डालमियानगर पर,तिल तिल मरने की दास्तां धारावाहिक पढ़ा। डालमियानगर पर यह धारावाहिक मील का पत्थर सिद्ध होगा। यह धारावाहिक संग्रहणीय है।अतित के गर्त में दबे हुए, डालमियानगर के इतिहास को जनमानस के सामने प्रस्तुत करने के लिए आपको कोटिश धन्यवाद एवं आभार प्रकट करता हूं। आशा है आगे की प्रस्तुति इससे भी अधिक संग्रहणीय होगी।
–अवधेशकुमार सिंह, कृषि वैज्ञानिक, स.सचिव,सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार
– by Awadesh Kumar Singh e-mail
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on FaceBook kumud singh — हम लोग 10 वर्षों से मैथिली मे अखबार निकाल रहे हैं..उसमें आपका ये आलेख अनुवाद कर लगाना चाहते हैं…हमने चीनी और जूट पर स्टोेरी की है..डालमियानगर पर नहीं कर पायी हूं…आप अनुमति दे तो लगाने का विचार था…
5. तिल-तिल मरने की दास्तां (किस्त-5)
बांझ-वीरान बना दी गई डालमियानगर की औद्योगिक भूमि, मृत्युशैय्या पर पड़े चिमनियों के चमन की धरती को देखकर देखकर आसमान भी रो रहा, अब दर्द भरा फसाना है न लौटने वाले वे 50 स्वर्ण वर्ष
मोहनजोदड़ो-हड़प्पा बन चुका चिमनियों का चमन, सोन अंचल की बड़ी आबादी पर परमाणु बम के शिकार हिरोशिमा-नागासाकी शहरों जैसा हुआ असर
डेहरी-आन-सोन (बिहार) – कृष्ण किसलय। भारत के स्वतंत्र होने और देश के बंटवारे के बाद अगले साल 1948 में डालमियानगर से अर्जित औद्योगिकक साम्राज्य की संपत्ति का बंटवारा भी तीन हिस्सों (रामकृष्ण डालमिया, जयदयाल डालमिया और शांति प्रसाद जैन व रमा जैन के बीच) में हो गया। डालमियानगर के कारखानों का कार्य भार रामकृष्ण डालमिया ने पूरी तरह अपने दामाद शांति प्रसाद जैन के जिम्मे छोड़ दिया और अपने अन्य औद्योगिक साम्राज्य को संभालने के लिए कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और पाकिस्तान में रहने लगे।
शांति प्रसाद जैन का सफल नेतृत्व
शांति प्रसाद जैन ने डालमियानगर के कारखानों का सफल संचालन किया। उन्होंने 1956 तक डालमियानगर परिसर में प्रति माह 1500 टन कागज और तीन हजार टन कार्डबोर्ड बनाने वाली मशीनें लगा ली। इनके कारोबारी नेतृत्व में डालमियानगर के कारखानों को वार्षिक 6.2 लाख टन सीमेंट, 80 हजार टन स्टील फाउंड्री सामग्री, 75 हजार टन कागज व कार्डबोर्ड 36 हजार टन वनस्पति, 36 हजार टन एस्बेस्टस, 7800 टन कास्टिक सोडा, 4600 टन क्लोरिन (सीएलटू) गैस, 500 टन फेरिक एलम, 300 टन सल्फर-डाई-आक्साइड और 200 टन हाइड्रोजन (एचटू) उत्पादन की अनुज्ञप्ति प्राप्त थी। मशीनों के मरम्मत कार्य के लिए रोहतास इंडस्ट्रीज का अपना विशाल सेंट्रल वर्कशाप भी स्थापित हो चुका था।
भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना
शांति प्रसाद जैन ने 1961 मे साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में भी राष्ट्रीय गौरव तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिमान स्थापित करने के लिए भारतीय ज्ञानपीठ की स्थापना की। भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए सर्वोच्च पुरस्कार दिया जाता है, जिसमें 11 ग्यारह लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र व वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा शामिल होती है। वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा धार (मालवा) के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति होती है। इस मंदिर की स्थापना विद्याव्यसनी राजा भोज ने 1035 ईस्वी में की थी। अब यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूजिय़म लंदन में है। प्रतिमा के पाश्र्व के प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं।
ज्ञानपीठ की संस्थापक अध्यक्ष रमा जैन के प्रस्ताव पर टाइम्स आफ इंडिया की प्रकाशक कंपनी बेनेट कोलमैंन एंड कंपनी के तत्वावधान में 1962 में दिल्ली में भारतीय भाषाओं के करीब तीन सौ मूर्धन्य विद्वानों की सभा डा. वी. राघवन व भगवतीचरण वर्मा की अध्यक्षता और डा. धर्मवीर भारती के संचालन में हुई, जिसमें पुरस्कार देने की रूप-रेखा पर विचार-विमर्श किया गया। 1965 में पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार का निर्णय लिया गया। तब 1965 में इस पुरस्कार की राशि एक लाख रुपये ही थी। बेशक, टाइम्स आफ इंडिया समूह सहित इन सारे आयोजन में डालमियानगर की कमाई (मुनाफा) भी लगती रही।
1970 में दायित्व अशोक जैन पर
विशाल औद्योगिक साम्राज्य के विस्तार में कामकाज के बोझ और अन्य दायित्व के कारण शांति प्रसाद जैन ने डालमियानगर का कार्यभार बड़े बेटे अशोक जैन को सौप दिया। अन्य दोनों बेटे आलोक जैन, मनोज जैन और बेटी अलका जैन ने कोलकाता, दिल्ली, मुंबई के कारोबार को संभाला। अशोक जैन 1970 में रोहतास उद्योगसमूह प्रबंध समिति के अध्यक्ष बनाए गए थे। डालमियानगर हाईस्कूल से ही विज्ञान (स्नातक) की शिक्षा प्राप्त अशोक जैन की उम्र तब 36 साल थी और उनके पास डालमियानगर के विभिन्न कामों की देखरेख का अनुभव था। 1974-75 तक का समय इस डालमियानगर के रोहतास उद्योगसमूह के लिए स्वर्णकाल था, जब तक यह मुनाफे में था। इसी बीच दुनिया के एक सबसे विशाल टाइम्स इंडिया प्रकाशन समूह का नियंत्रण भी पूरी तरह अशौक जैन के हाथ में आ गया।
1975 से गिरने लगा औद्योगिक ग्राफ
1975 के बाद रोहतास उद्योगसमूह में उत्पाादन और मुनाफे का ग्राफ विभिन्न कारणों से गिरने लगा। कंपनी का घाटा इतना बढ़ गया कि वह कारखाने के बंद होने का एक बड़ा कारक बन गया। जबकि एक समय था कि इसके कर्मचारियों को साल में साढ़े तीन महीनों का बोनस मिला करता था। बाद में तो एक महीने का बोनस देना भी संभव नहींरह गया। वित वर्ष 1970-71 में रोहतास इंडस्ट्रीज के कागज कारखाने में 51 हजार 545 टन, सीमेंट कारखाने मेें तीन लाख 26 हजार 603 टन, एस्बेस्टस कारखाने में 23 हजार 229 टन, वनस्पति कारखाने में 20 हजार 614 टन, कास्टिक सोडा कारखाने में 6057 टन उत्पादन हुआ था। 10 साल बाद वित्त वर्ष 1980-81 में उत्पादन घटकर कागज कारखाने में 47 हजार 958 टन और सीमेंट कारखाने में दो लाख 17 हजार 576 टन पर आ गया। 1977 में शांति प्रसाद जैन की मृत्यु हो गई।
एआर सरावगी के कार्यकाल में बढ़ा विवाद
1981 में अशोक जैन बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन बन गए। इसी साल कंपनी के शेयर धारकों की असाधारण बैठक में टाइम्स आफ इंडिया समूह के सलाहकार रहे आत्माराम सरावगी को रोहतास इंडस्ट्रीज का संयुक्त प्रबंध निदेशक बनाया गया। इसके बाद तो कंपनी प्रबंधन के साथ श्रमिक नेताओं के औद्योगिक संबंध इतने अधिक बिगड़ गए कि 1984 तक श्रम न्यायालय में करीब 450 विवाद दर्ज किए गए। विवाद इस तरह के थे कि श्रम विभाग के न्यायालय के लिए 283 मामलों का निष्पादन करना या फैसला देना संभव नहीं हो सका था। कंपनी ने वर्ष 1980-81 के बोनस का भुगतान अगले तीन सालों तक भी नहीं कर सकी तो मजदूरों ने वर्ष 1983-84 में दो महीने की लंबी हड़ताल की। कंपनी वेतन, बोनस, बिक्री कर, उत्पाद कर, स्थानीय कर, बिजली बिल आदि देनदारियां चुकता करने में अक्षम हो चुकी थी।
(अगली किस्त में जारी रोहतास उद्योगसमूह के स्थापित होने से मृत होने तक की कहानी)
डालमियानगर पर तिल तिल कर मरने की दास्तां धारावाहिक पढ़ा।अतित के गर्त में दबे , डालमियानगर के इतिहास को जनमानस के सामने प्रस्तुत करने का आपका प्रयास प्रशंसनीय है।