राजनीति में शुचिता आखिर कब?

दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार-कवि मनोजकुमार झा की फेसबुक में सोनमाटीडाटकाम की वाल पर सोनमाटी के नए अंक पर निम्नटंकित प्रतिक्रिया। उन्हें धन्यवाद। – संपादक

बहुत ही उम्दा सामग्री-संयोजन। आँचलिक पत्रकारिता में मील का पत्थर। सोनमाटी के पूर्व के अंक संग्रहणीय हैं। आपको प्रणाम।
————————————————

 

फेसबुक वाल पर एक और प्रतिक्रिया

  वास्तव में किसलय जी आपको साधुवाद। आपने सोनमाटी के सभी आयामों को बखूबी मांजा है।

               – मीरा शलभ, वरिष्ठ कवियत्री, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

 

————————————————————————————————————

 

 

 

भारत के सोन नदी अंचल (बिहार) के अग्रणी लघु मीडिया समूह का समाचार-विचार पत्र
सोनमाटी (प्रिंट एडीशन) का नया अंक बाजार में : इस अंक का संपादकीय

 

राजनीति में शुचिता आखिर कब?
आज भी राजनीति का रूप एक हद तक क्रूर अमानवीय राजतंत्र जैसा बना हुआ है। हजारों साल पहले भारत के कबिलाई समाज में लूटमार कर लाई गई संपत्ति के बंटवारे को यज्ञ-व्यवस्था के जरिये वैध किया जाता था। बहुत बाद में राजतंत्र में धन संग्रह के लिए राजाओं-दरबारियों के मनमाने, अन्यायपूर्ण, अमानवीय, अपराधजन्य फैसलों को भी संगठित व्यवस्था का रूप दिया जाता रहा। देश में लोकतंत्र और इसकी विभिन्न व्यवस्थाओं को स्थापित हुए 70 वर्ष से अधिक वक्त गुजरने के बावजूद क्या आज भी वैसा ही नहीं है?


अपराध के आंकड़े के अनुसार, देश के 1765 सांसदों-विधायकों पर पुलिस थानों में गंभीर धाराओं वाले 3045 कांड दर्ज हैं। इससे जाहिर है कि देश के सभी सांसदों-विधायकों की संख्या (4896) के हिसाब से विधान बनाने वाले इन निर्वाचित प्रतिनिधियों में एक-तिहाई दागी हैं। सबसे अधिक माननीय उत्तर प्रदेश में और इसके बाद तमिलनाडु व बिहार में हैं। प्रशासनिक सुधार आयोग, विधि आयोग, निर्वाचन आयोग, नेशनल कमीशन टु रिव्यू द वर्किंग आफ द कंस्टीट्यूशन आदि वैधानिक संस्थाएं समय-समय पर अपना-अपना महत्वपूर्ण सुझाव देती रही हैं, मगर देश भर के माननीय अर्थात इनको नियंत्रित करने वाले राजनीतिक दल सुझावों को, शुचिता की बात को, स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। जबकि राजनीति में शुचिता के मुद्दे पर दो दशक पहले संसद में छह दिनों तक बहस हुई थी और उस बहस के सार 2 सितम्बर 1997 को लगभग सभी समाचारपत्रों में छपे थे।
अब एक बार फिर विधायकों-सांसदों पर दर्ज आपराधिक कांडों पर त्वरित फैसले के लिए देशभर में फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की बात सुप्रीम कोर्ट में कही गई है। केन्द्र सरकार ने कोर्ट में जो शपथपत्र दिया है, क्या इस पर वास्तव में ईमानदारी से अमल होगा? क्या वस्तुत: ऐसी इच्छाशक्ति राजनीतिक दलों में है? या, यह भी जनतांत्रिक दबाव को टालने व फाइलों के गर्द-गुब्बार में दबाने की ही कवायद बनेगी? 2010 में तो बिहार में बाजाप्ता कानून बनाकर 6 माह में फैसले देने वाले विशेष कोर्ट भी बनाए गए, मगर कितना सार्थक परिणाम सामने आया?

  • कृष्ण किसलय

  • Related Posts

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    पटना जीपीओ और कॉपर टिकट पर बिहार के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार द्वारा माय स्टाम्प का विमोचन पटना- कार्यालय प्रतिनिधि। बिहार के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल अनिल कुमार ने गुरुवार…

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    पटना /सोनपुर – कार्यालय प्रतिनिधि। केंद्रीय संचार ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, पटना द्वारा भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न महत्वाकांक्षी  योजनाओं के माध्यम से देश को…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

    You Missed

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    पटना जीपीओ की स्थापना के 107 वर्ष पूर्ण होने पर जारी हुआ स्टाम्प

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    सोनपुर मेला में एक महीने तक चलने वाले “फोटो प्रदर्शनी सह जागरुकता अभियान” का हुआ शुभारंभ

    कार्यालय और सामाजिक जीवन में तालमेल जरूरी : महालेखाकार

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या

    व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में हुई थी आभूषण कारोबारी सूरज की हत्या

    25-26 नवंबर को आयोजित होगा बिहार संवाद कार्यक्रम

    25-26 नवंबर को आयोजित होगा बिहार संवाद कार्यक्रम

    विधान परिषद के सभागार में ‘सुनो गंडक’ का हुआ लोकार्पण

    विधान परिषद के सभागार में ‘सुनो गंडक’ का हुआ लोकार्पण