पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद (पटना) के तत्वावधान में वरीय साहित्यकार एवं चित्रकार सिद्धेश्वर प्रसाद के आवास ‘सिद्धेश्वर सदन’ में एक सारगर्भित काव्य संध्या का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी का संचालन करते हुए भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष सिद्धेश्वर प्रसाद ने कहा कि यह सच है कि ऐसी घरेलू साहित्यिक गोष्ठियां सांस्कृतिक चेतना को जगाते हुए हमारे भीतर सृजनात्मक ऊर्जा प्रदान करती है और ऐसे आयोजन का हमारा उद्देश्य भी यही है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बेतिया के लब्ध प्रतिष्ठित गीतकार डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना और राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह दिनकर के पौत्र अरविंद कुमार सिंह की उपस्थिति ने इस काव्य संध्या को यादगार बना दिया। वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि छोटी-छोटी साहित्यिक गोष्ठियों में हम दिल से एक दूसरे की रचनाओं को सुनते हैं। ऐसी गोष्ठियों से हम रचनात्मक ऊर्जा लेकर सार्थक सृजन की ओर उन्मुख होते हैं। ऐसी ही सार्थक साहित्यिक गोष्ठियां भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष सिद्धेश्वर करवाते रहते हैं। जो सचमुच अभिनंदनीय है। वीणा सिद्धेश ने अतिथियों का स्वागत किया। करीब तीन घंटे तक चली इस काव्य संध्या का समापन मधुरेश नारायण के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
कवियों ने जो सुनाया उसकी कुछ पंक्तियां :
“सद्भावना, स्नेह, सदविचार में तेरा भी व्यक्तित्व मिले! मैं रहूं आदमी साधारण, पर मुझे दिव्या, देवत्त्व मिले!” (डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, बेतिया)
” खरहे से भागती उमर, आसरे की डोर कट गई। मोबाइल ले उड़ा सृजन, नयनों से नींद उड़ गई। थम जाएगी कब सांसे, दहशत की फिक्र जुड़ गई।” (भगवती प्रसाद द्विवेदी)
” जाने कितना उछाल है साहिब, जिंदगी भी सवाल है साहिब! रहा चलते हैं लड़खड़ाते हैं, क्या बुरा हाल है साहिब!” (डॉ. शिवनारायण)
प्रेम ख्वाब है , प्रेम एतवार है, प्रेम खुशबू है, प्रेम बयार है।” (अरविंद कुमार सिंह, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के पौत्र)
“कमबख्त ये दिल उन्हें देख यूं ही धड़कता है। ज्यूं बिना ऑक्सीजन जीव यहां तड़पता है। जख्मी दिल प्यार का मरहम खोजता है यहां-वहां। किसी का साथ जग में मिल जाए वह मचलता है।” (मधुरेश नारायण)
” कुदरत को ऐसा करके दिखा देना चाहिए। इंसान को फरिश्ता बना देना चाहिए। जब जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है दोस्त। वादा अगर किया है निभा देना चाहिए।” (सिद्धेश्वर प्रसाद)
” जो लुटा कर अपना सब रचा, उसने दीमकों से बचा रखा, तुझे याद हो जाना याद हो, शरद था मेरा यह सफर, तुम्हें याद हो या ना याद हो।” (शरद रंजन शरद)
” लौ चीर अंधेरा निकल पड़ा, उसको डगर नया बनाना है, झिलमिल झिलमिल रोशन ख्वाब को मंजिल पाना है।” (लता प्रसार)
” ना हो गुमां नश्वर शरीर पर, ना नश्वर संसार पर, सब छोड़ हमें चले जाना है, ना जाने कौन जहां।” (डॉ अर्चना त्रिपाठी)
” करबद्ध मेरी अंजूरी, करती है प्रणिपात, मूक प्रणय के वश में, अधरों के जज्बात करे खुलकर एक दूजे के,आलिंगन को स्वीकार, कलम जागृत को जगा, करूं जीवन कृतार्थ।” (राज प्रिया रानी)
प्रस्तुति: बिना सिद्धेश,भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना