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काफी जुनूनी है पुरातत्व विज्ञान का पेशा

पुरातत्व विज्ञान में ऐतिहासिक मानव बसाव या समाज का अध्ययन किया जाता है। ऐतिहासिक जगहों के सर्वेक्षण, खुदाई से निकले अवशेष जैसे बरतन, हथियार, गहनें, रोजमर्रा की चीजें, पेड़-पौधे, जानवर, मनुष्यों के अवशेष, स्थापत्य कला आदि से ऐतिहासिक मानव संस्कृति को जाना जाता है। पुरातत्ववेत्ता बनने के लिए स्नातक डिग्री का होना आवश्यक है। यह किसी भी विषय में हो सकता है, परन्तु इतिहास, समाजशास्त्र या मानव विज्ञान में स्नातक की डिग्री पुरातत्व विज्ञान को समझने में सहायक होते हैं।
ऐसे व्यक्ति जिन्हें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक खोजों से आत्मसंतुष्टि मिलती है। पुरातत्व पेशा उन्हीं के लिए बना है। यह पेशा काफी जुनूनी है क्योंकि इसमें पुरातत्वविदों को कई घंटों से लेकर दिनों तक उत्खनन क्षेत्रों में कैम्प में रहना होता है। प्रयोगशाला में समय बिताना पड़ता है। इसलिए एक पुरातत्वविद का धैर्यवान होना आवश्यक होता है, ताकि महीनों-वर्षों तक चलने वाले प्रोजेक्ट को पूरा किया जा सके। इतिहास की विस्तृत जानकारी, ज्यादा से ज्यादा पढऩे की आदत, अच्छी लेखन क्षमता, विश्लेषणात्मक क्षमता सफल पुरातत्वविद बनने के आवश्यक गुण हैं।


महाराज जयाजीराव विवि, बड़ौदा में भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विज्ञान में तीन वर्षीय स्नातक डिग्री की व्यवस्था है। बनारस हिंदू विवि में इससे जुड़े दो स्नातक डिग्री कोर्स चलाए जाते हैं। प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विज्ञान का तीन वर्षीय वोकेशनल प्रोग्राम आदि। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देख-रेख में चल रहे पुरातत्व विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली पुरातत्व विज्ञान में दो वर्षों का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स करवाती है। इस कोर्स के लिए निम्नतम योग्यता प्राचीन या मध्यकालीन भारतीय इतिहास, मानव विज्ञान या पुरातत्व। पाठ्यक्रम में पुरातत्व के सिद्धांत और पद्धति, पुरातत्व में विज्ञान का प्रयोग, इतिहास लेखन के पहले का इतिहास, ऐतिहासिक पुरातत्व, कला और मूर्ति विज्ञान, स्थापत्य कला, पुरालेख विधा और मुद्राशास्त्र, संग्रहालय विज्ञान, स्मारकीय संरचना की संरक्षा, स्मारकों और पुरातात्विक वस्तुओं की रासायनिक संरक्षा, पुरातत्व विषयक कानून आदि विषयों की पढ़ाई होती है। आंध्र विवि कॉलेज ऑफ आट्र्स एंड कॉमर्स (विशाखापट्टनम), एजम्पशन कॉलेज (चंगनाशेरी, केरल), अवधेशप्रताप सिंह विवि (रीवा, मध्य प्रदेश), छत्रपति साहूजी महाराज विवि (कानपुर, उत्तर प्रदेश) आदि अग्रणी संस्थान हैं।
प्रायोगिक परीक्षण : प्रायोगिक परीक्षण में सर्वेक्षण, चित्रांकन फोटोग्राफी, प्रतिरूपण, अन्वेषण-उत्खनन, रासायनिक संरक्षण, कम्प्यूटर प्रयोग, मौखिक परीक्षा, सामान्य टिप्पणी, ट्यूटोरियल और शोध विषय आादि आते हैं। स्नातकोत्तर डिग्री के बाद विद्यार्थी आगे शोध स्तर की पढ़ाई कर सकते हैं। वे डॉक्टरेट की डिग्री या विवि में प्राध्यापक का पद पा सकते हैं। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योग्यता शर्तों पर खरा उतरना होता है। स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद विद्यार्थी अपने लिए उपयुक्त सेवा क्षेत्र का चुनाव कर सकते हैं। उनके लिए शिक्षण-अध्यापन या फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में राज्य या केंद्र के स्तर पर पुरातात्विद की नौकरी के रास्ते खुले होते हैं।
अध्ययन पर खर्च : इसकी पढ़ाई में ज्यादा खर्च नहीं आता है। स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई में अन्य कला या समाजशास्त्र विषयों के बराबर ही खर्च आता है। जो विद्यार्थी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा चलाए जा रहे दो वर्षीय पुरातत्व विज्ञान के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा प्रोग्राम में नामांकन पाते हैं, उन्हें 1500 रुपए की छात्रवृत्ति दी जाती है। पुरातत्व के स्नातकोत्तर विद्यार्थी विवि अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा सेट या जूनियर रिसर्च फेलो-लेक्चररशिप की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर डॉक्टरेट की पढ़ाई के योग्य हो जाते हैं। इसमें शोधार्थियों को 8 हजार रुपए मासिक की वित्तीय सहायता दी जाती है।
रोजगार के अवसर : राज्य और केंद्र दोनों ही स्तर पर पुरातत्वविदों के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नौकरी देता है। संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा विभिन्न पदों के लिए की जाने वाली आयोजित परीक्षा का आवेदन योग्यतापूर्ण विद्यार्थी कर सकते हैं। पुरातत्व में स्नातकोत्तर विद्यार्थी विभिन्न विवि में व्याख्याता पद का आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें विवि अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा या जूनियर रिसर्च फेलो उत्तीर्ण करना होता है। जूनियर रिसर्च फेलो की परीक्षा उत्तीर्ण किए विद्यार्थी को अनुसंधान वृत्ति मिलने के साथ डॉक्टरेट की डिग्री के लिए पढऩे का अवसर भी होता है। पुरातत्वविदों के लिए सरकारी या निजी संग्रहालयों में कलाकृतियों के रख-रखाव व प्रबंधन के स्तर पर भी नौकरी के अवसर होते हैं।
वेतनमान : पुरातत्व के विद्यार्थी अन्य योग्यताओं के साथ जूनियर रिसर्च क्षेत्रों की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही कमा सकते हैं। एक जूनियर रिसर्च फेलो को दो वर्ष तक प्रति माह 8 हजार रुपए मिलते हैं। सीनियर रिसर्च फेलो बन जाने पर मेहनताना भी बढ़ता है। व्याख्याता का वेतन लगभग 20 हजार रुपए है, जबकि प्राध्यापक का इससे भी ज्यादा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुरातत्वविद का मासिक वेतन लगभग 10000 से 15 हजार रुपए के बीच होता है। ऐसे पुरातत्वविदों जिन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर ली है उन्हें बेहतर पद मिलने की उम्मीद रहती है।
कुछ प्रमुख संस्थान : जहां नौकरी मिल सकती है। 1. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, 2. भारतीय ऐतिहासिक शोध परिषद, 3. राष्ट्रीय संग्रहालय, 4. विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय, 5. सरकारी एवं निजी संग्राहलय, 6. सांस्कृतिक गैलरी।

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