चांद पर गाड़ी चलाने की चुनौती

नासा रोवर चैलेंज के लिए चुने गए भारत के भी विद्यार्थी, भविष्य में पृथ्वी की ऊर्जा जरूरत को चांद ही करेगा पूरा, अब भारत की है चंद्रयान-2 योजना,    
जब पूरी हुई आकाश में सबसे खूबसूरत दिखने वाली चीज को छूकर देखने की आदमी की हजारों सालों की हसरत, और बदल गई चंद्रमुखी की उपमा व चांद का मुंह हो गया टेढ़ा
-कृष्ण किसलय-
अमेरिका में पांचवें नासा ह्यूमन एक्सप्लोरेशन रोवर चैलेंज में 23 देशों के विद्यार्थी इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहे हैं, जिसके लिए भारत के विद्यार्थी दल का भी चयन किया गया है। यह प्रतिष्ठित प्रतियोगिता हर साल होती है। इस विषय के तहत विद्याथियों को इस पर विषय पर कार्य और सोचना होता है कि चंद्रमा की सतह पर छोटी गाड़ी कैसे काम करेगी और गाड़ी कैसी होगी? इस प्रतिस्पर्धा में विद्यार्थियों को उस दूसरी धरती की सतह पर चलने वाला वाहन विकसित करने की चुनौतियों का सामना करना है, जिस धरती पर हवा-पानी नहीं है।


रोवर किया है तैयार
नासा ह्यूमन एक्सप्लोरेशन रोवर चैलेंज के लिए तेलंगाना के वारंगल स्थित निजी एसआर इंजीनियरिंग कालेज के पांच विद्यार्थियों को भी चुना गया है, जो अप्रैल 2018 में अमेरिका जाएंगे।

विद्यार्थियों के इस दल ने चंद्रमा पर चलने वाली छोटी गाड़ी (रोवर) का माडल भी तैयार किया है। इस विद्यार्थी दल में पी. पाल विनीत, प्रकाश रेबेनिया, पी. श्रवण राव, आर. दिलीप रेड्डी और वी. स्नेहा शामिल हैं, जिसका नेतृत्व शिक्षक मनोज चौधरी करेेंगे।

दो वजहों से अंतरिक्ष विज्ञान के लिए शोध का विषय
हालांकि चांद पर पृथ्वी के आदमी के उतरने के 48 साल बाद यह अच्छी तरह जाना-समझा जा चुका है कि चंद्रमा की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ नहींहै, इसलिए वहां किसी प्रकार का जीवन नहींहै और चंद्रमा आदमी के रहने लायक इसलिए नहीं है कि वहां आक्सीजन नहींहै। फिर भी चंद्रमा दो कारणों से अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में शोध का विषय बना हुआ है। पहला कि भविष्य में पृथ्वी के ऊर्जा संसाधन खत्म हो जाएंगे तो पृथ्वी की ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए चांद के खनिज काी दोहन अनिवार्य हो जाएगा। दूसरा यह कि निकट भविष्य में ही अंतरिक्ष पर्यटन का विकास होगा और तब मंगल ग्रह के लिए भी आदमी की लगातार यात्राएं संभव होगी। चंद्रमा का गुरुत्व बल कम होने के कारण उसका उपयोग एक बेहतर अंतरिक्ष स्टेशन के रूप में हो सकेगा।

Italian astronomer and physicist, Galileo Galilei (1564 – 1642) using a telescope, circa 1620. (Photo by Hulton Archive/Getty Images)

चंद्रमुखी की उपमा बदल गई, चांद का मुंह हो गया टेढ़ा
आदमी ने 408 साल पहले 1609 ईस्वी में पहली बार आकाश में सबसे खूबसूरत व तश्तरी की तरह चिकना गोल दिखने वाले चांद पर पहली बार खगोल वैज्ञानिक गैलीलियो की दूरबीन के जरिये वहां की उबड़-खाबड़ जमीन को देखा था। और तब, हजारों सालों से मानव समाज में चंद्रमुखी होने की उपमा चांद का मुहं टेढ़ा है जैसे मुहावरे में बदल गई। उस घटना के 363 साल बाद 20 जुलाई 1969 कोï आदमी चांद की जमीन पर उतरने और हजारों सालों से सभ्यताओं के लोक-समाज में उसे छू कर देखने की अपनी हसरत पूरा कर सका। सचुमच, समूची मानव सभ्यता के लिए वह (20 जुलाई 1969) सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दिन था, जब अपोलो (अंतरिक्ष यान) से बाहर निकल कर अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील ्आर्म स्ट्रांग के पांव चंद्रमा पर पड़े थे।
पहली बार भारत के चंद्रयान ने ही खोजा पानी
भारत ने भी चंद्रमा पर अपना अंतरिक्ष यान (चंद्रयान प्रथम) 22 अक्टूबर 2009 को इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के अपने अंतरिक्ष केेंद्र से भेजा था, जो 23 दिन की यात्रा के बाद चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हुआ था और संबंधित सूचनाएं इसरो के नियंत्रण केेंद्र को भेजने लगा था। भारत के चंद्रयान-प्रथम को ही इस बात का श्रेय है कि उसने चांद के ध्रुव पर पानी (बर्फ के रूप में) होने की पुष्टि पहली बार की थी।


भारत की चंद्रयान-2 की   योजना                               भारत की चंद्रयान-2 को 2018 में प्रक्षेपण करने की योजना  है। चंद्रयान-2 भारत का चंद्रयान-1 के बाद दूसरा चंद्र अन्वेषण अभियान है, जिसे इसरो ने विकसित किया है।  इस अभियान में भारत में निर्मित एक ऑर्बिटर (चन्द्रयान), एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल होंगे। इस सब का विकास इसरो द्वारा किया जायेगा। इसरो के अनुसार यह अभियान विभिन्न नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ ‘नए’ प्रयोगों को भी करेगा। पहिएदार रोवर चांद की सतह पर चलेगा तथा ऑन-साइट विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा। आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा। मायलास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम चंद्रयान-2 पर काम कर रही है।

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