(प्रसंगवश/कृष्ण किसलय) : आंदोलनकारियों की मौसम से सुरक्षा सरकारी जवाबदेही/ ठंड का चेहरा हुआ कठोर/ हुई भगवान की प्राचीन भूमि की पुष्टि

-० प्रसंगवश ०-
हल जो निकले, किसानों की मौसम से सुरक्षा सरकार की जवाबदेही
-कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटी)

देश की राजधानी दिल्ली के बार्डर पर कृषि बिल के खिलाफ किसानों के जारी आंदोलन के बीच बिहार सरकार ने एक दशक से जारी किसानों को दिया जाने वाला डीजल अनुदान बंद कर दिया है। किसानों को हर साल तीन सिंचाई के लिए प्रति लीटर 60 रुपये अनुदान मिल रहा था। किसानों की परेशानी बढ़ गई है, क्योंकि अनुदान में मिलने वाली डीजल से किसान हार्वेस्टर से दौनी आदि कृषि कार्य भी करते रहे हैं। राज्य सरकार का कहना है कि बिजली की उपलब्धता अब हर गांव में हो चुकी है और बिजली की खपत डीजल से सस्ती भी है। जबकि कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा है कि डिजल अनुदान योजना फिलहाल इस साल के लिए बंद की गई है। बिहार सहित देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां फसल पर लागत समर्थन मूल्य से ज्यादा होती है। बिहार में 14 साल पहले 2006 में सरकार ने एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी खत्म कर दी थी। ऐसा करने वाला बिहार देश का पहला राज्य था। राज्य सरकार को अधिकार नहीं है कि वह अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे। हालांकि बिहार सरकार पैक्स (प्राथमिक कृषि साख एवं सहयोग समिति) और व्यापार मंडल के जरिये अनाज खरीदती है।
राज्य में करीब 85सौ पैक्स और सवा पांचसौ व्यापार मंडल हैं, जिनके जरिये इस साल 45 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य है। राज्य सरकार ने खाद्य निगम और सहकारिता विभाग को धान की खरीद के लिए 9500 करोड़ रुपये की गारंटी दी है। बिहार में औसत जोत का आकार 0.4 हेक्टेयर है और 90 फीसदी से अधिक किसान परिवार सीमांत हैं। सीमांत किसानों के पास अतिरिक्त उत्पादन नहीं होने से एपीएमसी एक्ट खत्म होने का असर उन पर नहीं के बराबर है। पैक्स की धान खरीदने की सीमा है और वह किसानों को भुगतान भी समय पर नहींकर पाती। सीमांत किसानों की वास्तविक समस्या तकनीक, सिंचाई सुविधा, भू-अधिकार आदि हैं, जिनके निदान की सरकार से दरकार है।
उधर, दिल्ली के सिंधु बार्डर पर लाखों किसान खुले आसमान के नीचे कृषि कानूनों को लेकर आंदोलनरत हैं। न सरकार मानने के तैयार हैं और न किसान। समझा जा सकता है कि प्रतिकूल मौसम में किसानों का दिन-रात सड़क पर रहना उनके लिए कितना जोखिम भरा है? दो दर्जन से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है, जिसके लिए प्रतिकूल मौसम ज्यादा बड़ा कारक है। बेहतर बात यह है कि इस आंदोलन में अब तक कोई हिंसा नहीं हुई है। यह सही है कि आंदोलनकारी किसान जरा भी झुकने को तैयार नहीं हैं। सरकार ने कुछ लचीलापन जरूर दिखाया है। बातचीत किसी फैसले तक नहींपहुंच सकी है। दोनों पक्षों के पास अपने-अपने तर्क हैं। सिंघु बार्डर पर किसान नेता कुलवंत सिंह संधू ने घोषणा की है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाना ही प्रमुख मांग है, जिससे समझौता नहीं होगा। बहरहाल, किसान सरकार से उम्मीद लगाकर ही अपने घर से दूर कष्ट झेल रहे हैं। बातचीत का क्या हल होगा, कौन कितना मानेगा और क्या परिणाम निकलेगा? यह भविष्य के गर्भ में है। अब जब मौसम अपना कठोर चेहरा दिखा रहा है, तब आंदोलनकारी किसानों को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है। फिलहाल अभिभावक होने के नाते केंद्र सरकार को जानलेवा ठंड में आंदोलनकारी किसानों की सुरक्षा का उपाय करना और जरूरी सुविधाएं मुहैया कराना चाहिए, क्योंकि आंदोलनकारी किसान भी देश के नागरिक हैं और सम्मान देने के अधिकारी हैं।

ठंड का चेहरा हुआ कठोर, टूटा सदी का रिकार्ड

पटना/दिल्ली (सोनमाटी टीम, समन्वय : निशान्त राज)। हिमालय के पहाड़ों पर बर्फ गिरने के बाद उत्तर भारत में अचानक मौसम की करवट से पारा नीचे लुढ़क आया और हाड़ तक कंपा देने वाली कड़ाके की ठंड से बिहार सहित अनेक राज्य हलकान हो गए। हवा मैदानी इलाके में लोगों को ठिठुरा रही है। हर जगह रात में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे है। दिन के अधिकतम तापमान में 4.5 डिग्री और रात के न्यूनतम तापमान में 6.4 डिग्री सेल्सियस की गिरावट हुई है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में तो तापमान 7-8 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला गया। मौसम विज्ञान विभाग ने कुछ दिनों तक भीषण ठंड की स्थिति बने रहने का पूर्वानुमान लगाया है। इस तरह अचानक ठंड का होना स्वास्थ्य के लिए घातक है, क्योंकि शरीर एकदम बदलाव के लिए तैयार नहीं होता है। अधिक ठंड से वायरस के प्रकोप का खतरा बढ़ता है, जिसमें कोरोना भी शामिल है। ठंड ने अब तक देशभर में सैकड़ों लोगों की जिंदगी छीन ली है।
पश्चिमी विक्षोभ के कारण हिमालय क्षेत्र में मौसम में परिवर्तन के संकेत से आने वाले दिनों में भी राहत मिलने की उम्मीद नहींहै। मौसम विभाग ने आठ राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भीषण सर्दी की चेतावनी देते हुए अलर्ट जारी किया है। देश की राजधानी दिल्ली में तो ठंड ने इस साल 118 वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया, जहां लगातार शीत लहर जारी रही। वर्ष 1901 में सर्दी ने दिसंबर में दिल्ली में इसी तरह का कहर बरपाया था। बिहार के गया में तापमान सबसे कम 4 डिग्री, राजधानी पटना में 8 डिग्री के करीब और राज्य के डेहरी-आन-सोन समेत अधिसंख्य शहरों में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से कम रहा। पश्चिमी विक्षोभ के कारण 31 दिसंबर से हवा की रफ्तार बढ़ेगी। अनुमान है कि एक से तीन जनवरी के बीच दिल्ली, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ सहित कई राज्यों में बारिश और ओलावृष्टि हो सकती है। दिल्ली एयरपोर्ट पर कुहासा के कारण विमानों, ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित है। कुहासा का असर रेल सेवा पर है। अन्य राज्यों से आने वाली और बिहार से जाने वाली रेलगाडिय़ां अपने समय से कई घंटे विलंब से चल रही हैं।

बबून की दांतों से पता चला, कहां थी भगवान की प्राचीन भूमि

(सोनमाटी समाचार नेटवर्क) मिस्र के लोगों ने 4500 साल पहले पुण्यस्थल पुंट जाना शुरू किया था और हजारों साल तक जाते रहे। कहा जाता है कि पुंट जाने वाले को खाने की सामग्री (फल आदि के जंगल), धातु के अयस्क, दुर्लभ जानवर के दर्शन होते थे। शायद कभी खजाना भी कभी मिला हो। इस प्राचीन कथा की ओर पुराविदों का ध्यान गया। डार्टमाउथ कालेज में प्राइमेटालजिस्ट नथेनियल डामिनी की टीम ने ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित रखे गए 3300 साल पुराने बबून के कपाल कंकाल का अध्ययन किया। बंदर की प्रजाति बबून की इस खोपड़ी की खोज 19वीं सदी में थेबीस के शहर में हुई थी। प्राचीन मिस्र के लोग इस बबून को विवेक का देवता कहते थे। इसे सूर्य देवता से भी जोड़ा जाता था।
प्राइमेट (बंदर) की यह प्रजाति मूल रूप से मिस्र की नहीं है। नथेनियल डामिनो और उनके साथियों द्वारा बबून के दांतों में मौजूद स्ट्रानशियम के आइसोटोप्स के अध्ययन से भी पता चला कि यह बबून 3300 साल पहले मिस्र में पैदा नहीं हुआ था। स्ट्रानशियम आइसोटोप्स से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी प्राचीन जीव-जंतु का पृथ्वी के किस भौगोलिक हिस्से में वास था। इस अध्ययन से जानकारी हुई कि बबून मिस्र में पैदा नहीं हुआ था, बल्कि आज जहां एरिट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया है, पृथ्वी के उसी क्षेत्र पैदा हुआ होगा। पुरातत्वविदों के मुताबिक यही वह इलाका है, जहां पुंट यानी भगवान की भूमि का क्षेत्र था। इस आधार पर माना जा रहा है कि यह बबून उसी क्षेत्र के खजाने का हिस्सा है। बास्टन यूनिवर्सिटी की पुराविद कैथरिन बार्ड ने वर्ष 2001 से लेकर 2011 के बीच मिस्र के लालसागर तट पर मेर्सा में खुदाई कराई थी। तब उन्हें वह पत्थर मिला, जिस पर पुंट तक के सफर की जानकारी लिखी (खुदी) हुई थी। इस प्रकार बबून की खोपड़ी के नए अध्ययन से संकेत मिला कि वास्तव में पुंट कहां था?

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