प्रतिभा को कोई बाधा रोक नहीं सकती

प्रतिभा को कोई बाधा रोक नहीं सकती – गायक गुंजन सिंह 

हसपुरा, औरंगाबाद (बिहार) -सोनमाटी समाचार। मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाले भोजपुरी के मशहूर गायक गुंजन सिंह ने कहा कि प्रतिभा को कोई बाधा देर-सबेर मुकाम तक पहुँचने में रोक नहीं पाती। अवसर मिलने प्रतिभा व्यापक आकार ग्रहण करती है। गुंजन सिंह अपना नया संगीत कैसेट गोर बाड़ी चाँद के इंजोरिया बाड़ी के लिए शूटिंग करने यहां पहुंचे थे और इसी क्रम में हसपुरा के अलका पैलेस में उन्होंने प्रेस वार्ता की।

गुंजन सिंह ने इस सवाल कि मगही भाषी होकर भी भोजपुरी में कैसेट निकालने का क्या मकसद है, के जवाब में उन्होंने कहा कि बाजार में भोजपुरी गीत-संगीत के कैसेट का डिमांड ज्यादा है। आखिर कोई भी कलाकार लोकप्रियता के लिए ही कार्य करता है। जल्द ही मगही गीतों का भी कैसेट निकालेंगे।
यह पूछे जाने पर कि भोजपुरी गीतों के साथ अश्लीलता का कहावत चस्पा है, के उत्तर में उन्होंने कहा कि अश्लीलता होती तो लोग सार्वजनिक तौर पर नहींसुनते। सार्वजनिक सुना भी जाए और अश्लील भी हो, ऐसा नहींहो सकता।
गुंजन सिंह की दो फिल्मेंं नसीब और उड़ान अगले साल रिलीज होने वाली है, जिनके निर्माता रंजीत सिंह हैं। प्रेस वार्ता के दौरान उनके साथ नृत्यांगना माही अरोड़ा, कैमरामैन पंकज सोनी, फोटोग्राफर सुशांत सिंह आदि मौजूद थे।

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मोहन से बने महात्मा

चंपारण सत्याग्रह से ही भारतीय स्वाधीनता संग्राम के गांधी युग की नींव पड़ी, जो देश की आजादी की मंजिल पर पहुंच कर पूरी हुई, कठपुतली कथा मंचन के जरिये दिखाई गई चंपारण सत्याग्रह की झलक
बिहार के हसपुरा (औरंगबाद) के पचरुखिया में चम्पारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह का उद्घाटन उपप्रमुख अनिल आर्य और डा. विनोद सिंह, उदय कयमार व रामाकांत सिंह ने संयुक्त रूप से किया। जयपुर से आये राजस्थान समग्र सेवा संघ के कलाकारों मिथिलेश दुबे, अनिल कुमार, पंकज कुमार, शैलेश कुमार, शिवम पटेल, त्रिलोकी नाथ, सूरज कयमार ने कठपुतली कथा मंचन के माध्यम से बापू के संदेश को प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर उपस्थित लोगों को यह जानकारी दी गई कि सौ साल पहले 1917 में बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी ने महात्मा के रूप में बिहार में ही अवतार लिया था। चंपारण के किसानों की गरीबी, दयनीय स्थिति और अंग्रेज निलहों के शोषण के मद्देनजर संपन्न घर और मशहूर बैरिटर होने के बावजूद मोहनदास करमचंद गांधी ने अधो वस्त्र पहनकर ही आजीवन रहने का संकल्प लिया था। तब उनके देश-समाज से गहरे लगाव और त्याग की भावना को देखकर उन्हेें महात्मा कहा जाने लगा।

चंपारण (बिहार) में नील की खेती करने वाले किसानों के आंदोलन ने ही मोहनदास करमचंद गांधी को भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्निपथ पर ला खड़ा किया था और जिसके बाद वे महात्मा की संज्ञा से विभूषित किए गए थे। चंपारण में उनके सत्याग्रह से ही भारतीय स्वाधीनता संग्राम के गांधी युग की नींव पड़ी, जो 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की मंजिल पर पहुंच कर पूरी हुई।
वेब रिपोर्टिंग : शम्भूशरण सत्यार्थी

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