बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार में भाजपा के 09 और जदयू के 08 विधायकों के शामिल होने के बाद अब राज्य में दो मुस्लिम चेहरों के साथ मुख्यमंत्री सहित 31 मंत्री हो गए। भाजपा ने शहनवाज हुसैन को विधान पार्षद बना मंत्रिमंडल में शामिल कर राज्य में अपना मुस्लिम चेहरा बनाया है तो जदूय ने भी बसपा के एकमात्र विधायक मोहम्मद जमा खान को अपनी पार्टी में शामिल कर मंत्री बनाया है। भाजपा और जदयू का यह फैसला राज्य के प्रमुख प्रतिपक्षी दल लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के ‘माईÓ समीकरण में भविष्य की सेंधमारी के मद्देनजर है तो मुस्लिम राजनीति करने वाले सांसद असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल (एआईएमआईएम) के वर्चस्व को थामने की कवायद भी है। मगर शहनवाज हुसैन को दिल्ली की राजनीति से बिहार में लाने के दो मकसद और भी माने जा रहे हैं। एक तरफ भाजपा शहनवाज हुसैन को 27 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव में एक स्टार प्रचारक के रूप में पेश करने जा रही है तो दूसरी तरफ इसका यह भी संकेत है कि शहनवाज हुसैन 2025 के बिहार चुनाव का मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकते हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव सभा के आखिरी दिन घोषणा की थी कि यह उनका अंतिम चुनाव है।
मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल हुए मुस्लिम चेहरे :
17वीं बिहार विधानसभा के लिए चुनाव परिणाम आने के बाद 16 नवम्बर को राज्य में एनडीए की नई नीतीश सरकार का गठन हुआ तो मुख्यमंत्री समेत 14 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली, मगर उसमें कोई मुस्लिम चेहरा नहींथा। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के वोट बैंक का मुख्य आधार माई (मुस्लिम-यादव) समीकरण रहा है, जो बीते 30 सालों से बिहार का सबसे सिद्ध समीकरण बना हुआ है। लालू प्रसाद यादव के इस समीकरण के विरुद्ध नीतीश कुमार ने लव-कुश समीकरण और अति पिछड़ा वर्ग को साधकर अपनी सियासत की सफलता का वोट बैंक खड़ा किया। फिर भी लालू प्रसाद यादव का सियासी कद छोटा नहींपड़ा। इसका उदाहरण नवम्बर 2020 का बिहार चुनाव परिणाम है। बिहार में भाजपा के अगड़े मतदाताओं का और जदयू के पिछड़े मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद लालू प्रसाद यादव के दल राजद का प्रदर्शन बेहतर रहा। 75 विधायकों वाला राजद ही 17वीं विधानसभा में सबसे बड़ा दल बनकर उभरा। जबकि चारा घोटाला में लालू प्रसाद यादव के सजा मिलने और जेल में रहने के कारण राजद ने लालू विहीन स्थिति में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद का प्रदर्शन बहुत खराब होने की वजह से माना जा रहा था कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम राजद के पक्ष में नहींहोगा। परिणाम आने के बाद लालू प्रसाद यादव के पुत्र और राजद के मुख्यमंत्री प्रत्याशी तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार का जनादेश राजद के पक्ष में है।
अफवाहों और कयासों पर लगा विराम :
बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम 10 नवम्बर को आने के बाद जदयू की कम विधायक संख्या के कारण नीतीश कुमार बड़े भाई से छोटे भाई की भूमिका में पहुंच गए। इस बार एनडीए को 125 सीटें मिलीं, जिनमें सबसे ज्यादा भाजपा को 74 सीटें, जदयू को 43 सीटें, हम को 04 सीटें और वीआईपी को 04 सीटें मिलीं। पिछली विधानसभा में जदयू विधायकों की संख्या 71 और भाजपा विधायकों की संख्या 54 थी। बसपा विधायक मोहम्मद जमा खान के 23 जनवरी को जदयू में शामिल होने से जदूय विधायकों की संख्या 44 हो गई। इस जटिल संख्या गणित के मद्देनजर यह चर्चा लगातार गर्म रही कि भाजपा कभी भी जदयू से नाता तोड़ सकती है, क्योंकि कम विधायक होने के बावजूद जदयू के नेता नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाए गए हैं और मंत्रिमंडल के विस्तार में उनका ही दबदबा है। बिहार में ठहरे हुए मंत्रिमंडल का अंतत: विस्तार हुआ और 85 दिनों बाद राजभवन में राज्यपाल फागू चौहान ने 17 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई। इससे सत्ता के गलियारों में जदयू, कांग्रेस, राजद के टूटने-जुटने के जारी अफवाहों-कयासों पर विराम लग चुका है। अभी भी मंत्रिमंडल में छह और मंत्रियों की गुंजाइश है। मगर यह भविष्य के गर्भ में है कि तीसरा विस्तार जल्द होगा या बिलंबित मंथन के बाद?
भाजपा की रणनीति में है भविष्य की तैयारी :
फिलहाल तो बिहार में एनडीए की सरकार बना लेने के बाद भाजपा की अब पहली रणनीति बिहार के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के चुनाव को लेकर है तो उसकी तैयारी नीतीश कुमार के चेहरा से विहीन अगले विधानसभा के मुख्यमंत्री चेहरा के लिए भी है। असदुउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने पश्चिम बंगाल से सटे बिहार के सीमांत जिलों में पहली बार विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतकर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। 1986 से ही भाजपा से जुड़े और बिहार से सांसद बनकर केेंद्र में मंत्री के रूप में कार्य कर चुके शहनवाज हुसैन को आगे कर भाजपा बिहार में इस अंतरसंघर्ष से अपने को बचाए रख सकती है कि मुख्यमंत्री का चेहरा अगड़ा हो या पिछड़ा? और फिर, बिहार में अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा का सामना लालू प्रसाद यादव के राजद और उनके जनाधार वाले वोट बैंक से ही होना है।
लालू यादव की रिहाई के लिए पोस्टकार्ड अभियान :
बिहार में चुनाव परिणाम के बाद महीनों से जारी सियासी सरगर्मी के बीच पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव ने अपने बीमार पिता राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की रिहाई की मांग को लेकर राष्ट्रपति को संबोधित पोस्टकार्ड अभियान राज्यभर में चलाया है। तेजप्रताप यादव लालू प्रसाद के बड़े बेटा हैं। भाजपा ने तेजप्रताप यादव के पोस्टकार्ड अभियान पर निशाना साधते हुए कहा है कि यह परिवारवाद की लड़ाई और पैरोकारी है। भाजपा के राज्यसभा सांसद और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट किया है कि लालू प्रसाद को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद न्यायालय ने सजा दी है, राजद के राजकुमार राष्ट्रपति को दो लाख पोस्टकार्ड भेजने की बात कर अविश्वास पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव चारा घोटोला से संबंधित कई कांडों में झारखंड के रांची जेल में सजा काट रहे हैं। कई बीमारियों से पीडि़त होने की वजह से उनका दिल्ली एम्स में इलाज चल रहा है। जबकि तेजप्रताप यादव ने कहा है कि पोस्टकार्ड अभियान पूरे बिहार में चलाया जा रहा है, राष्ट्रपति हमारी आवाज सुनेंगे।
- कृष्ण किसलय, पटना
देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित पाक्षिक चाणक्य मंत्र में बिहार (पटना) से कृष्ण किसलय की इस पखवारा की रिपोर्ट।
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