स्मिता गुप्ता की कविता : गुलमोहर


स्मिता गुप्ता की कविता : गुलमोहर

एक दिन हमने प्रेम के प्रतीक
एक गुलमोहर का बिरवा रोपा
ज्यों- ज्यों बढ़ा बिरवा
त्यों- त्यों परवान चढ़ा हमारा प्रेम
ज्यों- ज्यों खिला गुलमोहर
त्यों- त्यों खिली हमारी भी प्रीत
एक दिन मैंने गुलमोहर से कहा
तुमने देखा
तुम्हारे तने के तले
एक मैं और एक वो
दोनों मिलकर बन जाते हैं शून्य
बांहों से बांहें गहकर
आंखों से आंखें चूमकर
कितनी बातें करते हैं हम प्रेमी युगल

मौन साधकर
सच कहना गुलमोहर
हमें प्रेम में लीन देखकर
एक- दूजे में विलीन देखकर
मन ही मन तुम क्या सोचते हो ?
गुलमोहर हँसा
फिर बोला-
सूर्य के ताप से
बैरी जग की आंख से
तुम प्रेमियों को बचाने के लिए
अपनी पत्तियों के झुरमुट में
तुम दोनों को छुपाता हूं
जीवन सार्थक बनाता हूं

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