

पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। कहते हैं लोग कि ग़ज़लों की बाढ़ सी आ गई है। इस बात को मैं स्वीकार नहीं करता, क्योंकि हिंदी ग़ज़ल के नाम पर जो कुछ आज परोसा जा रहा है, वह ग़ज़ल में अपनी बात कहने का प्रयास भर है, ग़ज़ल नहीं।
ग़ज़ल एक बहुत ही नाज़ुक विधा है। छंदमुक्त कविता की तरह यह आज़ाद नहीं है और न ही सपाटबयानी कविता की तरह कविता के सारे हिसाब किताब से दूर ही है। ग़ज़ल का अपना शास्त्रीय गणित होता है और उस गणित में बहुत कम लोग ही सही जोड़ घटाव कर पाते हैं। बावजूद इसके हिंदी, उर्दू के शायरों की फ़ेहरिस्त में आज भी कई ऐसे ग़ज़लकार हैं जो ग़ज़ल में उसके व्याकरण को साधते हुए, अपने विचार और कहन को नए प्रयोगों के साथ बखूबी प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे ही शायरों में एक बहुचर्चित नाम है विज्ञान व्रत का, जो न सिर्फ अपनी गजलों के माध्यम से पहचाने जाते हैं, बल्कि एक विश्व विख्यात कलाकार के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है, जिनकी बनाई गई पेंटिंग देश विदेश में प्रदर्शित हुई है और एक-एक कलाकृति लाखों में बिकी भी है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में, गूगल मीट के माध्यम से, यूट्यूब के चैनल पर, हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। विज्ञान व्रत की गजलों पर डायरी पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि -“बड़े बहर की तो कई गजलों को आपने पढ़ा सुना देखा होगा। लेकिन गजल के छोटे-छोटे बहर यानी छोटे आकार में कितना अधिक प्रभाव डाल सकती है, यह विज्ञान व्रत की गजलों को पढ़ सुनकर महसूस किया जा सकता है। छोटे बहर में अधिक प्रभावकारी गजल कहने वाले बहुत कम शायर हमारी हिंदी गज़ल की महफिल में है। शायद इसलिए हिंदी ग़ज़ल की दुनिया में, विज्ञान व्रत सबसे अलग और विशिष्ट पहचान रखते हैं। साँच को आंच क्या? उनके 2/4 शेर देख लीजिए, कितनी कलात्मक ढंग से वे बड़ी-बड़ी बातें इन चंद शब्दों में कह जाते हैं। –
“वो भी एक ज़माना था ख़ुद ही वो मैख़ानाथा। मिलना एक बहाना था उसको शान दिखाना था”।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ शायर डा. मंजू सक्सेना कहा कि विज्ञान व्रत जी की ग़ज़लें छोटी बहर में बड़ी गहराई लिए हुए हैं। सरल हिंदी भाषा में लिखी हुई ग़ज़ल जैसे ख़ुद से ही संवाद करती प्रतीत होती हैं। विज्ञान व्रत जी की ग़ज़लें स्वच्छ पानी की तरह बहती हैं जो दूर से देखने में रंगहीन लगता है पर पास से देखने पर उसमें हर रंग नज़र आता है। जीवन के हर अनुभव का निचोड़ हैं उनकी ग़ज़लों में, जिसमें हर विषय सम्मिलित है।
अपने पटल पर हर बार एक वरिष्ठ साहित्यकार को मुख्य अतिथि के रूप में पेश कर सिद्धेश्वर जी नवोदित साहित्यकारों के लिए बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं उन्हे साधुवाद है। मंजू सक्सेना ने अपनी दो गजलों का पाठ किया –
“आज है अपना ठिकाना, क्या ख़बर कल हो न हो जिस जगह है आबोदाना, क्या ख़बर कल हो न हो। “
मुख्य अतिथि विज्ञान व्रत में एकल पाठ में अपनी दो दर्जन गजलों का पाठ किया। अपने एकल पाठ में विख्यात गजलकार विज्ञान व्रत ने
वो भी एक ज़माना था, ख़ुद ही वो मैख़ाना था, मिलना एक बहाना था, उसको शान दिखाना था।
“मैं जब ख़ुद को समझा और, मुझमें कोई निकला, यानी एक तजुर्बा, और फिर खाया इक धोखा”
“आप कब किसके नहीं हैं,हम पता रखते नहीं हैं, जो तसव्वुर था हमारा, आप तो वैसे नहीं हैं, उसने ख़ुद को पाने तक , छाने हैं तहख़ाने तक , बस किरदार बचाने तक , ज़िन्दा है मर जाने तक”
“बतलाऊँ क्या-क्या न हुआ, मैं खु़द भी अपना न हुआ, अब तक तो बिक जाता ही मैं, लेकिन सस्ता न हुआ”
“छाँव छिपी तहख़ानों में, धूप नहीं दालानों में ,
खोया शहर सयानों में, हम थे जब दीवानों में”
“जब तक बेचेहरों में था, तब तक वो ख़बरों में था, आज ज़हन पर हावी है , कल भूले-बिसरों में था”
हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन में ऑनलाइन काव्य पाठ करने वाले कवियों में विज्ञान व्रत, डा.मंजू सक्सेना, एकलव्य केसरी, ऋचा वर्मा, राज प्रिया रानी, सिद्धेश्वर, मंजू गुप्ता, हजारी सिंह, हिंदू उपाध्याय, पदमज़ा शर्मा, निर्मल दे, अनीता मिश्रा सिद्धि, श्रीकांत, मीना कुमारी परिहार, कुमारी नवनीत आदि थे ।
प्रस्तुति : बीना गुप्ता (जन संपर्क पदाधिकारी) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना ( बिहार) मोबाइल : 9234760365 ईमेल : beenasidhesh@gmail.com