दाउदनगर (औरंगाबाद)-उपेन्द्र कश्यप, विशेष संवाददाता। शहर में सन्नाटा है, गम है, गुस्सा है। सारे शहर में शोक की लहर है। हर मुहल्ला आहत, मर्माहत है और हर परिवार दुखी। पांच बच्चों की मौत सोन नहर में डूबने से हो गई। यह महज एक दुर्घटना नहींहै। इसका जिम्मेदार राज्य-व्यवस्था है, उसके संबंधित विभाग की लापरवाह, अराजक कार्यशैली है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहींहै कि यह सामूहिक मौत व्यवस्थाजनित भ्रष्टाचार के कारण हुई। नहर में बह रहे पानी से बच्चों की मौत नहीं हुई है बल्कि उसमें बनाए गए कुओं में फंसने-डूबने से हुई।
जेसीबी मशीन से नहर खोदकर निकाली गई थी मिट्टी
भ्रष्ट व्यवस्था के कारण नहर के तल को जेसीबी मशीन से खोदकर कर सड़क बनाने के लिए मिट्टी निकाली गई थी, जिससे उसमें कुआं बन गया। सड़क बनाने और पुल निर्माण के लिए नहर में कई जगह गड्ढे खोद कर मिट्टी निकाले गए थे, मगर न गड्ढे भरे गए और न ही वहां इस आशय की सूचना देने वाला बोर्ड टांगा गया। नहर के भीतर बने गड्ढे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि नहर से मिट्टी खोदने के लिए व्यवस्थागत कानून को कई बार तोड़ा गया और कई जगह तोड़ा गया।
मौत का कुआं बना दिए गए नहर ने पांच की बली ले ली। नहर में डूबने से जीतू कुमार, निशांत कुमार उर्फ हैप्पी, ज्ञान सागर, रौशन कुमार और सौरभ कुमार की मौत हो गई। सभी मृतक किशोर और तरुण उम्म के थे और शहर के दो वार्डों 13-14 के निवासी थे। ग्रामीणों ने सभी बच्चों को नहर से बाहर निकाला और प्रसाशन के सहयोग से अस्पतालों में भेजे गए, मगर चिकित्सों ने सबको मृत घोषित किया। औरंगाबाद से चिकित्सकों की टीम बुलाकर मृतकों की पोस्टमार्टम दाउदनगर में ही की गई।
दोषियों के खिलाफ हो ठोस कार्रवाई
यह तो तय है कि नहर में गड्ढे नहीं होते तो नहर के कम पानी में जान नहीं जाती। इसके लिए जिम्मेदार लोगों को चिह्निïत किया जाना चाहिए कि नहर के बेसिन में गड़्ढे क्यों, कैसे, कब, किसने और किस कारण से बनाए? क्या यह सामूहिक हत्याकांड नहींहै? दोषियों के खिलाफ ठोस कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। तकाजा यही है कि व्यवस्था जिम्मेदारी ले, जांच कराए और सजा दे। अन्यथा, आगे भी मौत की बली चढऩे से, घर-परिवार को उजडऩे से रोका नहींजा सकता। इस घटना पर भविष्य के मद्देनजर सामाजिक चर्चा भी होनी चाहिए। यह वक्त है, अग्निपरीक्षा है सामाजिक कार्यकर्ताओं की संघर्षशील सक्रियता की, ताकि उच्च न्यायालय में जनहित की दृष्टि से पीआईएल दाखिल हो। क्या इसमें न्यायालय द्वारा स्वत:संज्ञान की गुंजाइश है?