डेहरी-आन-सोन (बिहार)-कृष्ण किसलय। भारत के विश्वविश्रुत सोन नद तट का सबसे बड़ा शहर डेहरी-आन-सोन दशकों से रंगकर्मियों (नाटक के अभिनेताओं) के साथ अपने समय के देश-समाज के हिसाब से नाटककारों (लेखकों) से समृद्ध रहा है और 21वींसदी में औसतन दो साल के अंतराल पर फिल्म-निर्माण का सिलसिला भी इस भोजपुरी भाषी इलाके में जारी है। इस झकास सिलसिले के बावजूद हिट भोजपुरी फिल्म देने के मामले में सोन का यह अंचल सूखा-सूखा रहा है। एक-दो को छोड़ दें तो डेहरी-आन-सोन का कोई रंगकर्मी, कोई कलाकार, कोई लेखक यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वह फुलटाइम सिने आर्टिस्ट हो चुका है या फिर सिनेमा से उसके घर का चूल्हा जलता है। सिवाए इस बात कि उसकी पहचान बतौर सिने आर्टिस्ट या फिल्मकर्मी भी है। यहां फिल्म बना लेने और सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने की क्षमता वाले निर्माता-लेखक-निर्देशक के होने के बावजूद सोन अंचल की इस जमीन से अभी तक कोई हिट सिने गीतकार-कथाकार (कहानी, पटकथा, संवाद) और कोई हिट निर्देशक सामने नहीं आ सका है, जो संपूर्ण भोजपुरी सिने संसार का गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व करता हो।
इस सदी में नहीं बनी है वृहत्तर भोजपुरी समाज को छू लेने वाली फिल्म
सुस्त फिल्मांकन या पूंजी रिकवरी के मद्देनजर सोन अंचल के इस इलाके पर भले ही यह आरोप कोई सरलता से थोप दे कि यहां भोजपुरी फिल्म का बाजार नहीं है, मगर क्या इस बात की वकालत की जा सकती है कि भोजपुरी समाज के वृहतर हिस्से को छू लेने वाली या किसी श्रेणी की श्रेष्ठता रखने वाली कोई फिल्म इस सदी में इस इलाके से गुजर-बनकर आई है? जाहिर है कि नहीं। किसी फिल्म के निर्माण-प्रदर्शन के लिए पांच उपक्रमों तकनीक, कला, समूह (टीम), पूंजी और बाजार (दर्शक) का होना अनिवार्य है। नाटक के केेंद्र में बहुत हद तक उसका लेखक (नाटककार) होता है, क्योंकि रंगमंच के अभिनेता-निर्देशक को नाटक के फ्रेम से बाहर निकल जाने की इजाजत नहीं होती है। वहीं सिनेमा के केन्द्र में पूरी तरह निर्देशक होता है, क्योंकि फिल्मांकन या विजुअलाइजेशन उसी के फ्रेम के अंतर्गत होता है और कथा, अभिनय, गीत-संगीत, दृश्य-संयोजन उसकी दृष्टि-विस्तार-प्रभाव के पूरक होते हैं।
सोन अंचल में आधा दर्जन से अधिक फिल्मों की हुई शूटिंग
इसी सदी के गुजरे सालों में आधा दर्जन से अधिक भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग सोन अंचल के इस इलाके में हुई, जिनके निर्माता, निर्देशक, अभिनेता डेहरी-आन-सोन से जुड़े रहे हैं। 20वींसदी से ही पुलिस की नौकरी में रहे यदुनंदन मंडल की अपनी कहानी बिअहुती चुनरी को फिल्म के रूप में ढालने और पर्दे पर दिखाने का सपना लम्बे अंतराल के बाद आखिर इस सदी में 2006 में पूरा हुआ। बिअहुती चुनरी के बाद डेहरी-आन-सोन में फिल्म की जमीन तैयार करने वाले लेखक-निर्देशक चंद्रभूषण मणि की फिल्म बनी उग ह सुरज देव। दोनों ही फिल्मों का पटकथा-संवाद लेखन के साथ निर्देशन चंद्रभूषण मणि ने किया। साल 2008 में फिल्म बनी वाह जीजा जी। इसकी शूटिंग तो यहां नहीं हुई, मगर इसमें डेहरी-आन-सोन के अभिनेताओं अमीरचंद्र (गुप्ता), अशोक घायल, कुमार बिन्दु, सुमन्त मिश्र और मुकुल मणि की भूमिका है। इसके बाद बनी फिल्मों कृष्णा कइलस कमाल और धूम मचइल राजा जी में सुमंत मिश्र और इस फिल्म में संगीत निर्देशन अशोक घायल का है।
अनेक अभिनेताओं ने दर्ज कराई अपनी अग्रणी उपस्थिति
इसके बाद भोजपुरी फिल्म बनी बिहारी रिक्शा वाला। बिहारी रिक्शा वाला में भी उग ह सुरज देव के हीरो विनय आनन्द ने ही बतौर हीरो अभिनय किया, जो वालीवुड मुम्बई के स्टार गोविन्दा के भगीना हैं। बिहारी रिक्शा वाला में डेहरी-आन-सोन के सत्येन्द्र प्रसाद गुप्ता सह निर्माता है, जिन्होंने अभिनय भी किया है। इन सभी फिल्मों की शूटिंग डेहरी-आन-सोन और आसपास के इलाके में हुई। इसी दौरान पड़ोस के डालटनगंज और आसपास भोजपुरी फिल्म नैना की शूटिंग हुई, जिसकी पटकथा-संवाद ठाकुर कुंजबिहारी सिन्हा ने लिखे। 2015 में बन कर प्रदर्शित हुई भोजपुरी फिल्म शिवचर्चा की शूटिंग हालांकि झारखंड और मुम्बई में हुई, मगर इसमें डेहरी-आन-सोन के अभिनेताओं डा. राजेंद्र प्रसाद यादव, सुमन्त मिश्र, ठाकुर कुंजबिहारी सिन्हा, शिवप्रसन्न सिंह अग्रणी भूमिकाओं में हैं। इस फिल्म में डेहरी-आन-सोन की नवयुवती चांदनी ने भी अभिनय किया है। शिवचर्चा के संवाद कुमार बिन्दु ने लिखे हैं। फिल्म के निर्देशक अशोक घायल ने संगीत निर्देशक से फिल्म निर्देशक के रूप में इसी फिल्म से टर्न लिया है।
शूटिंग के जारी सिलसिले की नई कड़ी छोटकी ठकुराइन
सोन नद के इस इलाके में भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग का सिलसिला जारी है और इस सिलसिले की नई कड़ी है छोटकी ठकुराइन, जिसका जमीनी आगाज पिछले हफ्ते हो चुका है। इस फिल्म की आरंभिक शूटिंग रोहतास जिले के नोखा थाना के हथिनी-बरांव, जखिनी पहाड़ी के पाश्र्व में और जमुहार स्थित एनएमसीएच परिसर में हुई है। पटना के कन्हैया आर्ट इंटरनेशनल के बैनर तले बन रही इस फिल्म के निर्माता पटना के दिलीप यादव हैं और इसके निर्देशक संस दुर्रानी हैं। मुख्य कलाकारों में राकेश मिश्रा, रानी चटर्जी, सुशील सिंह हैं तो डेहरी-आन-सोन के सुपरिचित अभिनेता डा. राजेन्द्र प्रसाद यादव और मुकुल मणि भी इस फिल्म में अगली कतार के अभिनेताओं में शामिल हैं।
संसार तो उम्मीदों का सफर है, बस इंतजार है संयोजन-संयोग की
शूटिंग, अभिनय, लेखन, निर्देशन के जारी सफर से यह माना जा सकता है कि असफलताओं-प्रयोगों के अनुभवों से छनकर भविष्य में भोजपुरी सिनेमा की दुनिया में सोन अंचल से कोई ऐसी फिल्म जरूर सामने आएगी, जिससे सकल भोजपुरी समाज अपना रिश्ता-ए-फख्र जोडऩे के लिए आतुर होगा। जाहिर है, सोन अंचल को इंतजार है दृष्टिसम्पन्न फिल्म निर्माण के लिए दमदार कहानी और पर्याप्त पूंजी के साथ कहानी को सटीक आकार देने वाले स्क्रीनप्ले ( पटकथा) की, संवाद की और उसे मूर्तिमान करने वाले अनुभवी निर्देशक के नेतृत्व में सक्षम कलाकारों की टीम संयोजन की। बहरहाल, दुनिया अगर उम्मीदों का सफर है तो आसमान में दशकों से संभावनाओं के बादलों का मंडराता झकास बारिश बनकर जरूर सोन अंचल की माटी पर झमाझम तारी होगा और भोजपुरी फिल्म को नई ऊंचाई देने वाले अंकुर फूटेंगे।
(चंद्रभूषण मणि, कुमार बिन्दु, ठाकुर कुंजबिहारी सिन्हा, सुमन्त मिश्र, मुकुल मणि से बातचीत पर आधारित…. आगे भी जारी)
तस्वीर संयोजन : निशांत राज