेन्द्र कुशवाहा के ट्वीट पर नीतीश कुमार ने फोन कर उन्हें धन्यवाद दिया। इसके बाद नीतीश कुमार, उपेन्द्र कुशवाहा के बीच शुष्क बने सियासी रिश्ते को तरल होने का रास्ता मिला और जदयू-रालोसपा का विलय हुआ। बिहार की सत्ता में जमने और लालू प्रसाद यादव के खिलाफ राजनीतिक जमीन तैयार करने में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार के राजनीतिक मददगार बने थे। इस एवज में उन्हें पहली बार विधायक बनने के बावजूद नीतीश कुमार ने 2004 में विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया। मगर महत्वाकांक्षी उपेन्द्र कुशवाहा जदयू छोड़ कर 2007 में एनसीपी में गए। फिर 2013 में अपनी पार्टी बनाई। 2013 में नीतीश कुमार एनडीए से हटे तो उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए का हिस्सा बन गए। उन्होंने 2014 की मोदीलहर में तीन संसदीय सीटों पर जीत हासिल की। 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ लड़कर 23 सीटों में सिर्फ दो ही सीट जीत सके। उपेन्द्र कुशवाहा ने अंतत: मान लिया कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ रहकर ही राजनीतिक लाभ मिल सकता है। बहरहाल, विलय के बाद उपेन्द्र कुशवाहा को एमएलसी और राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में जदयू में शीर्ष नेतृत्व जैसा ही मान मिला है।
संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया, डालमियानगर-6821305, जिला रोहतास (बिहार) फोन 9708778136