चुनावी हास्य यात्रा : ईवीएम का धक्का!
शाम का समय था! कुर्सी पर बैठा आलोक किसी की राह देख रहा था, ऐसे उसके चेहरे से लग रहा था। बैठें बैठें कभी वह टीवी की ओर देखता था, तो दूसरे ही पल हाथ में रखे मोबाइल को देख रहा था। थोड़ी सी आहट लगते ही, बाज़ू बैठ़े पिताजी की ओर चुप के से नजर डाल रहा था।
अशोक की बेचैनी महसूस कर पिताजी ने पूछा, “क्या हुआ? परेशान दिख रहे हो? कोई आने वाला है क्या?”
“नहीं। कोई खास बात नहीं है। हां। लेकिन कोई मिलने आ सकता है।”
“कौन है?”
“वे… वे… चुनाव है ना, तो…”
“चुनाव? लेकिन कल तो मतदान है, प्रचार भी समाप्त हुआ है। फिर यह लोग क्यों आ रहे हैं?”
“पिताजी, सच्चा प्रचार तो अब शुरू हुआ है।”
“मतलब? मतों कि खरीदारी?”
“पिताजी, ऐसी बात नहीं है…”
“फिर लोग तुम्हें मिलने क्यों आ रहे हैं? हमने तो अपना उम्मीदवार तय किया है, जिसे हमें मतदान करना है। आलोक, सही -सही बताओ, तुम कहीं वोटों कि बिक्री करने कि तो नहीं सोच रहे हो।”
“नहीं। ऐसी बात नहीं है, लेकिन…”
“शायद बेच रहे हों। आलोक, यह ठीक नहीं है। हमने कुछ तत्व लेकर यहां तक का सफर किया है…।”
“पिताजी, आपने तत्व, सच्चाई से जीवन बिताया है, क्या मिला आपको? पल-पल समय बदल रहा है। दरवाज़ें पर गंगा बार-बार नहीं आती। जब आती है तो हाथ धो लेना ही बेहतर होता है…” आलोक
कह रहा था, तभी दरवाजे कि घंटी बजी। पिताजी की ओर देखते हुए, आलोक दरवाजे कि ओर जा रहा था, तभी पिताजी कुछ बड़बड़ाते हुए, अंदर गए।
आलोक ने दरवाजा खोला। वहां खड़े लोगों को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। वे सभी लोग अंदर आए। धीमी आवाज में उन सभी ने कुछ बातें की। एक पैकेट आलोक को थमाकर वे जल्दी से निकल गए। जैसे ही, आलोक पीछे पलटा, वहां खड़े पिताजी को देखकर उसके पॉंव थरथराने लगे….
दूसरे दिन सुबह आलोक मतदान के लिए जाने कि तैयारी करने लगा, पिताजी के साथ-साथ मॉं ने भी मतदान करने से साफ़ मना कर दिया। आलोक पत्नी के साथ मतदान केंद्र पर पहुंच गया। उसने देखा वहां का वातावरण कुछ अलग है। लोग गुटों-गुटों में चर्चा कर रहे थे। मतदानकर्मियों कि संख्या बहुत कम थी। आलोक पत्नी के साथ अंदर गया। मतदान पूर्व सारी कार्यवाही पूरी करने बाद तर्जनी पर स्याही लगा कर, मतदान कक्ष में पहूंच कर उसने ईवीएम को बड़ी बारीकी से देखा। मनपसंद बटन देखते ही उसने बड़े हर्ष के साथ वह बटन दबाते ही आवाज आई,
“नमस्कार। मैं ईवीएम। मैंने एक सॉफ्टवेयर विकसित किया है, इस वज़ह से जब आपने बटन दबाया, तो मुझे एक बात का पता चला कि, आपने आपके मत कि किमत वसुली है। इसलिए आपका मतदान रद्द किया जा रहा है। साथ ही आपकी करतूत का चुनाव आयोग को भी पता चला है। आगे आयोग और आप… जय लोकशाही!”
“न… नहीं।…” चिल्ला रहें आलोक उसकी पत्नी ने जगाते हुए पूछा,
“क्या हुआ? बूरा ख्वाब देखा क्या!”
पसीना-पसीना हुए आलोक ने घबराकर पत्नी की ओर देखते हुए कहा,
“बूरा तो था, लेकिन ऑंखें खोलने वाला था।”
प्रस्तुति : नागेश शेवालकर, पुणे (महाराष्ट्र) (9423139071)
आदरणीय महोदय,
चुनावी हास्य यात्रा लेख प्रकाशित हुआ है।
बहुत अच्छी तरीके से प्रकाशित किया है।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद!