4. तिल-तिल कर मरने की दास्तां (किस्त-4)

डालमियानगर पर,तिल तिल मरने की दास्तां धारावाहिक पढ़ा। डालमियानगर पर यह धारावाहिक मील का पत्थर सिद्ध होगा। यह धारावाहिक संग्रहणीय है।अतित के गर्त में दबे हुए, डालमियानगर के इतिहास को जनमानस के सामने प्रस्तुत करने के लिए आपको कोटिश धन्यवाद एवं आभार प्रकट करता हूं। आशा है आगे की प्रस्तुति इससे भी अधिक संग्रहणीय होगी। 

अवधेशकुमार सिंह, कृषि वैज्ञानिक, स.सचिव : सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार                                             – by Awadesh Kumar Singh e-mail

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on FaceBook  kumud singh  — हम लोग 10 वर्षों से मैथिली मे अखबार निकाल रहे हैं..उसमें आपका ये आलेख अनुवाद कर लगाना चाहते हैं…हमने चीनी और जूट पर स्टोेरी की है..डालमियानगर पर नहीं कर पायी हूं…आप अनुमति दे तो लगाने का विचार था…

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4. तिल-तिल मरने की दास्तां (किस्त-4)

मोहनजोदड़ो-हड़प्पा बन चुका चिमनियों का चमन, सोन अंचल की बड़ी आबादी पर हिरोशिमा-नागासाकी जैसा हुआ असर
1935 में ही बिक जाता डालमियानगर, कौन थे रामकृष्ण डालमिया?, कैसे बसा डालमियानगर? तीन दशक का भारतीय औद्योगिक इतिहास डालमिया युग 

डेहरी-आन-सोन (बिहार) – कृष्ण किसलय। रामकृष्ण डालमिया ने दानापुर (पटना) के निकट बिहटा (भोजपुर जिला) में देश की सबसे बड़ी चीनी मिल (साउथ बिहार शुगर लिमिटेड) और फिर डालमियानगर में चीनी मिल (रोहतास शुगर लिमिटेड) की स्थापना के बाद तुरंत ही सीमेंट उद्योग में प्रवेश करने की तैयारी में लग गए, क्योंकि रोहतास जिले के दक्षिणवर्ती 60 किलोमीटर दूर कैमूर पहाड़ी पर सीमेंट पत्थर के भंडार होने का उन्हें पता था, जिस इलाके से आए चूना पत्थर स्टीमरों में लादकर सोन नहरों के जरिये गंगा नदी होते हुए कोलकाता तक पहुंचाए जाते थे। तब देश भर में एसीसी का सीमेंट उद्योग में एकाधिपत्य था, जिसे डालमिया बंधुओं ने तोड़ा और 20 रुपये तक में बिकने वाला सीमेंट का बोरा दो रुपये तक में बिका।


इसके बाद तो रामकृष्ण डालमिया और जयदयाल डालमिया का औद्योगिक साम्राज्य सुरसा की तरह बढ़ता चला गया। 1932 से 1962 तक तीन दशक का भारतीय औद्योगिक इतिहास डालमिया युग के रूप में ही चिह्निïत किया जाता रहा है। इस अवधि मे देश में उद्योगों की भरमार नहींथी। डालमिया प्रथम भारतीय उद्योगपति थे, जिन्होंने डालमियानगर से कोलकाता के बीच अपना निजी ट्रंक टेलीफोन संयंत्र स्थापित किया था। इनकी गिनती भारत में डिवेंचर शेयर कारोबर के प्रवतर्को में की जाती है। चांदी की दलाली से जब पैसा कमाया तो उद्योग लगाने का विचार किया।
1935 में ही बिक जाता डालमियानगर!
हालांकि बिहार के मृत हो चुके सबसे बड़े रोहतास उद्योगसमूह (देश के सबसे बड़ी चीनी मिल) के इतिहास के आरंभिक दौर में ही एक वक्त ऐसा आया था कि कारोबार बुरी तरह लडख़ड़ा गया था। इस बात का सूबत डालमियानगर के दूसरे संस्थापक छोटे भाई जयदयाल डालमिया का 83 साल पहले का वर्ष 1935 का एक संस्मरण है। तब जयदयाल डालमिया ने कहा था कि हमारी दोनों कंपनियों (साउथ बिहार शुगर मिल और रोहतास शुगर मिल) की हालत समाप्त हो जाने जैसी हो गई है और इनके शेयर होल्डर बर्बाद हो सकते हैं। अच्छा होगा कि हम स्वेच्छा से इन कंपनियों का समापन कर शेयर धारकों को उनके रुपये का भुगतान कर दें। मगर तभी बड़े भाई रामकृष्ण डालमिया सट्टेबाजी से 40 लाख रुपये जुटा लाए और दोनों ही कंपनियों की स्थिति सुधर गई।


कौन थे रामकृष्ण डालमिया?
साउथ बिहार शुगर मिल की स्थापना से पहले निर्मल कुमार जैन से रामकृष्ण डालमिया का परिचय कोलकाता में हुआ था। रामकृष्ण डालमिया का जन्म राजस्थान के चिरांवा गांव में हुआ था। किशोर वय में उन्हें परिवार के साथ कोलकाता आना पड़ा, जहां उनके पिता मेसर्स बृज राय हरसुख राय फर्म में 75 रुपये की नौकरी करते थे। रामकृष्ण कोलकाता के विशुद्धानंद सरस्वती विद्यालय के तेज छात्र थे, लेकिन घर की माली हालत ठीक नहींहोने के कारण स्कूल छोड़कर अपने मामा के यहां कोलकाता में ही 10 रुपये महीने की नौकरी करनी पड़ी। वे साइकिल पर कपड़े का गट्ठर लादकर उत्तरपाड़ा ले जाते थे और गली-गली फेरी लगाते थे। बाद मेें उन्होंने चांदी व चीनी के कारोबार की दलाली शुरू की और सट्टेबाजी (फटका) भी खेलने लगे। 1828-29 में मोतीलाल झुनझुनवाला के संपर्क में आकर स्टाक मार्केट के ब्रोकर (दलाल) बने और पैसा कमाया। फिर कोलकाता के साथ मुंबई में भी जूट व रूई के कारोबार की दलाली की। रामकृष्ण डालमिया ने अपनी बेटी रमा की शादी नजीबाबाद (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) के जमींदार परिवार के शांति प्रसाद जैन से की। शांति प्रसाद जैन ने अपने परिजनों के साथ मिलकर पार्टनरशीप के आधार पर कारोबार का विस्तार पश्चिम बंगाल, उड़ीसा में किया। कारोबार का विस्तार पाकिस्तान के करांची के निकट शांतिनगर में और हरियाणा के दादरी में भी हुआ।


कैसे बसा डालमियानगर?
रामकृष्ण डालमिया के लिए डालमियानगर बसाने और चीनी मिल स्थापित करने का जरिया तीन लोग बने थे, जिनके बारे में डालमियानगर से जुड़े कर्मचारियों और डेहरी-आन-सोन के लोगों को भी नहीं के बराबर जानकारी है। कपड़े का कारोबार करने के समय रामकृष्ण डालमिया का परिचय डेहरी-आन-सोन के थोक कपड़ा व्यापारी झाबरमल सरावगी से हुआ था। झाबरमल सरावगी के दादा शिवनारायण सरावगी कोलकता से ही आए थे, जिन्हें अंग्रेजी राज में मकराईं, कैथी, मेवड़ा, नौनसारी आदि गांवों में 47 तौजी की जमींंदारी मिली थी और जिन्होंने अपना आवास कुदरा (भभुआ जिला) में बनाया था। झाबरमल सरावगी से रामकृष्ण डालमिया और उनके भाई जयदयाल डालमिया मिले थे। तब दोनों डालमिया भाइयों की मुलाकात कला निकेतन (डेहरी बाजार) वाले मकान में हुई थी। कला निकेतन के उस मकान में तब रामकृष्ण डालमिया की एकलौती बेटी रमा करीब एक महीना रही भी थी। उस समय घुड़सवारी करने के कारण आकर्षण का केेंद्र रहीं रमा की शादी नहींहुई थी।
तब जो बने थे मददगार
डालमियानगर बसाने में रामकृष्ण डालमिया के दूसरे मददगार बने थे सासाराम के तत्कालीन अंग्रेज एसडीएम मिस्टर फिलिप्स, जिन्होंने प्रशासन के स्तर पर हर संभव सहायता की थी। फिलिप्स का भी कोलकता कनेक्शन था। तीसरे सक्रिय मददनगर थे चेनारी (बिहार के कैमूर जिला) के रघुनंदन शुक्ल, जिनका निधन देश के आजाद होने के पहले 1946 में हो गया। रघुनंदन शुक्ल ने रोहतास शुगर लिमिटेड के लिए सिधौली, मकराईं की जमीन प्राप्त करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी और वह कारखाने की आरंभिक कठिनाई से जूझे भी थे। रघुनंदन शुक्ल का नाम अंग्रेज एसडीएम फिलिप्स ने ही सुझाया था।

जब आया शांति प्रसाद जैन के हाथ में औद्योगिक साम्राज्य
रामकृष्ण डालमिया ने 1943 में भारत फायर एंड जेनरल इंश्योरेंस लिमिटेड और भारत बैंक लिमिटेड की 292 शाखाओं की स्थापना की थी। देश के आजाद होने बाद रोहतास इंडस्ट्रीज और इसके सहयोगी संस्थानों का 3800 एकड़ में विस्तृत विशाल कारोबारी साम्राज्य डालमिया और जैन परिवार में बंटवारे के बाद पूरी तरह शांति प्रसाद जैन व उनकी पत्नी रमा जैन के हाथ में आ गया। हालांकि कहा यही जाता है कि शांति प्रसाद जैन ने रामकृष्ण डालमिया से डालमियानगर और इससे जुड़ी आसपास की संपत्ति लिखवा ली थी। तब रामकृष्ण डालमिया ज्यादातर समय दिल्ली, कोलकाता में गुजारने लगे और डालमियानगर का विस्तार शांति प्रसाद जैन की देख-रेख मेें होने लगा।

झाबरमल सरावगी के पोते व जयहिंद टाकिज (डेहरी-आन-सोन) के मालिक विश्वनाथ प्रसाद सरावगी के अनुसार, अपने दामाद शांति प्रसाद जैन को डालमियानगर की संपत्ति हस्तांतरित कर देने के बाद रामकृष्ण डालमिया फिर कभी डालमियानगर कारखाना परिसर में नहींआए।
रामकृष्ण डालमिया और जयदयाल डालमिया दिल्ली, कोलकाता, राजस्थान और पाकिस्तान में कारोबार संभालने लगे। रामकृष्ण डालमिया ने 1946 में दो करोड़ रुपये में दुनिया के सर्वाधिक प्रसारित अंग्रेजी अखबार टाइम्स इंडिया की प्रकाशक कंपनी बेनेट कोलमैन एंड कंपनी को खरीदा, जिसे बाद में 2.5 करोड़ रुपये में अपने दामाद शांति प्रसाद जैन को

1948 में बेच दिया था। टाइम्स इंडिया समूह के विस्तार में डालमियानगर (रोहतास इंडस्ट्रीज) से होने वाला मुनाफा भी लगाया जाने लगा। 1838 में विदेशी प्रकाशक द्वारा स्थापित वर्तमान समय में 11 हजार कर्मचारियों वाली इस प्रकाशन कंपनी का सालान टर्नओवर आज 12 हजार करोड़ रुपये से ऊपर है। वर्तमान में शांति प्रसाद जैन की बड़ी बहू (अशोक जैन की पत्नी) इसकी अध्यक्ष व पोते समीर जैन उपाध्यक्ष हैं।
भारत के राकफेलर के रूप में अमेरिका में चर्चा
1956 में केेंद्र सरकार द्वारा गठित विवान बोस जांच आयोग ने रामकृष्ण डालमिया को स्टाक मार्केट के जरिये कोष में गड़बड़ी करने का दोषी पाया और उन्हें जेल जाना पड़ा। बेशक, पैसा बिना बेईमानी के नहींआता। अन्य कारोबारियों की तरह रामकृष्ण डालमिया भी इस अंतरतथ्य के उदाहरण रहे हैं। और, इस बात के भी कि पानी की तरह पैसा आने के जो दुर्गुण हो सकते हैं, उनमें से कई उनके साथ भी जुड़ गए थे। रामकृष्ण डालमिया का कारोबारी केेंद्र जिन-जिन शहरों में था, उन-उन शहरों में उनकी दूसरी, तीसरी व चौथी पत्नियां भी थीं। हालांकि यह उनका यह व्यक्तिगत मामला था। उन पत्नियों की दखल कारोबार में कितना था? यह आज जानकारी नहीं, मगर रामकृष्ण डालमिया ने इन सबको अलग-अलग कोठियां उनके शहरों में ही दे रखी थी। १९५८ में अमेरिका के अखबारों में रामकृष्ण डालमिया के बारे मेें भारत के राकफेलर के रूप में टिप्पणियां की थीं। रामकृष्ण डालमिया की मृत्यु 85 साल की आयु में 1978 में हुई।
(अगली किस्त-5 में भी जारी रोहतास उद्योगसमूह के स्थापित होने से मृत होने तक की कहानी)

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