नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पुस्तक संस्कृति के निर्माण एवं विकास के लिए नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत) की नींव साठ साल पहले एक अगस्त 1957 को तत्कालीन उप राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन और शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की गरिमामयी उपस्थिति में प्रथम प्रधानमंत्राी जवाहरलाल नेहरू द्वारा रखी गई थी। आज वह ज्ञान-प्रसार के वटवृक्ष का रूप ग्रहण कर चुका है। यह अपने संक्षिप्त नाम एनबीटी से ही देश-विदेश में अधिक जाना जाने लगा है। आज एनबीटी की भारत ही नहीं, विश्व भर में श्रेष्ठ पुस्तक-प्रोन्नयन संस्था, 35 से अधिक भाषाओं के प्रकाशन संस्थान और एशिया के सबसे विशाल पुस्तक मेला (नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला) के आयोजक के रूप में अपनी विशेष पहचान है।
किफायती कीमत, उच्च गुणवत्ता
स्वाधीनता के बाद साक्षरता के बेहद निचले स्तर पर स्थित देश में पुस्तक पठन प्रवृत्ति और संस्कृति के निर्माण व विकास की बड़ी गंभीर आवश्यकता थी। इसे जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी शिद्दत से महसूस किया था। यह अनायास नहीं था कि न्यास के स्थापना दिवस (01 अगस्त 1957) पर जवाहरलाल नेहरू ने अपने संबोधन में न्यास को सेवा-केंद्र के रूप में परिकल्पित करते हुए ‘पुस्तक अस्पताल’ की संज्ञा दी थी औैर देश की विशाल आबादी के लिए किफायती कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाली पुस्तकों की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के साथ पुस्तक पठन के लिए अनुकूल वातावरण के सृजन की आवश्यकता को भी रेखांकित किया था।
पढऩा ही जिंदगी है
1957 से 2017 तक की 60 वर्ष की यात्रा में एनबीटी ने अनेक अवसरों पर कीर्तिमान स्थापित किए। 1972 से नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला की शुरुआत एक ऐसी ही पहल थी, जो 2017 में अपने 25वें पड़ाव पर पहुंचा। 2017 के विश्व पुस्तक मेले में प्रगति मैदान में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत के 60 साल की यात्रा पर ‘यह मात्र सिंहावलोकन नहीं’ शीर्षक से आयोजित प्रदर्शनी में महत्वपूर्ण अभिलेखों (छायाचित्र/सामग्री) के साथ एनबीटी की सर्वाधिक बिकने वाली (बेस्टसेलर्स) पुस्तकों को प्रदर्शित किया गया। उन प्रख्यात भारतीय चित्रकारों के कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए चित्रकार-भित्ति का भी निर्माण किया गया था, जिन्होंने बेस्टसेलर्स के लिए चित्र बनाए थे। इस महत्वपूर्ण प्रदर्शनी-कक्ष के सामने बोर्ड पर यह संदेश लिखा गया था- ‘पढऩा ही जिंदगी है’।
60 वर्षों में ‘पुस्तकों के संग-संग चले’, ‘पुस्तकें : जिनमें जागरूकता और ज्ञान का खजाना भरा है’ जैसे नीति-मंत्र वाक्यों की दिशा में एनबीटी अपनी ज्ञान-यात्रा के पथ पर बढ़ता रहा है। इस पुस्तक-यात्रा में अनेक नए और अभिनव प्रयोग भी किए गए, जिनका अच्छा प्रतिसाद मिला। ‘पुस्तक परिक्रमा’ या ‘पहिये पर पुस्तकें’ ऐसी ही पहल है। देश के दुर्गम, दुरूह और दूरस्थ अंचलों में वृहत्तर पाठक वर्ग तक पहुंचने की ललक और उद्देश्य से बीती सदी के नब्बे के दशक में 1992 से सचल पुस्तक वाहन में प्रदर्शनी लगाने की शुरुआत की गई।
आज समूचे देश में ऐसी 5000 से अधिक प्रदर्शनियां आयोजित की जा चुकी हैं। देश के पूर्वोत्तर के दुर्गम पहाड़ी राज्यों के क्षेत्रों में भी पुस्तक प्रदर्शनी के आयोजन किए गए। ‘किताब क्लब’ की योजना एक अन्य अभिनव और नवाचारी पहल है, जो देश में घर-घर, द्वार-द्वार तक पुस्तकें पहुंचाने के लक्ष्य और सुनिश्चित उद्देश्य से लैस है। इस योजना के तहत बने सदस्यों को पुस्तक खरीद पर विशेष छूट दी जाती है। अब तक 50 हजार से अधिक पाठक किताब क्लब के सदस्य पंजीकृत किए जा चुके हैं।
ताड़पत्र से मुद्रण रूप में
हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को ग्रंथों के माध्यम से ही जान सकते हैं और भारत की सभ्यता-संस्कृति तो विश्व में प्राचीनतम मानी जाती है। कई हजार वर्षों की हमारी मनीषा ताड़-पत्र की पांडुलिपियों में सुरक्षित रही, जो 15वीं सदी में मुद्रण तकनीक के आविष्कार के बाद कागजों पर और पुस्तक के रूप में मुद्रित होकर समाज की आने वाली सभी पीढिय़ों के लिए सुरक्षित हुई। वर्ष 2003-04 भारत के गौरव का वर्ष साबित हुआ था क्योंकि इस अवधि में यूनेस्को और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशक संघ ने दिल्ली को विश्व पुस्तक राजधानी के रूप में चयनित कर सम्मानित किया था।
अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेलों में एनबीटी को अनेक अवसरों पर सम्मानित अतिथि देश के रूप में निमंत्रित किया जा चुका है। प्रतिष्ठित फ्रैंकफुर्ट विश्व पुस्तक मेला (जर्मनी) में एनबीटी को दो बार 1986 और 2006 में यह सम्मान मिल चुका है। जबकि 2009 में मॉस्को अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला और 2010 में पेइचिंग में आयोजित अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला में भी यह सम्मान मिला।
एनबीटी विश्व के दस से अधिक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेलों में नियमित रूप से भाग लेता रहा है। एनबीटी की ओर से पुस्तक संस्कृति के वातावरण के सृजन के अपने महत्तर उद्देश्य से संचालित पुस्तक सप्ताह का आयोजन 14 से 20 नवंबर की अवधि में देश भर में किया जाता है। पुस्तक सप्ताह के आयोजन के अंतर्गत अनेक प्रकार की पुस्तकीय व सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन भी किया जाता है।
अभिनव वैश्विक प्रयोग
बच्चों में पुस्तक पठन आदत की बचपन से ही शुरुआत करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास ने दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय परिसर में ‘राष्ट्रीय बाल साहित्य केंद्र’ नाम से विशेष अनुभाग स्थापित किया है, जिसका उद्देश्य देश भर में विभिन्न भारतीय भाषाओं में बाल साहित्य के समन्वय, आयोजन और सहायता का कार्य करना है। यह केंद्र में विश्व का श्रेष्ठ बाल साहित्य का पुस्तकालय भी है, जिसका उपयोग देश-विदेश के लेखक, चित्रकार, प्रकाशक, शोधकर्मी आदि के लिए है।
देश भर में समय-समय पर पुस्तक मेला, पुस्तक प्रदर्शनी, विचार-गोष्ठी, कार्यशाला, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का आयोजन करना एनबीटी की महत्वपूर्ण गतिविधियां है। उच्च शिक्षा की पुस्तकों के किफायती कीमत पर प्रकाशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लेखकों तथा पाठ्य पुस्तकों व संदर्भ सामग्री के प्रकाशकों के लिए आर्थिक सहायता योजना भी इस न्यास की महत्वपूर्ण गतिविधियों में शामिल है।
पुस्तक प्रोन्नयन के लिए विविध गतिविधियों के लिए सक्रिय रहने और इन्हें संचालित करने के अलावा पुस्तक प्रकाशन न्यास का एक प्रमुख कार्य है। न्यास हिंदी व अंग्रेजी के साथ सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन करता है।
एक: सूते सकलम्
देश की अनेक जनजातीय भाषाओं, जिनमें पूर्वोत्तर भी शामिल है, में भी पुस्तक प्रकाशन का राष्ट्रीय पुस्तक न्यास कार्य करता है। यह कुछ क्षेत्रीय भाषाओं-बोलियों में व विभिन्न भारतीय भाषाओं में परस्पर अनुवाद का कार्य भी करता है, जिसका कार्यान्वयन सुविचारित पुस्तकमालाओं के अंतर्गत किया जाता है। एनबीटी (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास) का प्रतीक चिह्न बरगद का वृक्ष है, जो दृढ़ता, व्यापकता और ज्ञान के प्रसार का प्रतीक है। एनबीटी के लिए इस वृक्ष के डिजाइन को खुली किताब के पृष्ठ जैसा किया गया है। एनबीटी का आदर्श वाक्य ‘एक: सूते सकलम्’ है, जो कालिदास के ‘मेघदूतम्’ से उद्धृत किया गया है।
तैयारी नई चुनौतियों के लिए
दूरद्रष्टा और स्वप्नदर्शी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के इस मानस-बीज (राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत) ने अपनी यात्रा नई दिल्ली की एक बस्ती निजामुद्दीन से प्रारंभ की थी। इसके बाद कई दशकों तक ग्रीन पार्क क्षेत्र न्यास की विकास-यात्रा का साक्षी बना रहा। 2008 में न्यास-कार्यालय स्थानांतरित होकर स्थायी रूप से वसंत कुंज स्थित 5, इंस्टीट्यूशनल एरिया में अपने भवन (नेहरू भवन) में आ गया, जिसका उद्घाटन तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने किया। अपनी गौरवपूर्ण ज्ञान-यात्रा के सफल 60 वर्ष पूरे कर लेने के बाद अब एनबीटी की तैयारी पठन-अभिरूचि व मुद्रित पुस्तकों के समक्ष आ रही नई चुनौतियों और पाठकों की बदलती पठन-प्रवृतियों के अनुरूप ढालने की है।
– पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक (हिंदी), एनबीटी
Hello. http://jakshgy773733.us
guest test post
bbcode
html
http://gdhyuei23kol.com/ simple
guest test post
bbcode
html
http://gdhyuei23kol2.com/ simple