(कृष्ण किसलय/सोनमाटी के चालीस साल) : रहस्यों के घेरे में बाल-अपहरणकर्ताओं का गिरोह

सोनमाटी के चालीस साल
रहस्यों के घेरे में बाल-अपहरणकर्ताओं का गिरोह
-कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटी)


मदद देने की याचना कर रहे किशोरों के मां-बाप पटना, बनारस, आजमगढ़ में वियोग में तड़प रहे थे और उनके कलेजे के टुकड़े शहर-दर-शहर सड़कों-बाजारों में चंदा मांगते हुए मुसाफिरखानों में गुजार रहे थे कि ‘अनाथ हैं हम…, हमारे माता-पिता नहीं हैं…! आश्रम में पढ़ते हैं, मदद चाहते हैं, बड़ी कृपा होगी…!’

40 साल पहले विदेशों तक पहुंची यह रिपोर्ट :

(किशोर कुणाल)

राष्ट्रीय संदर्भ में अपनी विषय-वस्तु (बाल अपहरणकर्ताओं के अंतरराज्यीय गिरोह को बेनकाब करने वाली) की हिंदी में यह पहली बहुचर्चित कथात्मक खोजी रिपोर्ट भारत में सबसे अधिक प्रमाणित बिक्री वाली प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका ‘मनोहर ‘कहानियां‘ के अक्टूबर 1981 के अंक में ‘रहस्यों के घेरे में बाल अपहर्ताओं का गिरोह’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। यह कथात्मक रिपोर्ट इतनी महत्वपूर्ण मानी गई कि देश की अग्रणी प्रकाशक संस्था मित्र प्रकाशन की इन्वेस्टिगेटिंग जर्नलिज्म की अंग्रेजी पत्रिका ‘प्रोब इंडिया’ ने भी उसका रूपांतरण कर अपने स्तंभ (ट्रेसिंग ए केस : रीयल लाइफ स्टोरी) के अंतर्गत ‘डेमोन्स एट लार्ज’ शीर्षक से प्रकाशित किया, जिससे यह रिपोर्ट हिंदी पाठकों के राष्ट्रीय दायरे से बाहर विदेश के पाठकों के अंतरराष्ट्रीय दायरे तक भी पहुंची। यह विशेष खोजपूर्ण रिपोर्ट आंचलिक पत्रकारिता के क्षेत्र में सोनमाटी और इसके संपादक कृष्ण किसलयके कई मीलस्तंभ कार्यों में से एक रहा है।
रोहतास के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक किशोर कुणाल से अनुसंधान का आदेश लेकर डालमियानगर थाना प्रभारी अवर निरीक्षक वृदावन शर्मा ने इस कांड के बाबत बिहार के हाजीपुर, गया, नवादा, बिहारशरीफ आदि शहरों में जाकर छान-बीन की थी। उसी दौरान पटना स्थित सीआईडी मुख्यालय के वरिष्ठ अवर निरीक्षक गिरीशचंद्र कुंवर को डालमियानगर के ही एक लापता किशोर के एक प्रकरण के अनुसंधान की जिम्मेदारी मिली थी। तब डेहरी-आन-सोन स्थित रोहतास पुलिस मुख्यालय में किशोर कुणाल ने बाल-अपहरणकर्ता गिरोह के असली संचालकों तक पहुंचने के लिए गिरीशचंद्र कुंवर और वृंदावन शर्मा के साथ गहन विमर्श कर पुलिस अनुसंधान की रणनीति बनाई। इसके बाद गिरीशचंद्र कुंवर और वृंदावन शर्मा ने बाल-अपहरणकर्ता गिरोह का सुराग पाने के लिए महाराष्ट्र के नागपुर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी, कानपुर, सहारनपुर और झारखंड के रांची के संबंधित स्थानों का सघन दौरा कर सभी संबंधित व्यक्तियों से बारीकी से पूछ-ताछ और गहराई से खोज-बीन की। चार दशक पूर्व पांच पृष्ठों में प्रकाशित रिपोर्ट संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत है।
-निशान्त राज (प्रबंध संपादक, सोनमाटी) फोन 9955622367

कड़ा रुख देख बच्चों ने उगल दिया सच :

डालमियानगर के चौधरी चौक पर 08 जनवरी 1981 की सुबह दो लड़के राहगीरों, दुकानदारों से कातर स्वर में आग्रह करते फिर रहे थे- ‘हम अनाथ हैं, हमारे माता-पिता का पता नहीं। अनाथ आश्रम में रहते हैं, वहीं पढ़ रहे हैं। आपसे मदद चाहते हैं, बड़ी कृपा होगी’। दोस्तों के साथ चाय दुकान पर चाय की चुस्की ले रहे युवा राजकुमार सिंह ने दोनों में छोटी उम्र के लड़के के हाथ से रसीद-बुक लेकर देखा, जिस पर अनाथ आश्रम का पता सहारनपुर छपा था। उसने पूछा, ‘तुम दोनों सहारनपुर से चंदा मांगते हुए यहां आए हो’? लड़के ने उत्तर दिया, ‘हम मुगलसराय से आए हैं, परसों सुबह’।
राजकुमार सिंह को संदेह हुआ। उसने अखबारों में पढ़ रखा था कि बच्चा भगाने वाले गिरोह बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल में सक्रिय हैं। राजकुमार सिंह ने कुछ बातें और पूछीतो चंदा मागने वाले लड़के की आंखों में आसूं छलक आए। तब पूछा, ‘तुम किसके साथ आए हो.। लड़के ने कहा, ‘टीचर जी के साथ, जो उस दुकान पर पेन की रिफिल खरीदने गए हैं’। राजकुमार सिंह तेजी से स्टेशनरी दुकान में पहुंचा और छींटदार कुर्ता, सफेद फुलपैंट वाले कंधे पर गांधी झोला लटकाए युवक से पूछा, ‘भाई, आप ही अनाथ आश्रम के टीचर हो’? तब तक कई लोग जुट आए थे। झोला वाला अजनबी युवक कई लोगों को देख सकपका गया। राजकुमार सिंह ने उस पर दो घूंसा जमा दिया। चंदा मांग रहे दोनों लड़कों ने अनुरोध किया, ‘टीचरजी को छोड़ दीजिए, नहींत ो लोहे से दागेंगे, गलती होने पर लोहे से दागते हैं’। राजकुमार सिंह ने लड़कों से पूछा, ‘तुम कितने दिनों से इस टीचर के साथ हो’? जवाब था, ‘तीन दिनों से। मगर भगा कर लाने वाला तो कोई और था’।
लड़कों की बात सुनते ही उस टीचर की लोगों ने पिटाई शुरू कर दी। कोई सामने से नाई को बुला लाया। टीचर के सिर के बाल को जहां-तहां से साफ कर और उसके चेहरे पर कालिख पोतने के बाद भीड़ जुलूस की तरह टीचर को थाना पर ले गई। हवलदार कमलनारायण पांडेय ने टीचर और दोनों लड़कों को पुलिस कब्जे में ले लिया। डालमियानगर के थाना प्रभारी अवर निरीक्षक वृंदावन शर्मा और सहायक अवर निरीक्षक बिन्देश्वरी प्रसाद मिश्र की सख्त पूछ-ताछ के बाद युवक टीचर ने अपना नाम मकबूल खां बताया और स्वीकार किया वह एक अंतरप्रांतीय अपहरणकर्ता गिरोह का सदस्य है, जिसका धंधा बच्चों को प्रलोभन देकर जाल में फंसाना और शहरों में घुमते हुए चंदा के रूप में भीख मंगवाना है। दोनों लड़कों के बयान दर्ज हुए। बच्चों के अपहरण और गिरोह के काम करने के तरीकों की जो जानकारी सामने आई,वह कुछ इसप्रकार थी।

कैसे जाल में फंसाया गया था बच्चों को :

7वीं कक्षा के छात्र 13 वर्षीय बड़े लड़के का नाम रवींद्र (परिवर्तित नाम) था, जिसके पिता आजमगढ़ के कोपागंज मुहल्ला निवासी (परिवर्तित नाम) मदन कृष्ण की परचून की मशहूर दुकान थी। रवीन्द्र दिसम्बर 1980 में अपनी बुआ के घर आजमगढ़ से बनारस गया था। एक दिन वह भागीरथी सिनेमा हाल में तीन बजे की शो में सिनेमा देखने गया। सिनेमा हाल में बगल की सीट पर मृदुभाषी अधेड़ बैठा था। शाम छह बजे सिनेमा का शो टूटा। अधेड़ ने रवीन्द्र से पूछा, ‘तुम्हें कहां जाना है’? रवीन्द्र ने अपने बुआ के मकान का पता बताया तो अधेड़ ने प्रसन्न मुद्रा बनाकर कहा, ‘मैं भी तो उधर ही रहता हूं, मेरे ही रिक्शे पर साथ चलो, मैं तुम्हें उतार दूंगा’।
रवीन्द्र को एतराज नहीं हुआ। वह अधेड़ के साथ उसके रिक्शा पर बैठ गया। अधेड़ रास्ते भर मीठी-मीठी बातें करता रहा। मगर रिक्शा जहां जाकर रुका, वह तो उसके बुआ के घर का मुहल्ला नहींथा। अंधेरा पूरी तरह हो चुका था। रिक्शा से उतरने के बाद रमेश को पैदल गंगा किनारे के रास्ते उसकी बुआ के घर पहुंचाने की बात अधेड़ ने कही। आगे रास्ते में डरावनी सूरत वाला लंगड़ा व्यक्ति मिला। लंगड़े ने भी मीठी-मीठी बातें की, घर-परिवार के बारे में पूछा। फिर तीनों उस अंधेरी कोठरी में गए, जहां लंगड़ा रहता था। भरोसा में लेने के लिए लंगड़ा ने मिठाई परोसी। फिर अधेड़ वहां से कुछ बहाना बनाकर निकल गया।
मीठा व्यवहार का नाटक कर रहा लंगड़ा स्वर अचानक कर्कश हो गया। कहा, ‘अब अपना घर भूल जाओ, तुम्हें हमलोगों के साथ रहना है, जैसा कहा जाए, वैसा करना होगा’। रमेश की चींख उठा, ‘मुझे छोड़ दो, नहीं तो पुलिस को…’। लंगड़े ने जोरदार चाटा मारा। रवीन्द्र के मुंह से खून निकल पड़ा। घायल रवीन्द्रको अंधेरी कोठरी में बंद कर लंगड़ा बाहर चला गया। भूखा-प्यासा रवीन्द्र रातभर ठंड से ठिठुरता रहा। सुबह में लंगड़ा आया। पूछा,’अब भी पुलिस का नाम लोगे’ ? उसके भीतर की जिद्द का जवाब था, ‘जरूर….’। लंगड़ा ने फिर जोरदार थप्पड़ मारा। रवीन्द्र बेहोश हो चुका था। होश आने पर उसकी पीठ, पेट, जांघ पर फफोले पड़े थे। उसे गर्म सलाखों से दागा गया था। रवीन्द्र ने लंगड़ा का पैर पकड़ लिया और कहा, ‘जैसा कहोगे, वैसा करूंगा’।
दो दिन बाद रवीन्द्र को बढिय़ा खाना खिलाकर और खाकी ड्रेस पहनाकर हमउम्र बच्चों के साथ दिल्ली की ट्रेन से दो ‘टीचर जी’ के साथ रवाना कर दिया गया। दिल्ली से आगरा, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, चुनार, ओबरा, रेणुकुट के बाजारों में वह अन्य बच्चों के साथ चंदा उगाहता रहा। जिस दिन पैसों की कम उगाही होती, उस दिन अच्छा भोजन नहींमिलता और पिटाई होती। सभी 05 जनवरी 1981 को मुगलसराय पहुंचे थे। मुगलसराय से रवीन्द्र को एक छोटे लड़के और नए टीचर के साथ आसनसोल की 130 डाउन पैसेंजर ट्रेन पर चढ़ाया गया।

पुलिस के हाथ नहीं आया लंगड़ा मलखान सिंह :

छोटा लड़का के बयान के अनुसार, उसका नाम सारस्वत (परिवर्तित नाम) था, जो कान्वेंट स्कूल में 5वींका छात्र था। पिता शिवेश्वरी प्रसाद (परिवर्तित नाम) का वाराणसी अस्सीघाट के डुमरांव बाग कालोनी में घर और वाराणसी गोदौलिया चौक पर दवा दुकान थी। 31 दिसम्बर की सुबह वह परिवार से नाराज हो गया था। स्कूल से छुट्टी होने पर घर नहीं जाकर वह ननिहाल कानपुर जाने के लिए मुगलसराय जंक्शन आ गया, जहां उसने एक व्यक्ति से कानपुर जाने वाली ट्रेन के बारे में पूछा। उस व्यक्ति ने कहा, ‘मुझे दिल्ली जाना है। तूफान एक्सप्रेस से चलो, जो सुबह नौ बजे कानपुर पहुंचेगी’।
सारस्वत सहमत हो गया। राजीवरंजन नामक वह व्यकित शैलेश के साथ खाना खिलाने स्टेशन से बाहर गया और मकबूल को सौंपकर गायब हो गया। मकबूल के साथ ही रवीन्द्र था। तीनों कानपुर जाने के बजाय चुनार होकर चोपन आ गए, जहां सारस्वत को प्रताडि़त कर धमकाया गया कि तुम्हें, तुम्हारे मां-बाप को काटकर फेेंक देंगे। चोपन में उसे अनाथ आश्रम की वर्दी पहना कर रसीद थमाकर चंदा मांगने पर मजबूर किया गया। 03 जनवरी को वाराणसी के सांध्य दैनिक गांडीव में सारस्वत के लापता होने का विज्ञापन छपा था और उसके माता-पिता उसके वियोग में तड़प रहे थे। उस दिन वह मिर्जापुर के बाजार में चंदा मांग रहा था।
मकबूल को जेल भेजा गया। रवीन्द्र और सारस्वत के घर खबर करने के लिए हवलदार कमलनारायण पांडेय रवाना हुए। 10 जनवरी को सारस्वत के पिता और चाचा डालमियानगर आकर उसे ले गए। रवींद्र को भी उसके परिवार वाले ले गए। मकबूल खां के बयान पर डालमियानगर थाना प्रभारी वृंदावन शर्मा 13 जनवरी को वाराणसी गए और काजी सदुल्लापुर मुहल्ले के चाय दुकानदार बाला प्रसाद को चंदा रसीदों और अनाथ आश्रम की वर्दियों के साथ गिरफ्तार किया।
बनारस में गली-गली में घूमकर ठेला पर तेल, साबुन, कंघी बेचने वाला लंगड़ा मलखान सिंह पुलिस के हाथ नहीं आया। 17 जनवरी को इंस्पेक्टर वृंदावन शर्मा बाला प्रसाद को लेकर डालमियानगर आए। एसपी किशोर कुणाल ने पूछताछ के बाद उसे जेल भेजने का आदेश दिया। इसके बाद किशोर कुणाल ने छान-बीन के लिए वृंदावन शर्मा को हाजीपुर, बिहारशरीफ, गया, नवादा भेजा। सिर्फ इतना पता चला कि इन शहरों में रांची के हरमू रोड स्थित भूतनाथ मंदिर परिसर में रहनेवाला कोई उडिय़ाभाषी अनाथ आश्रम के बच्चों के साथ देखा गया था। निराश इंस्पेक्टर शर्मा डालमियानगर बैरन लौट आए।

नागपुर में पुलिस को तोडऩा पड़ा ताला :

इस बीच एक मामला सामने आया कि पटना विश्वविद्यालय का किशोर छात्र आशुतोष कुमार (परिवर्तित नाम) 29 अक्टूबर 1980 से ही गायब है, जिसके पिता अभिराम सिंह (परिवर्तित नाम) रोहतास उद्योगसमूह में सुरक्षा अधिकारी थे। अभिराम सिंह के अनुरोध पर पटना पुलिस मुख्यालय ने सीआईडी सब-इंस्पेक्टर गिरीश चंद्र कुंवर को जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। किशोर कुणाल ने सीआईडी अफसर गिरीशचंद्र कुंवर और सब-इंस्पेक्टर वृंदावन शर्मा के साथ बैठक की। बैठक में प्राप्त सूचनाओं पर मंथन हुआ। मकबूल खां को न्यायालय के आदेश से पुलिस रिमांड पर लेकर नए सिरे से पूछताछ हुई। मकबूल ने छात्र आशुतोष कुमार की तस्वीर पहचाकर बताया कि 05 जनवरी 1981 की रात आशुतोष को पटना के लिए रवाना किया गया था।
गिरीशचंद्र कुंवर और वृंदावन शर्मा दोनों नागपुर भेजे गए। उन्होंने 05 मार्च 1981 को लड़कियों के श्रद्धानंद अनाथाश्रम की सह-अधीक्षक लता पांडेय से और 08 मार्च को श्रीअनाथ सेवाआश्रम की संचालिका जानकी बाई, प्रबंधक नानूराम भार्गव से पूछताछ की। श्रीअनाथ सेवा आश्रम में ताला तोड़कर रिकार्ड चेक करना पड़ा। उस आश्रम में 15 लड़के और 05 लड़कियां थीं। जानकी बाई से तीन सवाल पूछे गए थे। 15 साल से अधिक उम्र की रुक्मणी की मां, भाई जीवित है और दोनों कमाते भी हैं, तब फिर आश्रम में उसे क्यों रखा गया है? जब लड़कियों के लिए अलग आश्रम है, तब अनाथ लड़कों के साथ लड़कियां क्यों रखी गई हैं? मकबूल खां और बाला प्रसाद आपके यहां कब से और कौन-सा काम करते थे? तीनों सवालों का जानकीबाई ने जवाब नहींदिया था।
वृंदावन शर्मा ने जानकी बाई को बाला प्रसाद के पास से बरामद पत्र को दिखाते हुए अंधेरे में एक तीर मारने की कोशिश की। कहा, ‘उसने आपको अपहरणकर्ता गिरोह की संचालिका बताया है’। पत्र देखकर जानकी बाई के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगी। उसने अपने को संयत कर कहा, ‘हां, याद आया, इस नाम का एक व्यक्ति हमारे यहां डेपुटेशन इंचार्ज हुआ करता था। लेकिन दो-तीन साल काम करने के बाद वह यहां से चला गया। क्यों, भार्गव तुम्हें याद है’?
ताला तोड़कर निकाले गए कागजात से इतनी जानकारी हुई कि अनाथ सेवा आश्रम के चार प्रचारक नालंदा (बिहार) में कृष्ण कुमार सिन्हा, जमशेदपुर (झारखंड) में काली पद दास और रांची में रमेश प्रसाद साहा, कमल कांत साईस थे। हिन्दू अनाथ आश्रम का निबंधन 1904 में हुआ था, जिसके संचालक बाबूलाल शर्मा थे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी अनाथ आश्रम का संचालन करने लगी। हिन्दू अनाथ आश्रम का नाम 1960 में बदलकर श्रीअनाथ आश्रम किया गया। दोनों पुलिस अधिकारियों को कानूनी कार्रवाई करने लायक सबूत नहींमिले।

नागपुर से सहारनपुर पहुंचे पुलिस अधिकारी :

नागपुर (महाराष्ट्र) से दोनों पुलिस अधिकारी 09 मार्च 1981 को सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) आ गए। पता चला कि वहां भारतीय अनाथ सुधारक स्कूल नामक संस्था नहीं है। तब वहां अनाथ बच्चों के लिए दो सरकारी संस्थाएं कार्यरत थीं, भारतीय नेत्रहीन विद्यालय (प्राचार्य कैलाश झा) और महिला नेत्रहीन विद्यालय (प्राचार्य गुरुबख्श राय)। दोनों अधिकारी सहारपुर से 11 मार्च को कानपुर पहुंचे। कानपुर में रमेशचंद्र श्रीवास्तव नाम का कोई व्यक्ति नहींमिला, जिसकी गांधी नगर मुहल्ला में बिजली की दुकान थी और जिसके दो आटो-रिक्शा किराया पर चलते थे। या तो मकबूल खां ने पुलिस को गलत बताया या फिर मकबूल को ही रमेशचंद्र श्रीवास्तव ने अपना गलत अता-पता बताया था।
कानपुर से दोनोंंपुलिस अफसर पटना सिटी पहुंचे। पटना सिटी में गरभूराम केसरवानी धर्मशाला के नेपाली प्रबंधक कृष्ण बहादुर ने दैनिक हाजिरी बही देखकर बताया कि 06 जनवरी की रात अनाथालय के चार बच्चों के साथ पारसनाथ शर्मा हाजीपुर से आकर ठहरा था। सभी दूसरे दिन बिहारशरीफ चले गए। सीआईडी अफसर गिरीश चंद्र कुंवर ने प्रबंधक को छात्र अरविंद की तस्वीर दिखाई तो पहचान गया। बताया, 06 जनवरी की रात अरविंद था,जिसने सबके लिए खाना बनाया। धर्मशाला की गूंगी दाई ने भी अरविंद को पहचाने का भाव प्रकट किया था। दोनों अफसर हाजीपुर, बिहारशरीफ गए।
इस प्रकरण मेें सघन समय-श्रम साध्य लंबे पुलिस अनुसंधान के बावजूद कई प्रश्न अनुत्तरित बने रहे। बच्चों को जाल में फंसा शहर-दर-शहर चंदा मांगने के लिए विवश करने वालों का सरगना कौन था? गिरोह से कौन-कौन सफेदपोश जुड़े थे? क्यों आशुतोष स्थाई रूप से गिरोह से संबद्ध हो गया था?

(थाना में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर इसकी आरंभिक सूचनात्मक खबर सोनमाटी के तत्कालीन कार्यालय संवाददाता चितरंजन भारती और फिर विशेष संवाददाता रामवचन पांडेय ने लिखी थी। इसके बाद संपादक कृष्ण किसलय ने पुलिस अनुसंधान आरंभ होने के बाद पुलिस अधीक्षक किशोर कुणाल और अनुसंधान अधिकारी वृंदावन शर्मा से कई दौर की गहराई से वार्ता कर पूरी विस्तृत कहानी उजागर की।)

जब चंगुल से भागकर ‘आजÓ कार्यालय पहुंचे थे दो लड़के

पटना फ्रेजर रोड स्थित दैनिक ‘आजÓ के कार्यालय में 01 जुलाई 1981 की शाम सनसनीखेज दृश्य उपस्थित हो गया। 14-15 साल के दो लड़कों ने बताया कि वे बाल अपहरणकर्ताओं के चंगुल से भागकर शरण लेने आए हैं। छपरा के अमनौर हाई स्कूल की नौवींकक्षा का छात्र अनिल कुमार ने बताया था कि 30 जून 1981 की शाम मढ़ौरा बाजार से कपड़े की दुकान पर नौकरी देने के नाम पर उसे पहलेजा और फिर पटना लाया गया, जहां रात भर रेलवे प्लेटफार्म पर वह अन्य बच्चों के साथ रहा। बच्चों की निगरानी चेचक की दाग वाला एक आंख का काना व्यक्ति कर रहा था।
चौथी क्लास तक पढ़ा दूसरा लड़का घनश्याम सिंह समस्तीपुर जिला के कुबौली गांव का निवासी था, जो 27 जून को घर से झगड़कर निकला और पूसा स्टेशन से ट्रेन पकड़कर पहलेजा घाट चला आया। वह वहां नौकरी की लालच में अपहरणकर्ताओं के चंगुल में फंस गया और पटना आ गया। 30 जून को फ्रेजर रोड के होटल के जिस कमरे में उसे रखा गया, उसमें पहले से छह लड़के मौजूद थे। उनमें से तीन लड़कों को सुलतानपुर (भागलपुर) जाने वाली ट्रेन पर गिरोह के कुछ सदस्यों के साथ चढ़ा दिया गया। चार लड़कों और गिरोह के सदस्यों के साथ वह रात भर प्लेटफार्म पर ही गुजारा।
01 जुलाई को चार में से दो लड़कों को पसंद करने वाले खरीददार ले गए। बाकी दोनों को गिरोह के सदस्य सारा दिन इधर-उधर घुमते रहे और शाम में फ्रेजर रोड में होटल के सामने पहुंचे। तभी दोनों लड़के किनारे हट गए और फ्रेजर रोड पर खड़े लोगों से मदद मांगी, जिन्हें लेकर मददगार दैनिक’आज’ कार्यालय में पहुंचे थे। ‘आज’ कार्यालय ने पुलिस को सूचना दी।
पुलिस दोनों लड़कों को होटल ले गई, जिसका कमरा विजय सिंह (भागलपुर) ने बुक किया था। मगर विजय सिंह के बारे में पुलिस को जानकारी नहींहो सकी। बाद में पुलिस को छानबीन में पता चला कि 12-14 वर्ष के पटना के भी तीन लड़के 27 जून से संजय (शास्त्री नगर), 2 जुलाई से शंभू (फ्रेजररोड), 3 जुलाई से प्रदीप (राजेंद्रनगर) गायब हैं, जिनके किसी बाल-अपहर्ता गिरोहे के चंगुल में फंस जाने की आशंका थी। दरअसल राजनीतिज्ञों के संरक्षण में चंद होटल लड़कियों, कमउम्र लड़कों के जिस्म फरोशअड्डे बने हुए थे,जहां सफेदपोश जाते थे।
(पटना में मित्र प्रकाशन का नेटवर्क)

संपर्क : कृष्ण किसलय, सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया, डालमियानगर-821305, जिला रोहतास (बिहार)
फोन 9523154607 व्हाट्सएप 9708778136

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