बिहार : अपनी-अपनी ताकत आंकने का उपचुनाव

– कृष्ण किसलय, पटना

(देहरादून, दिल्ली कार्यालय से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष की बहुरंगी
पाक्षिक पत्रिका चाणक्य मंत्र  में)

बिहार के प्रमुख दलों की राजनीतिक गतिविधियां और सियासी सरगर्मी यही बता रही हंै कि पांच विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल तो है ही, दलों के लिए अपनी-अपनी स्वतंत्र शक्ति-आकलन का महत्वपूर्ण मौका भी है। 2020 के चुनाव के मद्देनजर भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों (जदयू, राजद, अन्य) के शिविरों में अपनी-अपनी रणनीति की खिचड़ी तेजी से पक रही है। जहां महागठबंधन में बिखराव की नौबत दिख रही है, वहीं एनडीए गठबंधन के भी बरकरार रहने पर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। बिहार में उत्तरोत्तर बेहतर प्रदर्शन करने वाली भाजपा की महत्वाकांक्षा राज्य में अपने दम पर दौडऩे की है। माना जा रहा है कि भाजपा की महात्वाकांक्षी अश्वमेध में भविष्य में मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की बलि भी अपरिहार्य हो सकती है। उन पर भाजपा का आंतरिक दबाव अब केेंद्र की राजनीति करने के लिए बढ़ता जा रहा है। वैसे उपचुनाव में मुख्य मुकाबला जदयू और राजद के बीच ही है, क्योंकि चार सीटों पर इन दोनों के बीच और एक सीट (किशनगंज) पर भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबला है।

जब रावणदहन में नहीं पहुंचे भाजपा नेता
बिहार मे एनडीए के सबसे बड़े घटक जदयू और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं होने की अटकल को पटना गांधी मैदान में रावण-दहन कार्यक्रम से एक बार फिर बल मिला। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बगल की उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की कुर्सी खाली पड़ी रही। यहां तक कि भाजपा के मंत्री और पटना जिला या राज्य के वरिष्ठ भाजपा नेता भी मंच से अनुपस्थित थे। कुछ दिनों से दोनों (भाजपा-जदयू) ओर से अल्फाजी तकरार जारी है। पटना में अतिवृष्टि से हुए जलजमाव पर भाजपा के केेंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बयान दिया कि बाढ़ पर राज्य प्रशासन के गलत प्रबंधन के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। राज्य में सितम्बर में चार दिनों की भारी बारिश के कारण 97 लोगों की मौत हुई और पटना सहित 15 जिलों के 1410 गांवों की 20.76 लाख आबादी प्रभावित हुई। इसके बाद जदयू ने भाजपा से सफाई मांगी। जदयू महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन वर्मा ने कहा कि गिरिराज सिंह का समय-समय पर नतीश कुमार और सरकार के खिलाफ बोलना उनकी निजी कुंठा है या वह पार्टी का विचार रख रहे हैं?
बिखरा हुआ महागठबंधन
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 39 पर जीत हासिल कर शानदार सफलता हासिल की। कांग्रेस सहित पांच दलों के महागठबंधन को करारी शिकस्त मिली और महागठबंधन का सबसे बड़े दल राजद 19 सीटों पर लड़कर एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सका। इस नतीजे से भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है। वह मान रही है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे स्पष्ट बहुमत मिल सकता है। मगर राज्य में नीतीश कुमार का बड़ा कद और गठबंधन की शर्त होने से वह किसी भाजपा नेता को चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरा के रूप में पेश नहींकर सकती, जब तक की जदयू-भाजपा अलग-अलग न हो जाएं। दूसरी ओर, भाजपा को हराने के लिए बना पांच दलों का महागठबंधन बिखरा हुआ है, क्योंकि उपचुनाव में सभी दल अलग-अलग मैदान में हैं।
अब स्पष्ट हो जाएगा राजनीतिक परिदृश्य
बिहार का मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह 24 अक्टूबर को स्पष्ट हो जाएगा, जब पांच विधानसभा सीटों नाथनगर, बेलहर, सिमरी बख्तियारपुर, दरौंधा, किशनगंज और संसदीय सीट समस्तीपुर के चुनाव परिणाम सामने होंगे। इन विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों के सांसद बन जाने और समस्तीपुर मेें लोजपा के संस्थापक अध्यक्ष रामविलास पासवान के छोटे भाई सांसद रामचंद्र पासवान के निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव (2015) में इन सभी सीटों पर महागठबंधन का कब्जा था। तब नीतीश कुमार की पार्टी जदयू महागठबंधन में थी और चार विधानसभा सीटों पर उसके उम्मीदवार विजयी हुए थे। किशनगंज सीट पर महागठबंधन के दूसरे घटक कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई थी। नीतीश कुुमार ने 2017 में महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली।
कई महीनों से भाजपा और जदयू में जारी वाक्युद्ध
कई महीनों से भाजपा और जदयू में जारी वाक्युद्ध के बीच केेंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री रामविलास पासवान ने पिछले महीने पटना में कहा था कि बिहार में एनडीए के तीनों घटक दलों जदयू, भाजपा, लोजपा के बीच कोई विवाद नहीं है और भाजपा के किसी बड़े नेता ने नेतृत्व परिवर्तन की बात नहीं कही है तो किसी अनुमान को हवा देने की जरूरत नहीं है। बिहार के वरिष्ठ भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी 11 सितम्बर को ट्वीट कर कहा था कि नीतीश कुमार बिहार एनडीए के कैप्टन हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कैप्टन बने रहेंगे। मगर एक महीने बाद ही स्थिति बदलती दिखने लगी।
अमित शाह ने किया विवाद खत्म करने का प्रयास
गांधी मैदान रावण दहन कार्यक्रम में नहीं भाग लेने को लेकर पटना के भाजपा सांसद रामकृपाल यादव ने कहा कि वह जलजमाव के क्षेत्र में जूझ रहे थे। पटना साहिब के सांसद केेंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जलजमाव की परेशानी के मद्देनजर दशहरा मनाया ही नहीं। सुशील कुमार मोदी पटना से बाहर थे। कुम्हार के विधायक अरुण कुमार, दीघा के विधायक डा. संजीव चौरसिया, बांकीपुर के विधायक नितिन नवीन और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय अग्रवाल अपने-अपने कारणों से शामिल नहीं हुए। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा केेंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को बिहार में एनडीए सरकार की सेहत पर असर डालने वाली बयानबाजी से परहेज करने की सलाह देने के बाद 8 अक्टूबर से गिरिराज सिंह का ट्वीट बंद हो गया। मगर भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रह्म्ण्यम स्वामी ने फिर बयान दे दिया कि बिहार में भाजपा अब बड़े भाई की भूमिका में है, जदयू को छोटे भाई की भूमिका में रहना पड़ेगा। हालांकि अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी नीतीश कुमार को ही एनडीए का नेता मानने की बात कह विवाद और संशय खत्म करने का प्रयास किया है।
नई छवि के निर्माण मेंं जुटे नीतीश
दूसरी तरफ, जदयू को क्षेत्रीय से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने के अभियान में जुटे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गैर भाजपाई मतदाताओं को लुभाने की कवायद करते हुए अपनी नई छवि निर्माण में जुटे हुए हैं। वह महिलाओं के सर्वजातीय समर्थन विस्तार के प्रयास में हैं। शराब बंदी, दहेज विरोध जैसे महिला-हित के कानून के बाद ०४ अक्टूबर को राज्य सरकार के कैबिनेट से मंजूर हुई भूमि जमाबंदी कानून को इसी दृष्टि से देखा जा रहा है। अब बिहार में जमीन के बंटवारे के लिए भाइयों को विवाहित-अविवाहित बहनों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना होगा, चाहें बहनें जमीन-संपत्ति में हिस्सा लें या न लें। बेशक शराबबंदी अभियान और महिलाओं से संबंधित अन्य योजनाओं से पिछड़े वर्ग की महिलाएं बतौर मतदाता नीतीश कुमार के साथ हुई हैं। ठीक वैसे ही जैसे उज्ज्वला रसोई गैस योजना के कारण वंचित वर्ग की महिलाएं भाजपा के साथ खड़ी दिखती दिखती हैं।
बिखरे दिख रहे महागठबंधन के दल
उधर, महागठबंधन के पांचों दल अलग-अलग बिखरे दिख रहे हैं। राजद ने साथी दलों से बातचीत किए बिना चार विधानसभा सीटों (नाथनगर, सिमरी बख्तियारपुर, बेलहर और दारौंदा) पर उम्मीदवार घोषित कर दिया और एक सीट (किशनगंज) कांग्रेस के लिए छोड़ दी। एकतरफा फैसले से नाराज हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने नाथनगर सीट पर अपना प्रत्याशी उतार दिया और महागठबंधन में शामिल पूर्व बालीवुड सेट डिजाइनर और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने सिमरी बख्तियारपुर से अपना प्रत्याशी उतारा। जबकि कांग्रेस ने पांच सीटों पर अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। समस्तीपुर लोकसभा सीट भी कांग्रेस ही लड़ रही है। महागठबंधन में शामिल पांचवें दल पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा का पत्ता नहीं खुला।
हम दे चुका है अलग होने की चेतावनी
राजद की मदद से बेटे को विधान परिषद में भेज चुके हम के संस्थापक अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने चेतावनी दी है कि वह महागठबंधन से अलग हो सकते हैं। इससे पहले उन्होंने कहा था कि अगर 2020 के चुनाव में महागठबंधन सरकार बनाने की स्थिति में आता है तो वह मुख्यमंत्री के दावेदार होंगे। तब राजद ने लालू यादव के छोटे बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के चेहरा के रूप में पेश कर दिया। इसके बाद मांझी ने जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव से मुलाकात की, जिन्हें लालू यादव ने राजद से निष्कासित किया था। पप्पू यादव ने रालोसपा से अलग हुए पूर्व सांसद अरुण कुमार, नरेन्द्र सिंह और रेणु कुशवाहा के साथ तीसरा मोर्चा (बिहार नवनिर्माण मोर्चा) बनाया है। ये नेता भाजपा, जदयू, राजद, रालोसपा से चोट खाए हुए हैं। हालांकि हर चुनाव में इनकी प्रतिबद्धता बदलती रही है। जबकि भाजपा के विरोध में होना कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण की अपरिहार्यता है।

(बाक्स-1) पोस्टर-वार शुरू
बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पोस्टर-वार शुरू हो चुका है। जदयू ने एक पोस्टर जारी किया है, जिसका नारा है- क्यों करे विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार! जदूय के पोस्टर परअध्यक्ष वशिष्ठनारायण सिंह और सांसद आरसीपी सिंह की भी तस्वीर है। इसके जवाब में राजद ने भी पोस्टर तैयार किया है- क्यों न करें विचार, बिहार जो है बीमार! राजद की ओर से एक ट्वीट में लिखा गया- बिहार ने कर लिया विचार नहीं चाहिए अपने मुंह मियां मिट्ठू कुमार। राजद बिहार की कानून-व्यवस्था को लेकर लगातार नीतीश सरकार पर निशाना साधती रही है। पिछले महीने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने ट्वीट किया था- बिहार में राक्षसराज है। कभी लालू-राबड़ी राज को जंगलराज बताया गया था।
(बाक्स-2) रिश्ते-नातेदार ही प्रत्याशी
लोजपा के दिवंगत सांसद रामचंद्र पासवान के पुत्र प्रिंंस राज समस्तीपुर संसदीय सीट से उम्मीदवार हैं। लोजपा का परिवारवाद एनडीए के सभी दलों को स्वीकार्य है। जदयू के चार विधायक सांसद बने हैं। दो के परिजनों को ही टिकट दिया गया है। बेलहर में गिरिधारी यादव के भाई लालधारी यादव जदयू उम्मीदवार हैं और पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। नाथनगर और सिमरी बख्तियारपुर में पारिवारिक विरासत नहीं है। सिमरी के विधायक दिनेशचंद्र यादव के सांसद बन जाने के बाद पूर्व विधायक अरुण यादव को जदयू ने मौका दिया है। नाथनगर में जदयू ने पुराने कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाया है। दरौंदा से पत्नी के सांसद बन जाने के बाद अजय सिंह पहली बार विधानसभा में जाने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। यहां से इनकी मां जगमातो देवी और उनके निधन के बाद पत्नी कविता सिंह विधायक बनीं। सीटों की संख्या कम होने से कांग्रेस के पास एक ही परिजन को टिकट देने का मौका मिला। किशनगंज से सांसद चुने गए डा. जावेद की मां सइदा बानो विधानसभा उपचुनाव लड़ रही हैं। डा. जावेद के पिता मो. हुसैन आजाद विधायक रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो मौजूदा राजनीति का यही अक्स उभरता है कि वोट देने के लिए जनता, झंडा ढोने के लिए कार्यकर्ता और टिकट लेने के लिए परिवार। और यह भी कि, सांसद-विधायक पिता की मौत के बाद पुत्र या विधवा का उपचुनाव में टिकट हासिल करते है और मतदाता उसे स्वीकार करते हैं।

(देहरादून, दिल्ली कार्यालय से प्रकाशित समय-सत्ता-संघर्ष की बहुरंगी
पाक्षिक पत्रिका चाणक्य मंत्र  के
16-31 अक्टूबर अंक में प्रकाशित)

पटना से कृष्ण किसलय

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