नहींकाम आई ड्रैगन की फूंफकार, 1962 का डर दिखाया मगर 1967 उसे याद नहीं
प्रतिबिंब————–
भारत और चीन डोकलाम विवाद को भूलकर अब एक साथ काम कर अपने संबंध को नए आयाम पर पहुंचाने की दिशा में सक्रिय हो गए हैं। जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग 5 सितंबर को चीन में नौवें ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर मिले थे, तब दोनों के बीच रिश्ते को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर बात हुई थी। दोनों नेताओं की इस बात पर सहमति हुई थी कि दोनों देशों को अपने सुरक्षाबलों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है, ताकि डोकलाम जैसी घटना भविष्य में न हो।
डोकलाम मुद्दा दोनों देशों के बीच दो महीने से अधिक समय तक तनाव का कारण बना रहा था। 16 जून को भारतीय सीमा के निकट डोकलाम (भूटान देश) में भारतीय और चीनी सेना के जवान आमने-सामने हो गए थे। चीन द्वारा बनाई जा रही सड़क को यथास्थिति के खिलाफ मानकर भारत ने सिक्किम सेक्टर के डोकलाम क्षेत्र में अपने जवान तैनात कर दिए थे। 28 अगस्त को भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से यह कहा गया कि दोनों देशों ने आपसी विवाद सुलझा लिया है। बाद में दोनों ने अपने-अपने सैनिक हटा लिए।
इस बार ड्रैगन (चीन) की फूंफकार (धमकी) काम नहींआई। उसने भारत को 1962 के युद्ध की हार का डर दिखाया, मगर उसने 1967 को याद नहींकिया। 1962 के पांच साल बाद ही 1967 में 50 साल पुरानी भिड़ंत की कहानी भारतीय सैनिकों की जांबाजी की मिसाल है। जब भारत ने चीन को अच्छा सबक सिखाया था। अब 2017 का भारत तो दुनिया का एक बेहतर आर्थिक, सैन्य और वैज्ञानिक ताकत है।
11 सितंबर 1967 को नाथू-ला और सेबु-ला दर्रों के बीच भारतीय सीमा में तारबाड़ लगाने का काम शुरू हुआ तो चीनी सैनिकों ने मशीनगनों से गोलियां दागनी शुरू की, जिससे 70 सैनिक मारे गए। इसके बाद तो भारतीय सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब दिया और चीन के ही अनुसार उसके चार सौ से अधिक सैनिक मारे गए। भारतीय सैनिकों ने लगातार तीन दिनों तक फायरिंग कर चीन की मशीनगन यूनिट को पूरी तरह तबाह कर दिया। 15 सितंबर 1967 को दोनों देशों के सैनिकों के शवों की अदला-बदली हुई थी।
हालांकि इसके बावजूद चीनी सेना ने फिर दुस्साहस किया और एक पखवारे बाद ही 01 अक्टूबर 1967 को नाथू-ला दर्रा व चो-ला दर्रा के बीच तारबाड़ लगाने के दौरान संघर्ष विराम तोड़कर फायरिंग की तो भारतीय सैनिकों ने फिर करारा जवाब दिया। भारतीय सैनिकों के प्रदर्शन में पांच साल के बाद ही यह फर्क आ चुका था। आधी सदी बाद भारतीय सेना अब परमाणु आयुध और अंतरद्वीपीय मारक क्षमता वाली बैलेस्किटक मिसाइल से लैस है। भारतीय सेना की गिनती आज दुनिया की उत्कृष्ट सेनाओं में होती है।
भारतीय सेना के तीनों अंगों (जल, थल व नभ) ने अपनी-अपनी क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया है। भारत की तैयारी विश्वस्तरीय है। भारतीय नौ (जल) सेना विश्व की पेशेवर फौज है, जो युद्ध में किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है। भारत की तैयारी खुद को मजबूत बनाने के लिए है, दूसरों को डराने या हमला करने के लिए नहीं। मगर चीन को भारत की सैन्य तैयारी को देखकर यही लगता है कि उसके कारण हिंद महासागर पर दबदबा कायम करने की उसकी रणनीति कारगर नहींहो सकती। इसीलिए चीन भारत को घेरने वाली रणनीति (स्ट्रिंग आफ पर्ल) पर चल रहा है, जिसके तहत वह पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव में बंदरगाह विकसित कर रहा है।
हालांकि भौगोलिक स्थिति के कारण भारत को रणनीतिक फायदा मिलता है। यही वजह है कि हिंद महासागर में चीन के भारत के लिए खतरा बनने में अभी दशकों का समय लगने का अनुमान लगाया जाता है। खुले समुद्र पर किसी एक देश का एकाधिकार नहींहो सकता। इसलिए भारत को अपनी समुद्री सीमा की रक्षा करने का पूरा हक है और इसीलिए इस मकसद में अमेरिका व जापान भारत के साझीदार बन गए हैं। ‘आफ्टर मिडनाइटÓ जर्नल में इंडियन न्यूक्लियर फोर्सेज शीर्षक से प्रकाशित एक लेख मेें यह कहा गया है कि भारत की रक्षा रणनीति अब पाकिस्तान केेंद्रित से बदलकर चीन केेंद्रित हो गई है।
इस लेख के लेखकों अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञों एचएम क्रिसटेंशन और राबर्ट एस नारिस के मुताबिक, भारत ऐसी मिसाइल विकसित कर रहा है, जिससे वह अपने दक्षिणी हिस्से से चीन मेें कहीं भी परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम हो जाएगा। भारत परमाणु हथियार ले जाने के लिए चार विकल्पों के लिए काम कर रहा है, जिनमें जमीन या समुद्र से दागी जा सकने वाली लंबी दूरी की मिसाइल भी शामिल है। भारत के पास प्लूटोनियम का जितना भंडार मौजूद है, उससे डेढ़-दो सौ की संख्या में परमाणु बम तैयार किया जा सकता है। इस लेख में यह बताया गया है कि भारत अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का विकास कर रहा है, जो पांच हजार किलोमीटर तक परमाणु हथियार को पहुंचा सकता है। इस बैलेस्टिक मिसाइल का विकास हो जाने के बाद इसे भारतीय सेना में शामिल किया जा सकता है।
दरअसल, भारत के लिए पड़ोसी देशों में पाकिस्तान ही भारत केेंद्रित आतंकवादी गतिविधियों के कारण खतरा बना रहा है। पाकिस्तान से सीधा युद्ध होने की स्थिति में भारत के पास पर्याप्त सैन्य साजोसमान व हथियार है, मगर चीन से युद्ध होने की स्थिति में युद्ध सामग्री कम पड़ सकती है। भारत से युद्ध होने पर पाकिस्तान अधिक दिनों तक टिका नहींरह सकता है। जबकि चीन से युद्ध लंबा खिंच सकता है, क्योंकि चीन की सामरिक क्षमता भारत के मुकाबले अधिक है। इसीलिए भारत की रक्षा तैयारी का अब चीन केेंद्रित होना समय और परिस्थिति की अपरिहार्य मांग हो गई है। चीन की ओर से खतरे के मद्देनजर अब भारत को अधिक सैन्य सामग्री की दरकार है और उसे ज्यादा गोला-बारूद, ज्यादा फौजी वाहन, ज्यादा हथियार का भंडार रखने की जरूरत हो गई है।
वैसे दुनिया में अमूमन किसी भी देश के पास इतनी ही युद्ध सामग्री का भंडार रिजर्व होता है कि वह हफ्ते-दो हफ्ते या एक महीने तक बिना किसी बाधा के युद्ध के समय इनका फौरन इस्तेमाल कर सके। भारत के मामले में सैन्य विशेषज्ञों का यह मानना है कि लंबे समय वाले युद्ध के मद्देनजर भारत के थल, जल और वायु तीनों ही सेनाओं के पास सैन्य संसाधन कम हैं। भारत के सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की ताजा रिपोर्ट भी यह बताती है कि सेना के पास 10 दिनों तक की लड़ाई के लिए ही गोला-बारूद का भंडार मौजूद है, जबकि अचानक भीषण युद्ध होने की स्थिति में इतना सैन्य भंडार होना चाहिए कि सीमा पर बंदूकेें और तोपें कम-से-कम 40 दिनों तक गरजती रहें।
हालांकि तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली की ओर से अगस्त में लोकसभा मेें यह बताया और देश को आश्वस्त किया जा चुका है कि दुनिया के आधुनिक मानक के हिसाब से देश के आयुध भंडार कम नहीं है। भले ही देश के मौजूद आयुध भंडार को कम नहीं कहा जा सकता है, पर अंतरराष्ट्रीय मानक के हिसाब से सैन्य अधिकारियों की कमी जरूर है। यह बात अप्रैल में ही केेंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे की ओर से स्वीकार भी किया जा चुका है।
भारतीय सेना में अंतरराष्ट्रीय मानक के हिसाब से नौ हजार से अधिक सैन्य अधिकारी कम हैं। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक वायु सेना के पास पर्याप्त अधिकारी है, पर थल सेना को 7986 और नौसेना को 1256 अधिकारियों की जरूरत है। जूनियर कमीशंड आफिसर स्तर के थल सेना में 25472, वायु सेना में 13614 और वायु सेना में भी 12785 अधिकारी कम हैं। सैन्य विशेषज्ञ यह मानते हैं कि थल सेना को 300 हेलीकाप्टर, तीन हजार कैलिबर गन, 30 हजार थर्ड जेनरेशन नाइटविजन डिवाइस, 60 हजार से अधिक राइफल-कार्बाइन 4 लाख बैलेस्टिक हेलमेट व 2 लाख बुलेटप्रूफ जैकेट, वायु सेना को 42 लड़ाकू स्वाड्रन (हरेक में 18 लड़ाकू एयरक्राफ्ट), 300 लड़ाकू जेट विमान, 200 हेलीकाप्टर, 56 ट्रांसपोर्टर प्लेन व दो अर्ली वार्निंग एयरक्राफ्ट और नौसेना को समुद्र के भीतर लंबी दूरी तक जा सकने वाली कम-से-कम छह पनडुब्बी और विभिन्न जरूरतों के लिए 200 से अधिक हेलीकाप्टरों की जरूरत है।
– कृष्ण किसलय
समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह