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शिक्षा नीति : सामाजिक खाई पाटने और तेज मानसिक विकास का वादा
-कृष्ण किसलय (समूह संपादक, सोनमाटी)
नई शिक्षा नीति में केंद्र सरकार ने अमीरी-गरीबी की सामाजिक खाई को पाटने और तेज मानसिक विकास का वादा करते हुए शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जैसाकि 34 साल पहले भी स्वीकृत की गई शिक्षा नीति में कहा गया था। बीते तीन दशकों में समाज का चोला, जीवन-व्यवहार और देश-दुनिया का ताना-बाना बदल चुका है। ऐसे में समय और परिस्थिति के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दरकार थी। समाज और शिक्षा विशेषज्ञ लंबे समय से कहते रहे हैं कि जीवन के आरंभिक दिनों में मातृभाषा में पढ़ाई ही बच्चों के सहज मानसिक विकास में सहायक हो सकती है। बेशक अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के चलन से समाज के दो हिस्सों के बच्चों के बीच खाई चौड़ी हुई और देश-समाज के कई स्तरों पर नुकसान हुआ। मातृभाषा में पढ़ाई का प्रचलन सामाजिक खाई को थोड़ी-बहुत जरूर पाटेगा। हालांकि अंग्रेजी भाषा में शिक्षा की अनिवार्यता भले थोपी गई बोझ लगती हो, मगर जैसे बहुभाषी वृहद भारतीय समाज का काम राष्ट्रभाषा हिंदी के ज्ञान के बिना काम नहींचल सकता, वैसे ही अंग्रेजी भाषा के ज्ञान के बिना दुनिया में काम नहींचल सकता। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान 21वीं सदी में बड़ी ताकत बन चुकी है। इस भाषा में कम्युनिकेशन स्किल की क्षमता की बदौलत ही भारतीयों ने सूचना तकनीक के क्षेत्र में दुनियाभर में अपना लोहा मनवाया है।
वैश्विक स्पर्धा में सहायक होने की आशा :
फिलहाल यह भरोसा किया जा सकता है कि नई शिक्षा नीति में तीन साल उम्र तक के विद्यार्थियों को विद्यालय-पूर्व अवधि में शामिल करने, सामान्य शिक्षा के साथ संगीत, हस्तशिल्प, खेल आदि को व्यावसायिक उपक्रम के रूप में स्कूली शिक्षा स्तर पर ही लागू करने, ग्रेजुएशन पाठ्यक्रम को नए तरीके से तीन-चार साल का बनाने, एमए को एक साल का करने जैसे कदम भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए दुनिया की शैक्षणिक क्रम-स्पर्धा से तालमेल बनाने में सहायक होंगे। नई शिक्षा नीति में केेंद्र सरकार की घोषणा है कि शिक्षा पर देश की जीडीपी की छह फीसदी रकम खर्च की जाएगी। अगर ऐसा होता है तो बेशक आने वाले वर्षों-दशकों में भारत का दुनिया में बेहतर प्रदर्शन देखने को मिलेगा, क्योंकि अब तक शिक्षा बजट पर करीब तीन फीसदी हिस्सा ही खर्च होता रहा है। बहरहाल, यह तो समय बताएगा कि नए बदलाव की उम्मीद जगाने और देश-समाज को विकास की तेज राह पर ले जाने की आशा बंधाने वाली नई शिक्षा नीति अमल की कसौटी पर कितना खरा उतरती है?
संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यूएरिया, पो. डालमियानगर-821305, डेहरी-आन-सोन, जिला रोहतास (बिहार)
फोन 9523154607, 9708778136
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राजीवरंजन अध्यक्ष और दयानिधि बने कार्यकारी अध्यक्ष
डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। राजीवरंजन कुमार सिन्हा और दयानिधि श्रीवास्तव अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के क्रमश: रोहतास जिला अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत किए गए हैं। महासभा के राष्ट्रीय संयोजक मनीष श्रीवास्तव द्वारा निर्गत मनोनयन पत्र में इन दोनों से कहा गया है कि वे संगठन की विचारधारा से कायस्थ समाज को जोड़ेंगे और इसकी नीतियों का प्रचार-प्रसार करेंगे। इस संगठन (अखिल भारतीय कायस्थ महासभा) का केेंद्रीय कार्यालय मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) में है और मनीष श्रीवास्तव इसका व्यापक सांगठनिक विस्तार देने के प्रयास में जुटे हुए हैं। रोहतास जिला के अध्यक्ष बनाए गए राजीवरंजन कुमार सिन्हा डेहरी-आन-सोन के प्रतिष्ठित सनबीम पब्लिक स्कूल के संचालक-प्रबंधक और दयानिधि श्रीवास्तव जिला के प्रथम शंकर लाज के स्वामी-संचालक हैं। दोनों ही विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और खेल संगठनों से जुड़े हुए हैं। इनका मनोनयन दो साल के लिए किया गया है। इनके मनोनयन पर विभिन्न संस्थाओं-संगठनों, चिकित्सकों, जनप्रतिनिधियों ने शुभकामनाएं देते हुए यह अपेक्षा प्रकट की है कि वे कायस्थ समाज के व्यापक हित की दिशा में कार्य करेंगे।
श्यामबिहारी राम चला रहे जनसंपर्क अभियान
चेनारी (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। चेनारी विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक श्यामबिहारी राम ने चेनारी के कई गांवों का दौरा कर जनता को यह बताया कि जदयू संगठन और जदयू नीत की बिहार सरकार जन-सरोकार वाली नहींरह गई है। इसलिए उन्होंने जदयू छोड़कर रालोसपा का दामन थामा है। उन्होंने कहा कि अगर महागठबंधन में चेनारी विधानसभा क्षेत्र रालोसपा के खाते में आया तो वह चुनाव लड़ेंगे। श्यामबिहारी राम 2010 में जदयू के टिकट पर चेनारी सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से चुने गए थे।