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आलेख/समीक्षादेश

झूठ के पांव नहीं होते

गुजरात विधानसभा के चुनाव  9 तथा 14 दिसम्बर 2017 को दो चरणों में सम्पन्न होंगे। पहले चरण का धुआंधार चुनावी प्रचार अभियान  7 दिसम्बर की शाम थम गया 9 दिसंबर को होने वाले पहले चरण की वोटिंग से पहले वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के सारे हथकंडे अपनाए चुनाव के दौरान पीएम मोदी से रोज एक सवाल पूछने की कड़ी में कांग्रेस के होने वाले अध्यक्ष राहुल गांधी ने 8 दिसम्बर को 10 वां सवाल किया। उन्होंने आदिवासियों से जमीन छीनने का आरोप लगाया, स्कूल-अस्पताल न चलने पर भी सवाल किया। मणिशंकर अय्यर का मोदी पर दिया गया बयान और उनका कांग्रेस से निष्कासन गुजरात विधानसभा चुनाव के अंतिम दौर में मुद्दा बन चुका है। यह सही है कि गुजरात में भाजपा के विकास के मुद्दे की हवा निकल चुकी है। इसका संकेत चुनाव प्रचार के दौरान मिला है। कहावत है कि झूठ के पांव नहीं होते। भाजाप और संघ परिवार ने झूठ का जो कारोबार फैलाया, उसका सच अब लोगों के सामने एक हफ्ते बाद होगा। 22 साल से गुजरात में भजपा सत्ता पर कुंडली मार कर बैठी है। गुजरात में चुनाव परिणाम क्या आता है? यह एक हफ्ते बाद सामने होगा। पढ़ें लेखक-पत्रकार मनोजकुमार झा का राजनीतिक विश्लेषण

मोदी अपने को बताते रहे गुजरात का बेटा
गुजरात चुनाव में भाजपा ने प्रचार में सारी ताकत झोंक दी। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की रैलियों में भीड़ कम जुटी। राहुल गांधी और दूसरे विपक्षी नेताओं की सभाओं में लोग ज्यादा जुटे। प्रधानमंत्री मोदी मतदाताओं को लुभाने के लिए क्षेत्रीयतावाद को हवा देते रहे और गुजराती बनाम गैर-गुजराती का मुद्दा खड़ा करते रहे। वे खुद को गुजरात का बेटा बताते रहे, अपने आपको गुजराती पहचान के साथ पेश कर रहे हैं और सभाओं में गुजराती में भाषण देते रहे हैं। हालांकि 2014 में संसद का चुनाव वाराणसी से लड़ते हुए कहा था कि उन्हें मां गंगा ने बुलाया है।
गुजारत चुनाव में मोदी ने तमाम केंद्रीय मंत्रियों के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को भी कई बार बुलाया। इसका साफ मकसद हिंदूवादी छवि यानी गेरुआ बाने से मतदाताओं को प्रभावित करना ही रहा है। कई जगहों पर यह देखने में आया कि योगी की सभाओं में भीड़ नदारद रही। नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के बारे में कहा कि उन्होंने कइयों को मंदिर तक पहुंचा दिया। उल्लेखनीय है कि अपने गुजरात दौरे में राहुल गांधी ने कई मंदिरों में जाकर दर्शन किए। राहुल जब सोमनाथ मंदिर दर्शन करने गए तो मोदी ने कहा कि नेहरू सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के विरोध में थे।
हिंदू-मुसलमान के लाइन पर विभाजन की कोशिश
इसके बाद तो प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों ने राहुल गांधी की धार्मिक पहचान का सवाल भी खड़ा किया और उनके पिता फिरोज गांधी को मुसलमान तक बताने की कोशिश की गई। जबकि सभी जानते हैं कि फिरोज गांधी पारसी थे। जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा तो उन्हें वंशवादी बताने के साथ शाहजहां, औरंजगेब तक बताया गया। कोशिश यह थी कि मतदाताओं को हिंदू-मुसलमान के लाइन पर विभाजित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दिया ध्रुवीकरण का मौका
इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या राममंदिर मुद्दे की सुनवाई से मोदी और उनकी मंडली की ये उम्मीद बंधी कि इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मौका मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने डाक्युमेंट्स पूरे नहीं होने की वजह से 8 फरवरी तक सुनवाई टाल दी। सुन्नी वक्फ़ बोर्ड की तरफ से मामले की पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल ने सुनवाई 2019 के इलेक्शन तक टालने की दरख्वास्त सुप्रीम कोर्ट से की, पर कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया। सुनवाई टल जाने से इस मुद्दे पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मौका भाजपा मंडली को नहींमिली। मंदिर को लेकर जैसी राजनीति भाजपा ने की है, उसे कौन नहीं जानता है?
राममंदिर के लिए बाबरी मस्जिद का ध्वंस तो आधुनिक इतिहास की बर्बरतम घटनाओं में एक है। बाबरी मस्जिद ध्वंस के नाम पर भाजपा पिछले ढाई दशकों से राजनीति करती रही है। इस नाम पर हुए दंगों में न जाने कितने निर्दोषों की बलि चढ़ चुकी है। राहुल के मंदिर में दर्शन करने को लेकर नरेंद्र मोदी ने यह सवाल उठाया कि मंदिर-मंदिर जाने से बिजली नहीं आती, मैंने गुजरात में काम किया है। बात सही है, मगर उन्हें देखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में महंत गेरुआधारी को मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद बिजली क्यों नहीं आती? आखिर भाजपाई किस आधार पर राहुल गांधी को औरंगजेब व बाबर का वंशज बता रहे हैं?

महज उकसावे के लिए हुई बयानबाजी
भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ट्वीट कर राहुल को बाबर भक्त और अलाउद्दीन खिलजी का रिश्तेदार बताया है। उनके इस ट्वीट पर बवाल मचा। जीवीएल नरसिम्हा राव ने लिखा, अयोध्या में राम मंदिर का विरोध करने के लिए राहुल गांधी ने ओवैसिस, जिलानिस से हाथ मिलाया है। जाहिर है, इस तरह की बयानबाजी महज उकसावे के लिए की गई है और इसके माध्यम से अंतिम समय में मतदाताओं को कांग्रेस के खिलाफ भड़काने की कोशिश की गई। मतदाता बेवकूफ नहीं है। राहुल मंदिर विरोधी हों या समर्थक, इससे न तो गुजरात और न ही देश के लोगों की किसी समस्या का समाधान होने वाला है। राहुल को बाबर भक्त और खिलजी का रिश्तेदार कहे जाने से भाजपा की ही किरकिरी हुई।

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