दो कोरोना वैक्सीन मंजूर, बिहार भी टीकाकरण को तैयार
नई दिल्ली/पटना (समाचार समन्वय निशांत राज)। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने एक्सपर्ट पैनल की सिफारिश के बाद पहली देसी कोरोना वैक्सीन के साथ विदेशी कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल की भी मंजूरी दे दी है। उम्मीद है कि मकर संक्रांति के दिन यानी 14 जनवरी से देश में कोविड-19 के विरूद्ध टीकाकरण अभियान शुरू हो जाएगा। मंजूर की गई दोनों वैक्सीन में एक ‘कोवीशिल्ड’ आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से दवा कंपनी एस्ट्रोजेनेका द्वारा विकसित की गई है। ‘कोवीशील्ड’ का उत्पादन भारत की ही पुणे (महाराष्ट्र) स्थित दवा निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया कर रही है, जो दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। जबकि ‘कोवैक्सीन’ को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से देश की भारत बायोटेक दवा कंपनी ने विकसित किया है। इस तरह कोवीशील्ड वैक्सीन देश में निर्मित और कोवैक्सीन वैक्सीन देश में विकसित-निर्मित टीके हैं। दवा कंपनी कैडिला हेल्थ केयर लिमिटेड के वैक्सीन ‘कैंडिडेट’ के तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी की भी सीडीएससीओ ने सिफारिश कर दी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीकाकरण अभियान की घोषणा मकरसंक्रांति से करने की कर रखी है।
लंदन के लाकडाउन में रुके हुए सनबीम के निदेशक :
बिहार में कोरोना टीकाकरण की तैयारी पूरी हो चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि टीकाकरण जनवरी में शुरू होने की उम्मीद है। पहले डाक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और उसके बाद केेंद्र की गाइडलाइन के अनुसार राज्य के लोगों को। पहले कोरोना वैक्सीन हाउस में दो करोड़ वैक्सीन आएगी, जहां से वैक्सीन 10 जगहों पर जाएगी और फिर राज्य के सभी 38 जिलों में भेजी जाएगी। देश में कोविड-19 संक्रमण दर में कमी होते ही एहतियात बरतते हुए लाकडाउन में ढील दी गई तो कई लोग, परिवार विदेश दौरे पर भी निकल गए। मगर ब्रिटेन आदि देशों में गए लोग फंस गए हैं, क्योंकि वहां कोविड-19 के दुबारा प्रसार के कारण 15 फरवरी तक लाकडाउन बढ़ा दी गई है। लंदन गए डेहरी-आन-सोन के सनबीम स्कूल के प्रबंध निदेशक राजीवरंजन सिन्हा और प्राचार्य अनुभा को लंदन में लाकडाउन में ढील होने का इंतजार है।
डायनासोरों से पहले पृथ्वी पर टेरोसोरों का था एकछत्र राज
करीब 15 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर आकाश में उडऩे वाले बड़े जीव ‘टेरोसोर’ का राज था। आकाश के इस राजा के बारे में जीवाश्म विज्ञानियों को अब तक बहुत कम जानकारी थी। दो सदी पहले इसका जीवाश्म मिला था। मगर पता नहीं था कि किस तरह से यह जीव विकसित हुआ और कैसे शरीर के विशाल आकार के बावजूद आकाश में उड़ान भरता था। जीव वैज्ञानिकों ने जीव-विकास-क्रम की इस बड़ी गुत्थी को सुलझा लिया है। उस समय धरती पर विशालकाय जीव डायनासोर थे तो टेरोसोर को उडऩेवाला डायनासोर माना गया। अब 2021 में टेरोसोरो के जीवाश्मों के अध्ययन के आधार पर जीव वैज्ञानिकों का नया निष्कर्ष सामने आया है कि उडऩे वाले टेरोसोर 23 करोड़ 70 लाख साल पहले धरती पर थे। विज्ञान की प्रतिष्ठित विश्व पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित शोध अध्ययन में बताया गया है कि छोटे डायनासोर की एक प्रजाति टेरोसोर प्रजाति की सबसे करीबी थी। दोनों का जीव विकास क्रम मेल खाता है। टेरोसोर आकाश में दूर-दूर तक उड़ान भरते थे।
कृष्ण किसलय की पुस्तक में इसकी जानकारी :
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया से विज्ञान लेखक कृष्ण किसलय की विज्ञान के इतिहास पर 2019 में प्रकाशित पुस्तक ‘सुनो मैं समय हूं’ में भी यह बताया गया है कि कोई 25 करोड़ साल पहले शुरू हुए जुरासिक युग में मछली खाने और पानी में तैरने वाली विशालकाय प्रजाति ट्राइटनोसेराटाप्स मौजूद थी, जो उड़ नहीं सकती थी। इससे ही करोड़ों साल बाद पंख वाली टेरोसोरस प्रजाति विकसित हुई, जो कीड़े-मकोड़े खाती थी। टेरोसोरस पृथ्वी के प्रथम उडऩेवाले जीव थे, जिनसे ही चिडिय़ा, चमगादड़ नभचर विकसित हुए। करीब 6.6 करोड़ साल पहले तीव्र पर्यावरण परिवर्तन और भौगोलिक बदलाव की वजह से डायनासोर के साथ टेरोसोर भी धरती से विलुप्त हो गए। जीवाश्मविज्ञानियों के लिए टेरोसोर का विकास साक्ष्य के अभाव में दो सदियों से रहस्य बना रहा था। टेरोसोर के अवशेष पहली बार 18वीं शताब्दी में मिले थे और उन्हें चिह्निïत किया गया था। तब से इनकी गुत्थी सुलझाई जा रही थी। यूनिवर्सिटी आफ बर्मिंघम के जीव विशेषज्ञ मार्टिन डी. इजकूरा के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के दल ने यह निष्कर्ष निकाला है कि टेरोसोर दो पैरों वाले जीव थे, जो डायनासोर के विलुप्त होने से पहले ही खत्म हो गए थे। इन शोधकर्ताओं ने उत्तरी अमेरिका, ब्राजील, आर्जेंटीन, मेडागास्कर में मिले टेरोसोरों के जीवाश्म अवशेषों के आधार पर पृथ्वी पर जीव विकास क्रम की संगति बैठाई और उसका कालखंड निर्धारित किया।
निशान्त राज (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)