कोरोना महाआपदा के मौजूदा दौर में पूरी दुनिया घरों में कैद है। इस अभूतपूर्व नजरबंदी की वैश्विक परिस्थिति में प्रदेश, देश और विश्व भर के दैनिक कामगारों-स्वरोजगारों की बहुत बड़ी आबादी आदमी की पहली जरूरत दो जून की रोटी के संकट से जूझ रही है। ऐसे में भूख की समस्या पर आधारित लघुकथा ‘पहला उपदेश’ का स्मृति में कौंधना स्वाभाविक है। और, असमय काल-कवलित हो गए रोज कमाकर खाने वाले शहर डेहरी-आन-सोन के शायर मीर हसनैन मुश्किल का याद आना भी मानव मन की बेचैनी है। वरिष्ठ कथाकार कृष्ण किसलय की लघुकथा ‘पहला उपदेश’ टाइम्स आफ इंडिया प्रकाशन समूह की शीर्ष प्रतिष्ठ बहुप्रसारित कथा पत्रिका सारिका में वर्ष 1983 में प्रकाशित होकर देश-विदेश के पाठकों के बीच चर्चित हुई थी। इस लघुकथा को हरियाणा की साहित्यिक संस्था प्रज्ञा द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ और यह राजस्थान से प्रकाशित लघुकथा संकलन पहचान (संपादक : माधव नागदा) में शामिल की गई। इस विकट मनोवैज्ञानिक समय में डेहरी-आन-सोन के वरिष्ठ अग्रणी शायर स्वर्गीय मीर हसनैन मुश्किल की याद उनकी साहित्यिक गतिविधि त्रयी मंडली में शामिल रहे वरिष्ठ कवि कुमार बिन्दु की कलम की नोक से काव्य-स्मृति-स्फुलिंग के रूप में निसृत हुई है। कोराना संकट की पूर्णबंदी (लाकडाउन) का ही असर है कि वरिष्ठ रचनाकार सिद्धेश्वर को सोशल मीडिया फेसबुक पर आनलाइन लघुकथा सम्मेलन के संयोजन की युक्ति निकालनी पड़ी।
0- निशान्त राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी
(लघुकथा/कृष्ण किसलय)
पहला उपदेश
एक बार एक नगर में एक सिद्ध महात्मा पधारे हुए थे। नगर में उनके भक्तों ने एक व्याख्यान-माला का आयोजन किया था। महात्मा प्रतिदिन प्रवचन करते थे। उनके उपदेशमय व्याख्यान का लोगों पर यथोचित प्रभाव पड़ रहा था। उनके भक्त खूब प्रसन्न थे। व्याख्यान-माला में लोगों की भीड़ दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही थी।
एक दिन अचानक सिद्ध महात्मा के पास उनके कई अति श्रद्धालु भक्त दुखी मन पहुंचे। महात्मा ने उनके व्यथित होने का कारण पूछा। भक्तों ने कहा- महात्मन्, आपके उपदेशों से सभी तरह के लोग खूब प्रभावित हो रहे हैं और उन्हें लाभ भी प्राप्त हो रहा है। ……परन्तु व्याख्यान-मंडप से कुछ दूर बैठे एक भिखारी पर आज तक कोई प्रभाव पड़ता हुआ हमें नहीं दिखा।
सिद्ध महात्मा पहले मुस्कुराए और फिर उन्होंने कहा- उस भिखारी को आप सब कल मेरे पास ले आओ। मैं उसे उपदेश दूंगा।
दूसरे दिन भक्तों ने उस भिखारी को महात्मा के समक्ष उपस्थित किया। महात्मा ने भक्तों से कहा- इसे भरपेट खाना खिलाओ। खाना खा लेने के बाद इसे वापस जाने देना।
भक्तों ने आज्ञा का पालन किया। लेकिन उनके मन में कौतूहल हो रहा था। उन्होंने महात्मा के समक्ष अपना आश्चर्य व्यक्त किया- महात्मन्, आज आपने भिखारी को उपदेश देने के लिए बुलाया था, किन्तु आपने उसे भरपेट खाना खिलाकर वापस क्यों भेज दिया?
सिद्ध महात्मा अपने चिर-परिचित अंदाज में फिर मुस्कुराए और कहा- वत्स, कई दिनों के भूखे उस भिखारी के लिए भरपेट भोजन ही आज का पहला उपदेश था। अब इसके बाद उस भिखारी पर अन्य उपदेशों का प्रभाव पडऩे लगेगा।
०- कृष्ण किसलय, समूह संपादक
सोनमाटी, प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया
डेहरी-आन-सोन (बिहार) फोन 9708778136
(कविता/कुमार बिन्दु)
बहुत याद आ रहा…!
आज बहुत याद आ रहा है
बचपन में लंगोटिया यारों के संग
कभी उड़ती तितली को पकडऩा
कभी कटी पतंग के पीछे-पीछे दौडऩा
कभी जेठ की दुपहरिया में
चुपके से घर से निकलकर
पेड़ों पर चढ़कर चोरी से
कभी आम, कभी ईमली तोडऩा
और आज बहुत याद आ रहा है
हसनैन, मेरा दोस्त हसनैन पेंटर
जो ईद के दिन घर बुलाकर
मोहब्बत से गले लगाकर
मीठी सेवइयां खिलाता था
और बकरीद में कुर्बानी का गोश्त-पुलाव
खुद मेरी थाल में परोसता था
हसनैन पेंटर ही नहीं, शायर भी था
उसके कलाम में साकी, शराब नहीं
मोहब्बत से लबरेज इंकलाब था।
वो मुशायरे में अक्सर सवाल करता था
हमने तो वफा सारी दुनिया से निबाही है
फिर अपने ही आंगन में ये कैसी तबाही है?
उकसाता ही रहता हक के लिए लडऩे को
सीने में मेरे दिल है या कोई सिपाही है,
और यह भी कहता कि
इमदाद की रोटी से जलता है लहू दिल का,
आज बहुत याद आ रहा है शायर हसनैन
आज बहुत याद आ रहा है पेंटर हसनैन
जो जंग, जुल्म और नफरत से भरी दुनिया को
मोहब्बत के शोख चटक रंग से रंगना चाहता था
बच्चों के हाथों में कैद तितलियों की आजादी
और कटी पतंग की डोर थाम लेना चाहता था
ऐसा शायर था हसनैन,
ऐसा पेंटर था हसनैन, ऐसा दोस्त था हसनैन!
०- कुमार बिन्दु
पाली, डेहरी-आन-सोन, जिला रोहतास
(बिहार) फोन 9939388474
पटना से रिपोर्ट :
चित्रा मुद्गल ने दी आनलाइन लघुकथा सम्मेलन के संयोजन पर बधाई
पटना (सोनमाटी प्रतिनिधि)। फेसबुक पर लघुकथा सम्मेलन में देश के नए-पुराने लघुकथाकारों ने मार्मिक और कोरोना से संदर्भित लघुकथाएं भी प्रस्तुत कीं। लघुकथा से पाठकों को जोडऩे का यह अभिनव प्रयास कवि-चित्रकार सिद्धेश्वर ने भारतीय युवा साहित्यकार परिषद की ओर से किया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की। इससे पहले भी सिद्धेश्वर फेसबुक पर कवि सम्मेलन का संयोजन कर चुके हैं। भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि बिना भेदभाव खेमाबंदी लघुकथाकारों को प्रस्तुत किया जाना स्वस्थ परंपरा है। आनलाइन लघुकथा सम्मेलन की मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथा लेखिका चित्रा मुदगल ने अपने संदेश में कहा कि सपरिवार घर में स्वस्थ रहते हुए अपनी सृजनात्मकता को नई ऊंचाई दीजिए। इस सम्मेलन में 22 लघुकथाकारों मधुरेश नारायण (गलतफहमी), तपेश भौमिक (और थोड़ी देर सही), डा. सतीशराज पुष्करणा (सहानुभूति), मीना कुमारी परिहार (संस्कार), ऋचा वर्मा (निर्णय), संगीता गोविल (बदलती जिंदगी), प्रियंका श्रीवास्तव (सिर्फ इंतजार), सम्राट समीर (मां की बधाई), मार्टिन जान (लाइक), डा. अमरनाथ चौधरी अब्ज (दलाल), पुष्पा जमुआर (वजूद), राजेंद्र वर्मा (गांधीजी का चौथा बंदर), प्रताप सिंह सोढ़ी (स्वाभिमान), भगवती प्रसाद द्विवेदी (अंतर), सिद्धेश्वर (रिश्तों का वायरस), पूनम आनंद (कोरोना), कीर्ति अवस्थी (काली कलूटी) डा ध्रुव कुमार (अग्नि परीक्षा), ट्विंकल कर्मकार (परमेश्वर), रामयतन यादव (सुनहरा अवसर), कमल चोपड़ा (सांसों का विक्रेता) और विकेश निझावन (फर्क) ने अपनी लघुकथाएं प्रस्तुत कीं। कथाकार रामयतन यादव ने धन्यवादज्ञापन की औपचारिकता पूरी की।
०- प्रस्तुति : सिद्धेश्वर
अध्यक्ष, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
कंकड़बाग, पटना-800026 फोन 9234760365