ताजमहल को लेकर जारी राजनीति से इतना तो साफ है कि अपनी संस्कृति को लेकर हम संवेदनशील नहीं हैं। दुनिया में प्रेम के भव्य प्रतीकों में शुमार ताजमहल को लेकर बीजेपी विधायक का बयान कटुता से ही खाद-पानी हासिल करने वाली राजनीति है। विधायक ने कहा कि ताजमहल को बनवाने वाले शाहजहां ने अपने पिता को कैद कर लिया था और वह हिंदुओं को मिटा देना चाहता था। जवाब में एआईएमआईएम के अध्यक्ष ने कहा कि तब तो प्रधानमंत्री को लाल किले पर तिरंगा नहीं फहराना चाहिए। फिर समाजवादी पार्टी के एक नेता ने कहा कि गुलामी की निशानी तो संसद और राष्ट्रपति भवन भी हैं, लिहाजा ताजमहल के साथ उनको भी गिरा दिया जाए? बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को उड़ा देने वाले तालिबान अफगानिस्तान में भी बर्बर ही माने जा रहे हैं।
केंद्र और देश के ज्यादातर राज्यों में सत्ता संभाल रही बीजेपी को इस राजनीतिक शैली से पीछा छुड़ाने का प्रयास करना चाहिए। पूरी दुनिया अपने अतीत को सहेजने में, अपनी विरासतों के वैश्विक संदर्भ विकसित करने में जुटी है। वक्त आ गया है कि गाली-गलौज का मुद्दा बनाने से अलग हम अपनी ऐतिहासिक धरोहरों का सम्मान करना सीखें।यहूदी धर्मग्रंथों में यह वाक्य एकाधिक बार आया है कि ‘मत भूलो, तुम कभी मिस्र में गुलाम थे और बकरी की खाल से बने तंबुओं में रहते थे।’ लेकिन दो अरब-यहूदी युद्धों के बावजूद मिस्र के पिरामिड ढहाने की बात इस्राइल के एजेंडे पर कभी नहीं आई।