सुपर-30 के हीरो ने कहा, समाज के जरूरतमंदों की मदद हो तो बदल जाए बिहार

0- उपेंद्र कश्यप -0

बिहार के औरंगाबाद जिले के दाउदनगर स्थित शिक्षण संस्थान विजन की ओर से आयोजित दसवें वार्षिकोत्सव समारोह में सुपर-30 (पटना) के विश्व चर्चित प्राध्यापक आनंद कुमार ने प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए समाज के हर तबके के संपन्न लोगों से जरूरतमंदों की आगे बढ़कर मदद का आह्वान किया और कहा कि आदमी स्वयं अपना निर्माता होता है, मगर आदमी के निर्माण में परिस्थिति और समाज का भी अमूर्त योगदान होता है। मंच से आयोजक (विजन के निदेशक) अरविंद कुमार धीरज ने पूछे गए सवालों को रखा, जिनके जवाब आनंद कुमार ने दिए। उन्होंने समारोह को अलग से संबोधित नहीं किया, पर यह कहा कि प्रश्नों के उत्तर में विचार और दिशा की स्पष्ट झलक मिल जाएगी। आरंभ में भगवानप्रसाद शिवनाथप्रसाद बीएड कालेज के सचिव डा. प्रकाश चंद्रा ने अतिथियों का स्वागत किया और आनंद कुमार की शैक्षणिक और सामाजिक योगदान को भी रेखांकित किया।

बच्चों की प्रतिभा को निखारने, प्रेरित करने और मार्गदर्शन की जरूरत
जदयू के वरिष्ठ नेता प्रमोद चंद्रवंशी ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि बच्चों की प्रतिभा को निखारने, प्रेरित करने और मार्गदर्शन की जरूरत है। परिस्थिति और समय के संयोग से बच्चे मील का पत्थर बन जाएंगे। आज जिस समाज, जिस समुदाय के पास तकनीकी ज्ञान नहीं है, वह अज्ञानी माना जाएगा। प्रमोद चंद्रवंशी ने आनंद कुमार के बारे में बताते हुए कहा कि इन्हें भारतरत्न जैसा सम्मान मिलना चाहिए। आनन्द कुमार की पहचान वैश्विक है। इनका योगदान समाज के लिए है। इन्होंने बिहार की प्रतिष्ठा स्थापित की है। सुपर-30 की एक दूसरी धारा के संचालक  उबैदुल रहमान ने कहा कि समाज में एक मानसिकता यह भी है कि गरीब नहीं पढ़े। इस विकृत सोच का मनोविज्ञान अलग है। मगर आनन्द कुमार जैसे लोग भी समाज में ही होते हैं। इन्होंने आनन्द कुमार के बारे में बताया कि इनके संघर्ष-योगदान पर आधारित फिल्म के जुलाई में रिलीज होने की संभावना है। समय ने करवट ले लिया है, अब राजा (लीडर) वह होगा जो इसका हकदार होगा। सऊदी अरब में बिहार फाउंडेशन के अधिकारी रहे उबैदुल रहमान 2010 में बिहार दिवस पर सुपर-30 के समारोह में मुख्य अतिथि बनकर आए थे और सुपर-30 से प्रभावित होकर बिहार में रहमान-30 शुरू किया, जिसमें विद्यार्थियों का चुनाव वह (उबैदुल रहमान) करते हैं और पढ़ाने का काम आनंद कुमार। मुस्लिम समाज के लिए भी आनन्द कुमार का काम काबिलेतारीफ है।

सिकंदर आलम विजन क्विज विजेता

ओबरा के द इंडियन कोचिंग सेंटर के सिकंदर आलम को विजन द्वारा आयोजित क्विज का विजेता चुना गया, जिसे संस्थान की ओर से 10 हजार रुपये का चेक आनंद कुमार ने प्रदान किया। सिकंदर के पिता फिरोज आलम आटो मेकेनिक का काम करते हैं और मां वहीदा खातून गृहिणी हैं। प्रति दिन 5-6 घंटे की पढ़ाई करने वाले सिकंदर आलम का सपना आईएएस बनना है। प्रश्न-उत्तर कार्यक्रम में कंप्यूटर पर सुरेंद्र कुमार मेहता, मेराज अख्तर, अभिमन्यु भारती ने समन्वय किया और मंच-समारोह की व्यवस्था को राहुल कुमार, उदय कुमार, अमन कुमार, संजय किशोर, शंकर, वंदना, अमिता, माधुरी, सतेंद्र, विजय, विनय गिरी की टीम ने संभाला। इस अवसर पर गोविन्द के निर्देशन में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें कला प्रभा संगम के कलाकारों ने अपनी नृत्य-गायन-वादन की क्षमता का प्रदर्शन किया।

पूछे गए सवालों का आनंद कुमार ने दिए जवाब

आनंद कुमार से पूछा गया एक प्रश्न यह था कि आप गरीबी में जाति ढूंढते हैं या जाति में गरीबी? उनका जवाब था कि हर समाज में गरीब होते हैं। हर जरूरतमंद को हम मदद करें तो बिहार बदल जाएगा। इन्होंने कहा, बगैर जाति का मतदान करें, चुनाव और चयन करें। देश बदल जायेगा। उनसे पूछा गया था कि सुपर-30 के संचालन के लिए विद्यार्थियों के चयन का आधार क्षमता होती है, जाति होती है या मानवता? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, सुपर-30 के लिए कोई बंधन नहीं है, हर जाति, धर्म के विद्यार्थी चुने जाते हैं। उन्होंने दाउदनगर कालेज के लेक्चरर ज्योतिष कुमार का उदाहरण दिया कि वह गरीब परिवार से थे तो जाहिर है कि मानवता का ध्यान पहले रखा गया। सुपर-30 की लोकप्रियता से चिढ़े लोग चश्म पहनकर भ्रम फैलाते हैं।
प्रश्न : विद्यार्थी अपेक्षा-अनुकूल सफलता प्राप्त नहीं करने के कारण फ्रस्टेटेड हो तो शिक्षक को क्या करना चाहिए? जवाब : विद्यार्थी को हतोत्साहित न करें शिक्षक। समझाए कि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होगे। उदाहरण दें कि असफल होने वाला अमुक व्यक्ति फिर सफल कैसे हुआ? आत्मविश्वास बढ़ाने का दायित्व शिक्षक का है।
प्रश्न : आईआईटी जीईई से बच्चे कतरा रहे हैं। वे ऐसा सेक्टर चुन रहे हैं, जिनमें जल्द नौकरी और पैसा मिले। अभिभावक सवाल करते हैं कि हर तीसरा-चौथा इंजीनियर तो सड़क पर हैं? जवाब : पढ़ाई का पहला मकसद ही आर्थिक होता है। पढऩे के दूसरे मायने इसके बाद में आते हैं। देश में गरीबी है, संघर्ष है। किसी भी देश के भविष्य को संवारने में विज्ञान-तकनीक की, अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) का योगदान होता है। विद्यार्थी जो भी बन पाएं, पर वे अपना योगदान उत्कृष्टता के साथ करें। अपनी सीमा में अच्छा काम करिये, बेहतर काम करिये तो भी व्यक्ति का, समाज का, देश का भला होगा।
प्रश्न : क्या शिक्षा के क्षेत्र में राजनीति का दबाब है और आप ऐसा महसूस करते हैं? जवाब : मैंने सुपर-30 के लिए आर्थिक सहयोग पैसा नहीं लिया। पीएम, सीएम अपनी राजनीतिक सीमा में और कई उद्योगपति भी अपनी नीति के तहत आर्थिक सहयोग के इच्छुक रहे, लेकिन नहीं लिया। क्योंकि सुपर-30 की स्थापना का अपना वसूल था, एक छवि विशेष था। बाहरी आर्थिक संसाधन स्वीकार करने पर सुपर-30 का वह चेहरा नहीं होता, जो आज दुनिया में स्थापित हुआ है। बेशक ख्याति कुछेक को नहीं पची है।
प्रश्न : संघर्ष के दौैरान का सबसे कठिन पल, जब आपको आसंू भी बहाना पड़ा हो? जवाब : ट्रक भाई पर चढ़ाया गया और मुझसे संबंधित एक विद्यार्थी को झूठे आरोप में जेल भी भेजा गया। खुशकिस्मती कि अलग छवि के ही कारण समाज ने साथ दिया। व्यक्तिगत तौर पर कहूं तो प्रमोद चंद्रवंशी जैसे लोगों ने आगे बढ़ कर मदद की।
प्रश्न : किसके व्यक्तित्व से आप प्रेरित रहे हैं? जवाब : देश और दुनिया में बहुत सारे व्यक्तित्व हैं। लेकिन समाज में छोटी हैसियत के लोग भी प्रेरणा दे जाते हैं। आर्थिक मदद कर सकने में सक्षम नहीं होने के बावजूद भी ऐसे लोगों की संख्या बड़ी रही है, जिन्होंने सांत्वना का संबल और साथ होने की हिम्मत दी।
प्रश्न : आदर्श व्यक्ति कौन? जवाब : मेरे पिता। उनके कैरेक्टर का, चरित्र का सुपर-30 से संबंधित फिल्म को देखकर पता चलेगा। उनकी सोच थी, किसी का बुरा मत सोचो और किसी से बदला मत लो।
प्रश्न : विद्यार्थियों की उदंडता पर अंकुश का फार्मूला है क्या? जवाब : बच्चे की उदंडता के बारे में शिक्षक से पूछा जाना चाहिए कि वह क्यों बच्चे को नहीं सीखा पा रहा ? इसके लिए दोष शिक्षक का बच्चे से अधिक है।
प्रश्न : उनसे इस तरह का भी सवाल पूछा गिया कि दो बड़ी कार है आपके पास, फिर नैनो से ही सफर क्यों? जवाब : दूर के लिए है स्कार्पियो, जरूरत पर उपयोग के लिए। मितव्ययिता जरूरी है, फिजूलखर्ची तो एक तरह से प्रदर्शन है।

सफलता के लिए रखें चार बातों का ध्यान

सुपर-30 के आनंद कुमार ने अन्त में कहा कि सफलता के लिए चार बातों का ध्यान रखें। 1. प्रबल प्रयास, दिन-रात सोचने, सवाल करने और जवाब तलाश करने का उद्यम। सोते-जागते सोचिए। 2. हरदम सकारात्मक सोच रखिये। ऐसा मत सोचिये कि पैसा नहीं तो इतिहास नहीं रच सकता। यह भी नहीं कि छोटा शहर है, यहां क्या कर सकते हैं? हां, सीमाएं हैं तो अपनी-अपनी तरह की जरूरतें भी हैं। जरूरतपूर्ति का कारगर उपकरण बनिए। 3. सफलता के लिए कठोर और लगातार श्रम जरूरी है। और, 4. असीम धैर्य की भी जरूरत है। प्रयास, फिर-फिर प्रयास करिये, सफलता एक दिन कदम चूमेगी।

(विशेष रिपोर्ट : उपेंद्र कश्यप, संपादन : सोनमाटीडाटकाम डेस्क)

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