अनियंत्रित दोहन और अवैध खनन के कारण अब बालू भी लुप्तप्राय खनिज!
नई दिल्ली/डेहरी-आन-सोन (कृष्ण किसलय/निशांत राज)। बालू माफिया और इनके संगठित तस्करी तंत्र की सक्रियता भले ही बिहार में है, मगर बालू आधारित खरबों रुपये की इकोनामी व पुलिस-प्रशासन-माफिया के गठजोड़ से सालों से हो रहे अवैध खनन की हकीकत अमेरिका में एक विश्वविद्यालय शोध का विषय बन चुका है। दूसरी तरफ, आज देश (भारत) में वस्तुस्थिति यह है कि डेढ़ दर्जन राज्यों की नदियों में बालू लगभग खत्म हो जाने से यह लुप्तप्राय खनिज भी बनता जा रहा है।
अमेरिका के पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में ‘द बालू माफिया एन इथनोग्राफिक एक्सप्लोरेशन आफ द पालिटिकल इकोनामी आफ सैंड माइनिंग इन बिहार शीर्षक से शोध हो चुका है और इससे संबंधित सेमिनार में इस विषय पर विस्तृत चर्चा भी की जा चुकी है। इस विश्वविद्यालय में भारत में विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के अध्ययन के लिए 25 साल पहले 1992 में ही सेंटर फार द एडवांस स्टडी आफ इंडिया की स्थापना की गई है। इस अध्ययन केेंद्र के प्रोफेसर जेफ विट्स (एंथ्रोपालिजी विभाग) ने रीयल स्टेट के लिए आधार खनिज बालू के काराबोर तंत्र के अध्ययन के लिए सोन क्षेत्र का दौरा कर अपने हिसाब से जानकारी ली थी।
चार-पांच दशकों से देश में नदियों से बालू की मनमानी निकासी होती रही है। पिछले एक दशक में रीयल स्टेट कारोबार में जबरदस्त उछाल आने से निर्माण कार्यों में बालू की मांग में कई गुना वृद्धि हुई। इससे बालू का दोहन बेहद अनियंत्रित तरीके से हुआ। मनमाने दोहन का दुष्परिणाम यह हुआ है कि बालू के मामले में समृद्ध बिहार के भागलपुर, मुंगेर, लखीसराय आदि जिलों की नदियों में बालू लगभग खत्म हो चुका है और इनकी नदियों की तलहटी में कीचड़-गाद जमा हो चुका है।
बिहार में इसके 32 जिलों रोहतास, औरंगाबाद, भोजपुर, पटना, गया, कैमूर, बक्सर, नालंदा, जहानाबाद, अरवल, नवादा, सीवान, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, बेतिया, मोतिहारी, मधुबनी, किशनगंज, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, मधुबनी, किशनगंज, भागलपुर, बांका, मुंगेर, जमुई, लखीसराय, शेखपुरा और सारण स्थित नदियों से बालू खनन किया जाता है। बालू उत्खनन से राज्य सरकार को इससे प्राप्त होने वाले राजस्व में एक दशक में छह-सात गुना वृद्धि भी हुई है। जबकि 2005-06 में नदियों से बालू निकासी से राज्य सरकार को 35 करोड़ रुपये का ही राजस्व मिलता था। सोन नदी का बालू देश भर में सबसे बढिय़ा माना जाता है। इसकी सबसे अधिक मांग उत्तर प्रदेश में है। बिहार सरकार को बालू के कुल राजस्व का आधे से अधिक सोन नदी से ही मिलता है।
पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के शोध में यह बताया गया है कि बालू माफिया व बालू कारोबार के संगठित तंत्र नदियों के घाटों से बालू निकासी का आदेश प्राप्त करने के लिए राजस्व की ऊंची बोली लगाते ही हैं, मगर घाटों पर एकाधिकार के लिए बाहुबल का भी इस्तेमाल करते हैं। बालू घाटों को हथियाने के लिए सरकारी महकमे के अधिकारियों-कर्मचारियों को करोड़ों रुपये के घूस दिए जाते हैं और खूनी खेल भी होता है।